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Friday, 19 April, 2024
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राजद बोली-बिहार चुनाव के दौरान राहुल गांधी पिकनिक पर थे, हार के लिए कांग्रेस ने ‘जातिवादी राजनीति’ को जिम्मेदार बताया

राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने बिहार में महागठबंधन के एनडीए को सत्ता से बाहर करने में चूकने के पीछे राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया है. कांग्रेस को यह बात कतई रास नहीं आ रही है.

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पटना : बिहार में कांग्रेस के रवैये के कारण राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव के करीबी मुकाबले में मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने को लेकर महागठबंधन के अंदर घमासान छिड़ गया है.

राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी ने महागठबंधन के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को सत्ता से बाहर करने में नाकाम रहने के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यह कहते हुए जिम्मेदार ठहराया है कि राज्य में चुनाव प्रचार के दौरान वह शिमला में पिकनिक मना रहे थे.

तिवारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी से सीख लेनी चाहिए. वह उम्र में प्रधानमंत्री मोदी से छोटे हैं और फिर भी मात्र तीन दिन चुनाव प्रचार के लिए बिहार आए. प्रधानमंत्री मोदी यहां आए और 12 जनसभाओं को संबोधित किया.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस ने महागठबंधन में 70 सीटें लीं और इसके बावजूद प्रचार के दौरान 70 रैलियां तक आयोजित नहीं कर सकी. हमने प्रियंका गांधी को देखा तक नहीं. जब बिहार में चुनाव प्रचार पूरे चरम पर था तो राहुल गांधी शिमला में पिकनिक कर थे. क्या कोई राजनीतिक पार्टी इसी तरह चलती है.’

अपने शीर्ष नेतृत्व पर टिप्पणी से भड़की कांग्रेस ने राजद से तिवारी पर लगाम कसने को कहा है.

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कांग्रेस एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्रा ने कहा, ‘तिवारी खुद राजद में एक दरकिनार नेता हैं. यह टिप्पणी तेजस्वी यादव या राबड़ी देवी ने नहीं की है. लेकिन राजद को तिवारी पर लगाम लगानी चाहिए. वह भाजपा नेताओं की भाषा बोल रहे हैं. यह गठबंधन धर्म के खिलाफ है.’

कांग्रेस विधायक दल के नए नेता अजीत शर्मा ने कहा, ‘कांग्रेस राहुल गांधी के कारण नहीं हारी. हमारी हार राजद की जातिवादी राजनीति के कारण हुई. हमें उच्च जाति के वोट नहीं मिले.’

पार्टी प्रवक्ता हरखू झा ने भी कहा कि कांग्रेस पर अंगुली उठाने से पहले राजद को खुद आत्मावलोकन करना चाहिए। झा ने कहा, ‘पिछले विधानसभा चुनावों को ही लें तो राजद ने 2015 में 101 सीटों पर चुनाव लड़कर 80 सीटें जीती थीं, इस बार उसने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 75 सीटें जीतने में ही सफलता मिली.

तेजस्वी की पार्टी 75 सीटों हासिल करके सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद राजद के नेतृत्व वाले गठबंधन को राज्य की सत्ता तक पहुंचाने में नाकाम रही है. कांग्रेस 70 में से केवल 19 सीटें ही जीत सकी है. हालांकि, गठबंधन में वामपंथी दलों ने काफी समय बाद शानदार प्रदर्शन किया है जिन्होंने 29 में से 16 सीटें जीती हैं.

नीतीश कुमार की अगुवाई वाला एनडीए सत्ता में वापसी में कामयाब रहा है लेकिन मुख्यमंत्री की पार्टी 43 सीटों पर सिमट गई है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 74 सीटों के साथ गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में आ गई है.

भाजपा की प्रसन्नता

10 नवंबर को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से यह पहली बार नहीं है कि बेहद खराब स्ट्राइक रेट के साथ महागठबंधन के सत्ता से दूर रह जाने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया गया हो. भाकपा (माले) नेता दीपांकर भट्टाचार्य और खुद कांग्रेस के ही तारिक अनवर ने भी यही बात कही थी.

हालांकि, इस बार सीधे राहुल गांधी पर निशाना साधा गया है. पार्टी को जिस बात ने सबसे ज्यादा आहत किया है वह है इस पर खुश होकर की गई भाजपा की टिप्पणी.

केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने तिवारी के बयान का वीडियो साझा करते हुए ट्वीट में कहा, ‘शिवानंदजी राहुल गांधी को ओबामा से ज्यादा जानने लगे हैं और उन्हें एक पर्यटक राजनेता बताते हैं. फिर भी कांग्रेस चुप है.’ वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा अपने नए संस्मरण में गांधी के बारे में प्रतिकूल टिप्पणी का उल्लेख कर रहे थे.

कांग्रेस सूत्रों के अनुसार, तिवारी ने यह टिप्पणी राजद नेतृत्व से मंजूरी के बाद ही की है क्योंकि वह लालू प्रसाद के सबसे करीबी नेताओं और कुछ उन वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं जिनका तेजस्वी काफी सम्मान करते हैं. तेजस्वी ने तब भी तिवारी से साथ चलने का अनुरोध किया था कि जब वह राघोपुर से अपना नामांकन दाखिल करने जा रहे थे.

नाम न बताने के अनुरोध पर कांग्रेस के एक नेता ने कहा, ‘हम जानते हैं कि शिवानंद तिवारी को बोलने की स्वीकृति मिल गई है.’


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कांग्रेस का ‘अहंकार’

राजद की नाराजगी की वजह केवल कांग्रेस का खराब प्रदर्शन ही नहीं बल्कि उसके केंद्रीय नेतृत्व का ‘अहंकार’ भी है.

नाम न छापने की शर्त पर राजद के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘कांग्रेस ने जब जाले में एएमयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष मशकूर अहमद उस्मानी को मैदान में उतारा, तो हम जानते थे कि यह माहौल को सांप्रदायिक बना देगा क्योंकि वह जिन्ना विवाद से जुड़े थे. तेजस्वी यादव ने व्यक्तिगत रूप से राहुल गांधी को फोन करके उनकी जगह ऋषि मिश्रा, जो एक पूर्व विधायक और मिथिलांचल के प्रख्यात नेता स्वर्गीय एल.एन. मिश्रा के पोते हैं, को प्रत्याशी बनाने को कहा. पर राहुल नहीं माने.’

राजद नेता ने कहा, ‘नतीजा यह हुआ कि हम मिथिलांचल की अधिकांश सीटें हार गए. अकेले दरभंगा जिले में एनडीए ने 10 में से आठ सीटें जीत ली. यहां तक कि 50 फीसदी यादवों ने हमारे वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी और लालू के करीबी सहयोगी भोला यादव के खिलाफ वोट किया.’

उन्होंने कहा, ‘मुस्लिम और यादव बहुल आबादी वाला मिथिलांचल हमारा सबसे मजबूत गढ़ था. लेकिन कांग्रेस के अहंकार के कारण हम ज्यादातर सीटें हार गए.’ साथ ही जोड़ा कि इससे पता चलता है कि गांधी या उनके सलाहकार बिहार की राजनीति को नहीं समझते हैं.

‘तेजस्वी की गलती’

2009 के बाद से, जब कांग्रेस अकेले लड़ी थी क्योंकि लालू प्रसाद ने पार्टी को सिर्फ तीन सीटें दी थी, राजद ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर न करने को लेकर खासी सावधानी बरती क्योंकि उसने मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन की नई राह खोली. लेकिन हमेशा यह सुनिश्चित किया कि उसे कम से कम सीटें ही दी जाएं.

2015 के चुनाव में जब लालू ने नीतीश के साथ गठबंधन किया तो वह कांग्रेस को केवल 25 सीटें दिए जाने के पक्षधर थे क्योंकि उनका मानना था कि पार्टी को अधिक सीटें देने का मतलब है कि उन्हें भाजपा की झोली में डाल देना. वो तो नीतीश थे जिन्होंने सुनिश्चित किया कि कांग्रेस को 41 सीटें मिलें.

ऊपर उद्धृत एक राजद ने कहा, ‘यह गलती भी तेजस्वी पर भारी पड़ी है. उन्हें अपनी ओर से 40 सीटें ही देने पर अड़े रहना चाहिए था, लेकिन उन्होंने गठबंधन के लिए 70 सीटों का प्रस्ताव मान लिया. यह चुनाव परिणाम भविष्य में दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे का आधार बनेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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