रिजर्व बैंक के पास अब 608 अरब डॉलर का भंडार जमा हो गया है और भारत दुनिया में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला पांचवां देश बन गया है लेकिन यह अंततः रुपये को कमजोर ही करेगा.
महंगाई का मई का आंकड़ा कुछ दोषपूर्ण था, इसमें तेजी विश्व बाज़ार में कच्चे तेल की ऊंची कीमतों, जींसों की कीमतों में वृद्धि और सप्लाइ में अड़चनों के कारण आई थी.
रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि सोना गिरवी रखकर उधार लेने के आंकड़े तेजी से बढ़े हैं, दूसरे संकेतक भी यही दर्शा रहे हैं; कर्ज उपलब्ध कराना तो ठीक है लेकिन टीकाकरण को प्राथमिकता देना सबसे जरूरी है.
कोविड के नये मामलों में कमी और लॉकडाउन में धीरे-धीरे छूट देने से अगले कुछ महीने में मांग में सुधार आएगा, कुछ साप्ताहिक सूचकांक आर्थिक गतिविधियों में गति आने के संकेत दे भी रहे हैं.
आरबीआई ने आपातकालीन निधि के प्रावधान के तौर पर 20,000 करोड़ रुपये अपने पास रखे हैं. इससे भारी राजकोषीय दबाव की स्थिति में मोदी सरकार को और मदद मिल सकती थी.
चालू लॉकडाउन, आशंकाएं और अनिश्चितता आर्थिक वृद्धि दर को नीचे खींच रही हैं लेकिन महामारी की दूसरी लहर जब शांत पड़ने लगी है तब अगली तिमाही में आर्थिक कारोबार में सुधार की उम्मीद जागने लगी है.
उम्मीद है भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले साल के मुकाबले इस साल बेहतर हाल में रहेगी लेकिन कोविड की दूसरी लहर से पहले वृद्धि दर 13% से ज्यादा रहने का जो अनुमान लगाया जा रहा था उसकी जगह यह दर 11% या उससे नीचे ही रह सकती है.
रिजर्व बैंक ने छोटे ऋण लेने वालों और असंगठित क्षेत्र की इकाइयों को केंद्र में रखकर कदम उठाए हैं, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की जरूरतों को भी पूरा करने की कोशिश की है लेकिन असली बात तो यह है कि उपायों को कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है
1 मई से वैक्सीन की मांग और आपूर्ति केंद्र सरकार के काबू में नहीं रह जाएगी, कोई भी वयस्क वैक्सीन लगवाने का फैसला कर सकता है, और सभी राज्यों तथा संस्थाओं को वैक्सीन खरीदने की छूट होगी.
एक राष्ट्र, एक चुनाव के आलोचक मतदाताओं की थकान के बारे में नहीं सोच रहे हैं. जब चुनाव कई बार और लगातार होते हैं, तो शिक्षित मतदाता भी उन्हें एक अतिरिक्त छुट्टी के रूप में देखता है.