scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमदेशअर्थजगतकोविड से जूझती मोदी सरकार को राहत की जरूरत, RBI को अपने सरप्लस फंड से और धन ट्रांसफर करना चाहिए

कोविड से जूझती मोदी सरकार को राहत की जरूरत, RBI को अपने सरप्लस फंड से और धन ट्रांसफर करना चाहिए

आरबीआई ने आपातकालीन निधि के प्रावधान के तौर पर 20,000 करोड़ रुपये अपने पास रखे हैं. इससे भारी राजकोषीय दबाव की स्थिति में मोदी सरकार को और मदद मिल सकती थी.

Text Size:

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने नरेंद्र मोदी सरकार को सरप्लस फंड के रूप में 99,122 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने का फैसला किया है.

2021-22 के केंद्रीय बजट में सरकार ने आरबीआई, राष्ट्रीयकृत बैंकों और वित्तीय संस्थानों से 53,510 करोड़ रुपये के सरप्लस ट्रांसफर का अनुमान लगाया था. कर राजस्व घटने के आसार के बीच सरप्लस ट्रांसफर केंद्र को वित्तीय दबाव से राहत प्रदान करेगा.

हालांकि, 20,000 करोड़ की अन्य निधि, जो आरबीआई ने निर्धारित प्रावधानों के तहत रोकी है- से और ज्यादा मदद मिल सकती थी.


यह भी पढे़ं: तमाम संकेतकों में गिरावट, उम्मीद से कम वृद्धि दर- कोविड की इस लहर ने अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित किया


प्रॉफिट ट्रांसफर तर्कसंगत

केंद्रीय बैंक के लाभ या सीनिओरेज पर सरकार का ही अधिकार होता है और आमतौर पर यह सरकारों को वापस ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इसमें वह ब्याज भी शामिल होता है जिसे सरकार देश के लिए मुद्रा जारी करने वाले अपने केंद्रीय बैंक को ट्रांसफर करती है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

केंद्रीय बैंक की बैलेंस शीट में परिसंपत्ति में शामिल किए गए सरकारी बांड के एवज में केंद्रीय बैंक नकदी जारी करता है, जिसे इसकी देनदारियों में दर्ज किया जाता है.

चूंकि केंद्रीय बैंक को जनता को नकदी पर कोई ब्याज नहीं देना होता है, सरकार की तरफ से भुगतान किया जाने वाला पूरा ब्याज केंद्रीय बैंक की आय में शुमार होता है. इसके अलावा, केंद्रीय बैंक को बैंकिंग और अन्य वित्तीय संस्थानों से आय होती है जो उससे उधार लिए गए धन पर ब्याज का भुगतान करते हैं. केंद्रीय बैंक जहां रेपो विंडो के माध्यम से उच्च दर पर उधार देता है वहीं खुद बैंकों से रिवर्स रेपो के तौर पर कम दर पर उधार लेता है..

इसी तरह केंद्रीय बैंक कैश रिजर्व रेशियो बनाए रखने के क्रम में अपने पास सुरक्षित बैंकों की निधि के बड़े हिस्से पर कोई ब्याज भी नहीं देता है.


यह भी पढे़ं: चार बातें, जो तय करेंगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड की दूसरी लहर के झटके से कैसे उबरेगी


आरबीआई की भूमिका

भारत में, चूंकि आरबीआई सरकार का ऋण प्रबंधक भी है, धन की व्यवस्था करने के लिए ब्याज लेने के अलावा आरबीआई सरकार के ऋण प्रबंधक के रूप में अपनी भूमिका के लिए सरकार से एक कमीशन भी लेता है.

वर्ष 2020-21 के दौरान, जिसके लिए यह सरप्लस दिया गया है, आरबीआई ने सरकारी लेनदेन पर एजेंसी कमीशन के रूप में 2,611 करोड़ रुपये का शुल्क वसूला है.

खर्च की बात करें तो आरबीआई अपने कामकाज पर व्यय करता रहता है, मसलन नोटों की छपाई आदि, जिस पर पिछले वर्ष केंद्रीय बैंक ने 4,012 करोड़ रुपये खर्च किए थे. 2020-21 में आरबीआई ने कर्मचारियों को भुगतान पर 4,788 करोड़ रुपये व्यय किए.

आरबीआई ने अपना आकस्मिक जोखिम बफर (सीआरबी) बैलेंस शीट के 5.5 प्रतिशत पर बनाए रखने का फैसला किया है. यह राशि 20,710 करोड़ रुपये है. अन्य विवेकाधीन रिजर्व को हाथ नहीं लगाया गया है. नतीजतन, आरबीआई के व्यय विवरण में ‘प्रावधान’ श्रेणी के तहत राशि 2019-20 के 73,615 करोड़ रुपये की तुलना में घटकर 2020-21 में 20,710 करोड़ रुपये हो गई.

अन्य संस्थानों और नियामकों के विपरीत नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की तरफ से आरबीआई के खर्च का ऑडिट नहीं किया जाता है. यह प्रावधान ब्रिटिशकाल में तभी किया गया था जब आरबीआई की स्थापना (1935 में) हुई थी और आजाद भारत की व्यवस्था में केंद्रीय बैंक की अहमियत के कारण ऐसा अब तक जारी है.

यद्यपि दुनियाभर के अन्य केंद्रीय बैंक सरकार की तरफ से अपने खातों की ऑडिट कराते हैं और उन पर खर्च घटाने का दबाव भी होता है, जबकि आरबीआई के मामले में ऐसा कोई दबाव नहीं होता.

सरकार की तरफ से आरबीआई को जवाबदेह बनाने और उसके खर्चों को नियंत्रित करने की किसी भी कोशिश पर जमकर हो-हल्ला मचता है और उसकी स्वायत्तता को लेकर तर्क-वितर्क शुरू हो जाते हैं.


यह भी पढे़ं: कोविड की मार खाई इकोनॉमी की मदद के लिए RBI ने की अच्छी शुरुआत, अब बैंकों की आगे आने की बारी


सरकार की चुनौतियां

आरबीआई के पूंजीगत ढांचे की समीक्षा के लिए दिसंबर 2018 में बनी बिमल जालान समिति ने सिफारिश की थी कि बैलेंस शीट का 5.5 से 6.5 प्रतिशत हिस्सा सीआरबी के रूप में बनाए रखा जाना चाहिए.

इस साल, जब एक सदी की सबसे भीषण महामारी के बीच भारत एक बड़े मानवीय और आर्थिक संकट से जूझ रहा है, आरबीआई ने अतिरिक्त 20,000 करोड़ रुपये सरकार को देने के बजाये उन्हें अपने पास ही रोके रखने का फैसला किया है.

इन प्रावधानों की कोई जरूरत नहीं है और अधिकांश केंद्रीय बैंक ऐसा करते भी नहीं है क्योंकि केंद्रीय बैंक पूरी तरह से सरकार समर्थित है और इस तरह के विभिन्न कोषों की जरूरत नहीं है.

कोविड-19 संकट ने उभरती और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में ऋण स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी की है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, भारत का ऋण और जीडीपी अनुपात 2019 के अंत में 74 प्रतिशत से बढ़कर 2020 के अंत तक लगभग 90 प्रतिशत पर पहुंच गया था.

घोषित वैश्विक वित्तीय उपाय अनुमानत: 12 ट्रिलियन डॉलर या वैश्विक जीडीपी के लगभग 12 प्रतिशत के बराबर हैं. विकसित देशों ने बड़े पैमाने पर वैश्विक राजकोषीय उपाय किए हैं. उनके केंद्रीय बैंक कम ब्याज दरों और मुद्रास्फीति नियंत्रित रखने के साथ सरकारी और कॉर्पोरेट प्रतिभूतियों की खरीद कर सकते हैं और बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन वाले कदम उठा सकते हैं. उनके खजाने कम ब्याज दरों पर बड़े घाटे को वहन करने में सक्षम हैं.

कम विकसित अर्थव्यवस्थाएं और भारत सहित कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं मुश्किल दौर से गुजर रही हैं क्योंकि उन्हें पहले से ही वित्तीय संकट झेलने पड़ रहे हैं और फिर उधार लेने के विकल्प भी सीमित हैं.

2019-20 में भारत की केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 4.6 प्रतिशत हो गया था. चालू वित्त वर्ष के बजट में सरकार की तरफ से ज्यादा उधारी की घोषणा ने ब्याज दरों को बढ़ाने के लिए दबाव डाला.

सरकार के लिए अपने विनिवेश लक्ष्यों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण होने के आसार हैं.

कोविड-19 की वजह से राज्यों के स्तर पर लॉकडाउन लागू किए जाने के कारण माल और सेवा कर (जीएसटी) का संग्रह भी प्रभावित होने की संभावना है. सरकार कथित तौर पर महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों के लिए प्रोत्साहन पैकेज तैयार कर रही है.

यद्यपि महामारी का आर्थिक प्रभाव पिछली बार जितना बुरा होने की संभावना कम ही है लेकिन सरकार के वित्तीय संसाधनों पर दबाव बना रहेगा.

आरबीआई के सरप्लस फंड मिलने से कुछ राहत मिलेगी. लेकिन इसके अलावा 20,000 करोड़ रुपये का भी बेहतर इस्तेमाल टीके खरीदने या क्षतिपूर्ति के प्रावधान के लिए किया जाना चाहिए था जैसा कुछ वैक्सीन कंपनियां मांग कर रही हैं.

जालान समिति की इन सिफारिशों, कि आरबीआई को देश की परिस्थितियों की परवाह किए बिना ‘आपातकालीन निधि’ के लिए धन रखने की अनुमति दी जानी चाहिए, की तत्काल समीक्षा किए जाने की जरूरत है.

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढे़ं: Covid के गहराते संकट के बीच ऊंची महंगाई दर क्यों भारत की अगली बड़ी चिंता हो सकती है


 

share & View comments