खामी भरी सुरक्षा रणनीति के कारण कैसे असफल हो रही है माओवादी विद्रोह पर लगाम लगाने की कोशिश
छत्तीसगढ़ में ताजा माओवादी हिंसा ने हमारे सुरक्षा बलों के प्रशिक्षण और उनकी रणनीतियों की खामियां फिर उजागर की. सवाल यह भी है कि हम नागा, मिज़ो और हुर्रियत जैसे अलगाववादियों से बातें कर चुके हैं. तो माओवादियों से क्यों नहीं बात की जा सकती?
कोरोना पर अपनी ‘नाकामियां छुपाने’ के लिए तब मरकज़ का सहारा लिया था, अब कुंभ पर क्या कहेगी मोदी...
तीन करोड़ लोग अप्रैल में इस महाकुम्भ में हिस्सा लेंगे, उनमें कितने लोग पॉजिटिव होंगे और इतनी भीड़ वाले इलाके में वे कितने और लोगों को कोरोना फैलाएंगे.
जिबूती की कहानी हंबनटोटा से मिलती-जुलती है, और उसे भी चीन ने ही लिखा है
जिबूती के कतिपय प्रभावशाली लोगों को भरोसा है कि चीनी निवेश के सहारे उनका देश ‘अफ्रीका का सिंगापुर’ बन सकता है.
रैली हो या कुंभ- सियासत की खातिर कोविड को नज़रअंदाज करने का बोझ मोदी-शाह की अंतरात्मा पर हमेशा बना...
भाजपा के नेता जिस तरह बिना मास्क के विशाल रैलियां कर रहे हैं उससे यह भ्रम फैला है कि सब कुछ सामान्य है. लोगों में यह संदेश गया कि कोविड-19 का दुःस्वप्न तो बीती हुई बात हो चुकी है.
बहुसंख्यकों की तानाशाही लोकतंत्र के एकदम विपरीत, आंबेडकर का लिखा हमें फिर से पढ़ने की जरूरत
आंबेडकर मानते थे कि लोकतंत्र की पहली और सबसे जरूरी शर्त है कि बड़े पैमाने की गैर-बराबरी ना हो, हर नागरिक के साथ शासन-प्रशासन बराबरी का बर्ताव करता हो.
सातवें बेड़े ने दिखाया कि क्वाड को अमेरिकी नेतृत्व के बजाए समान अधिकार वाले सदस्यों का समूह होना होगा
नई दिल्ली को हमेशा याद रखना होगा कि क्वाड कोई सैन्य गठबंधन नहीं है.
जयशंकर की जबान फिसली, लाव्रोव का पाकिस्तान दौरा- क्यों भारत-रूस के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है
ताजा घटनाक्रम यही संकेत देता है ‘वक्त की कसौटी पर खरा उतरा’ भारत-रूस संबंध सिकुड़ गया है और इसकी वजह यह है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे की भावनाओं की पर्याप्त परवाह नहीं कर रहे हैं.
कुंभ पर चुप्पी भारतीयों की इस सोच को उजागर करती है कि सिर्फ मुसलमान ही कोविड फैलाते हैं
सत्य से अधिक मुक्तिदायक और कुछ नहीं होता. और सच ये है कि भारत में सांप्रदायिकता गहरे तक समाई हुई है.
असम में कांग्रेस के चुनाव अभियान में छिपे हैं राहुल के लिए कई सबक
कांग्रेस पार्टी ने असम में जो चुनावी रणनीति अपनाई वह 2 मई को नतीजों की घोषणा के बाद कामयाब साबित हो या नहीं, मगर राहुल गांधी इसे आगे आजमाने पर विचार कर सकते हैं.
नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक युद्ध की बात एकदम बेतुकी- बस्तर जाकर देखिए, वहां अरसे से युद्ध जारी है
लड़ाई जीतने के लिए, आपको विरोधी को अच्छे से समझने की आवश्यकता होती है. ये कोई अलगाववादी आंदोलन नहीं है, इसमें अलग राज्य की मांग नहीं है.