अपने हाई-टेक कैंपेन और प्रचार के लिए चर्चित भाजपा इन डिजिटल रथों को रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण जगहों पर तैनात करेगी जहां ज्यादा लोग वरिष्ठ भाजपा नेताओं के भाषण को सुन सकेंगे.
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सीपीआई ने आरजेडी से कन्हैया कुमार का समर्थन मांगा था और बेगूसराय से उम्मीदवार नहीं उतारने को कहा था लेकिन राजद ने इससे मना कर दिया था.
विपक्ष ने भी बीजेपी पर हमला करने में देर नहीं लगाई, और आरजेडी के तेजस्वी यादव ने कहा, कि पार्टी की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता हासिल करने में है, और उसे लोगों की भलाई की कोई परवाह नहीं है.
बिहार चुनाव निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कराने पर जोर देने के बाद, जबकि विपक्ष इसे थोड़ा टाले जाने की मांग कर रहा था, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी अब कह रहे हैं कि एनडीए वह फैसला ही मानेगा जो चुनाव आयोग लेगा.
जेएमएम की बिहार इकाई के प्रभारी प्रणव कुमार ने बताया, ‘बिहार में जेएमएम कुल 40 सीटों पर आरजेडी को फायदा पहुंचा सकता है. यहां आदिवासी वोटर हैं. जिन 12 सीटों पर हम दावा कर रहे हैं, वहां पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रहे हैं.’
बिहार में ज्यादातर विपक्षी दलों के पास वर्चुअल रैलियों के लिए धन और लोगों, दोनों की ही कमी है. यदि पारंपरिक रैलियां प्रतिबंधित रहीं तो इसका मतलब होगा 'अमीर पार्टियों का फायदे में रहना'.
अगर एनडीए बिहार जीत लेता है तो वह ये कह पाएगा कि कोराना और चीन के मामले में उसकी नीतियों को जनता का समर्थन हासिल है. इसका फायदा उसे पश्चिम बंगाल समेत अन्य आने वाले विधानसभा चुनावों में भी होगा.
पुराने तरीके की ‘टच-एंड-फील’ राजनीति में यकीन करने वाले नेता कोविड संकट के कारण वोटरों तक पहुंचने के अधिक तकनीकी तरीके अपनाने की दुविधा का सामना कर रहे हैं.
यह समझ से परे है कि भाजपा जब भारत की सबसे मज़बूत पार्टी की स्थिति में है, तब वह जाति जनगणना जैसे विघटनकारी कदम को क्यों उठाए. अगर राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेता ऐसी विघटनकारी राजनीति करते हैं, तो बात समझ में आती है. वे भाजपा के राजनीतिक प्रभुत्व को तोड़ने के लिए बेताब हैं, लेकिन भाजपा क्यों?