त्योहारों के मौजूदा दौर के चलते आने वाले महीनों में देश के विभिन्न राज्यों में कोविड के मामले बढ़ने की आशंका है. सरकार भी इस मुद्दे पर चिंता जाहिर कर चुकी है.
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़े अजब विसंगति की स्थिति को दर्शाते हैं जिसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है यह इस बात का संकेत हैं मामलों का पहले से पता नहीं लग पा रहा है.
देश में कुल 69,48,497 लोगों ने अब तक इस बीमारी से निजात पाई है. मरीजों के ठीक होने की राष्ट्रीय दर बढ़कर अब 89.53 प्रतिशत तक हो गई है जबकि मृत्यु दर 1.51 प्रतिशत है.
डॉ रेड्डीज़ को, जो इस वैक्सीन की भारत में सप्लाई करेगा. उससे कहा गया है कि क्लीनिकल ट्रायल्स की जगहों का चुनाव भौगोलिक रूप से करें. ताकि भारत के अलग अलग प्रांतों की भागीदारी बढ़ जाए.
थ्रोमबोसिस, या रक्त वाहिकाओं में थक्के जमने की प्रक्रिया कोविड-19 के एक बड़े असर के तौर पर सामने आती है और इसके नतीजे घातक होते हैं. लेकिन विटामिन की दुनिया में इससे बचने का इसका एक उपयुक्त समाधान हो सकता है.
फिलहाल ज़्यादातर जगहों पर लोगों को कोविड-19 के लिए स्क्रीन करने में बुख़ार चेक किया जाता है. इस टेस्ट से बिना लक्षण वाले मरीज़ों का पता चलाया जा सकता है.
जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के अनुसार सोमवार सुबह संक्रमितों की संख्या चार करोड़ के पार हो गयी. यह विश्वविद्यालय दुनिया भर से कोरोना वायरस संबंधी आंकड़े एकत्र करता है.
वायरस और महामारी संबंधी वैज्ञानिकों का कहना है कि मनमाने ढंग से किसी कट-ऑफ का इस्तेमाल करने के बजाये बेहतर यह होगा कि कोविड पुन: संक्रमण के किसी मामले का पता लगाने के लिए तकनीक की सहायता ली जाए.
लांसेट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार वर्ष 1990 में भारत में जीवन प्रत्याशा 59.6 वर्ष थी जो 2019 में बढ़कर 70.8 वर्ष हो गई. केरल में यह 77.3 वर्ष हैं वहीं उत्तर प्रदेश में 66.9 वर्ष है.
मोदी की मौजूदगी बाकी तमाम मुद्दों को एक किनारे सरका कर लोगों के दिमाग पर छा जाने के मामले में अब नाकाफी है. साधारण राजनीति वापिस आ रही है और लंबे वक्त से दबे चले आ रहे मुद्दे अब सिर उठा रहे हैं.