न कोई सबूत है, और न कोई संकेत तक है कि ‘सवाल हल करने वाले गिरोहों’ या ‘चीटिंग माफिया’ के साथ एनटीए की कोई साठगांठ है. राजनीतिक दलों के सार्वजनिक बयान ‘नीट’ के पक्ष या विपक्ष में तर्क के बिंदु नहीं बन सकते
2024 के चुनाव में अगर सबसे बड़ा राजनीतिक व्यक्तित्व किसी का निर्मित हुआ है तो वे राहुल गांधी हैं. उन्होंने अपने को साधारण जनता का नेता और मोदी को कॉरपोरेट शक्तियों का नेता साबित किया. यही वो पक्ष है जिसके कारण हार की जीत और जीत की हार का मुहावरा दोहराया जा रहा है.
मौजूदा राजनीतिक हालात ने सेना और सरकार को इस मसले पर फिर से विचार करने का मौका दिया है. कोई स्वच्छंद निर्णय न किया जाए, और किसी क्रमिक फेरबदल से बात नहीं बनेगी
संघ-भाजपा के रिश्ते का इतिहास प्रेमियों के बीच होने वाली नोक-झोंक से भरा पड़ा है, लेकिन इस सबसे शायद ही कोई बड़ा फर्क पड़ा है. यह सोचना कि संघ भाजपा नेतृत्व में कोई परिवर्तन लाएगा, उसकी मंशा और ताकत का गलत आकलन ही होगा
अगर मोदी वाजपेयी शैली का एनडीए गठबंधन चलाना चाहते हैं, तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. अगर वे तथाकथित मोदी क्रांति की ओर लौटना चाहते हैं, तो गठबंधन मौजूदा शांति से कहीं ज़्यादा मुश्किल में है.
1998 के रियासी हत्याकांड के बाद तीन संकट उभरे — करगिल युद्ध, 2001-2002 में सीमा पर सेनाओं का जमावड़ा और बालाकोट. इन सबने परमाणु शक्ति से लैस दो देशों को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया. अब पिछले सप्ताह हुआ हत्याकांड यही दिखाता है कि दोनों देश खतरनाक गतिरोध में फंसे हैं.
कुछ राज्यों में बीजेपी को जो सत्ता-विरोधी वोट हासिल हुए हैं उनके सहारे यह बात थोड़ी-बहुत छिप जा रही है कि इस बार का जनादेश केंद्र में काबिज़ बीजेपी के खिलाफ आया है.
अमेरिका भारत की चिंताओं को दूर करे और भारत पर उंगली उठाने से पहले उन उपदेशों पर खुद अमल करे जो वह दूसरों को देता है. रणनीतिक स्वायत्तता कई कारणों से भारत के हित में है