यह संग्रह इस पर शुरुआती राय देता है कि iCET के ढांचे के भीतर किन बातों पर विचार किया जा सकता है. हर खंड में, लेखकों ने कुछ खास सिफारिशें की हैं, जिन्हें अगले 6 महीनों में, अगले साल या उसके बाद हासिल किया जा सकता है.
हालांकि मोदी सरकार के लिए उद्घाटन समारोह में मॉरल प्रेक्टिस के रूप में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को आमंत्रित करना बेहतर होगा, लेकिन कानूनी तौर पर यह जरूरी नहीं है.
बैठक में 5 देशों का शामिल न होना लग सकता है कि बहुत अधिक नहीं है, लेकिन चीन के समर्थन से पाकिस्तान जिहादियों को पोसना फिर से शुरू कर सकता है, यहां तक कि युद्ध का जोखिम भी उठा सकता है.
पॉज़िटिव इंडीजेनस लिस्ट में कम मूल्य के पुर्जों को शामिल करने से आत्मनिर्भर बनने में भारत के डिफेंस सेक्टर द्वारा की गई प्रगति को गलत तरीके से पेश किया जा सकता है.
पुलिस मुठभेड़ों को कम किया जा सकता है अगर गवाहों, न्यायाधीशों और अभियोजन पक्ष के वकील को मुकदमे में बाधा डालने वाले लोगों के विशाल नेटवर्क से बचाया जाए.
सामाजिक पिरामिड के निचले हिस्से को ध्यान में रखकर की जाने वाली राजनीति कांग्रेस की `गरीबी हटाओ` की पुराने तर्ज की राजनीति के ढर्रे पर नहीं चल सकती. ना ही इस राजनीति को वामपंथ वाली परंपरागत वर्गीय राजनीति की राह अपनानी चाहिए.
यह तो प्रशंसनीय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ वृद्धि दर्ज कर रही बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन मुकम्मिल कसौटी यह है कि क्या उसे तेज़ी से वृद्धि कर रही अर्थव्यवस्थाओं में शामिल किया जा सकता है?
मोदी की मौजूदगी बाकी तमाम मुद्दों को एक किनारे सरका कर लोगों के दिमाग पर छा जाने के मामले में अब नाकाफी है. साधारण राजनीति वापिस आ रही है और लंबे वक्त से दबे चले आ रहे मुद्दे अब सिर उठा रहे हैं.