पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.
जब गुलाम बख्श सत्ता में आए तो उनके शिक्षा अभियान ने चौतरफा विस्तार किया. उस कारण नौजवानों की एक नई ‘पढ़ी-लिखी’ पीढ़ी तैयार हुई, जिन्हें अब जिंदगी से उम्मीदें थीं.
सतीश की मृत्यु ने उनके प्रशंसकों और बॉलीवुड इंडस्ट्री को एक बड़ा झटका दिया क्योंकि सात मार्च तक वो बिल्कुल ठीक थे और उन्होंने जावेद अख्तर की होली पार्टी भी अटेंड की थी.
अक्सर बात होती है कि हिन्दी वालों के पास अपने दर्शकों को देने के लिए जमीन से जुड़ी कहानियों की सख्त कमी है. इस फिल्म को देखने के बाद यह बात एक बार फिर सही साबित होती है. शुरुआत से ही इसकी कहानी किसी दूसरे ग्रह के चमकीले माहौल में घटती नज़र आती है.
पेश है दिप्रिंट का राउंड-अप कि कैसे उर्दू मीडिया ने पिछले सप्ताह के दौरान विभिन्न समाचार संबंधी घटनाओं को कवर किया और उनमें से कुछ ने इसके बारे में किस तरह का संपादकीय रुख इख्तियार किया.
इसमें पहला नाम राजिंदर सिंह बेदी की फिल्म ‘फागुन’ का नजर आता है. होली का दिन है और ‘फागुन आयो रे...’ गा रही नायिका (वहीदा रहमान) की कीमती साड़ी पर उसका घरजमाई नायक पति (धर्मेंद्र) रंग डाल देता है.
बिहारी मजदूरों पर हमले की फेक न्यूज पहले सोशल मीडिया से फैली और बाद में कई बड़े अखबार भी इसे सच मानकर फेक न्यूज को फैलाने लगे. अखबारों के छप जाने के बाद तो सोशल मीडिया में ऐसी चर्चाओं की बाढ़ ही आ गई.
अमेरिकी मैगजीन ‘द डिप्लोमेट’ में प्रकाशित एक लेख के चीनी पत्रकार म्यू चुनशान ने दावा किया कि चीनी युवाओं के बीच भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी लोकप्रिय हैं. म्यू चुनशान सोशल मीडिया विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं और दक्षिण एशियाई राजनीति पर विशेष नजर रखते हैं.