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Thursday, 25 April, 2024
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चार बातें, जो तय करेंगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड की दूसरी लहर के झटके से कैसे उबरेगी

चालू लॉकडाउन, आशंकाएं और अनिश्चितता आर्थिक वृद्धि दर को नीचे खींच रही हैं लेकिन महामारी की दूसरी लहर जब शांत पड़ने लगी है तब अगली तिमाही में आर्थिक कारोबार में सुधार की उम्मीद जागने लगी है.

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कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कोप ने हम सबको सकते में डाल दिया है. वास्तव में इसने जबरदस्त दुख और पीड़ा पहुंचाई है. पिछले कुछ दिनों से कोविड संक्रमण के नये मामलों में कमी आने लगी है, जिससे उम्मीद को सहारा मिला है.

हालांकि दूसरी लहर अभी खत्म नहीं हुई है और नये मामलों में 2.4 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे उम्मीद बंधी है कि अर्थव्यवस्था अगली तिमाही में गतिशील होगी.

दूसरी लहर के कारण हमें लगता है कि जीडीपी की वार्षिक वृद्धि दर में गिरावट होगी, हालांकि इसके कारण जरूरी नहीं कि आर्थिक मंदी हो. पिछले साल तो अर्थव्यवस्था सिकुड़ गई थी लेकिन इस साल अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा. लेकिन उसका विस्तार उतनी तेजी से नहीं होगा जितनी की भविष्यवाणी की गई.

दिलचस्प सवाल यह है कि जो लॉकडाउन लागू है उसका क्या असर होगा, और वृद्धि दर को नीचे लाने में आशंकाओं और अनिश्चितता का क्या योगदान होगा.

महामारी का डर और स्वास्थ्य सेवा की बदहाली से डर

एक तो महामारी का डर है ही, जो स्वास्थ्य सेवा की बदहाली के डर से अलग है. दिल्ली और देश के दूसरे भागों में स्वास्थ्य सेवा नाकाम रही है. अगर लोगों को समय पर स्वास्थ्य सेवा पहुंचाई जाती तो कई लोगों की जान बच सकती थी. अब, जब दवाएं, अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन आदि फिर से उपलब्ध हो जाएंगे तब यह डर कम हो जाएगा. दूसरे शहरों में स्वास्थ्य सेवा की जैसी स्थिति बनेगी, डर और अनिश्चितता का स्तर उसी के अनुरूप होगा.

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कोविड से संक्रमित हुए 2.55 करोड़ लोगों में से 2.8 लाख लोग की मौत हो गई. इनमें से कई की जान तो ऑक्सीज़न और अस्पताल में बेड की कमी के कारण चली गई. ऑक्सीज़न की सप्लाइ और स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं में सुधार होगा तो ज्यादा लोग रोगमुक्त होने लगेंगे.


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अधिकतर लोग घर में बैठे नहीं रह सकते

संक्रमण के मामले घटेंगे तो लोग अपने घर से बाहर निकलने लगेंगे. उनके लिए कोई उपाय नहीं है क्योंकि वे लंबे समय तक घर में बैठे नहीं रह सकते.

कुछ महीने में वैक्सीन की उपलब्धता में सुधार होगा. सरकार ने 19 अप्रैल को फैसला किया कि निजी कंपनियां और संस्थान वैक्सीन हासिल करके लोगों का टीकाकरण कर सकते हैं. इसके बाद से इस मसले पर ज्यादा तेजी से काम हो रहा है. इससे आगे चलकर फायदा होगा जब बूस्टर खुराक देने की जरूरत पड़ेगी. पूरी आबादी टीकाकरण के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर नहीं रह सकती.

वैक्सीन की 18.76 करोड़ खुराक दी जा चुकी है. अब तक संक्रमित हुए 2.55 करोड़ लोगों में से 2.2 करोड़ लोग इससे उबर चुके हैं. उनमें से अधिकतर लोग सामान्य जीवन जीने लगेंगे. हाल में, पॉजिटिविटी रेट घटी है और टीकाकरण तथा कोविड के बाद इम्यूनिटी बढ़ने के कारण इसमें और गिरावट आएगी.

उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि 20 प्रतिशत लोगों को या तो रोग हो जाने के कारण या टीका लगाए जाने के कारण सुरक्षित कर लिया गया है. इससे लोगों का घर से बाहर निकलकर कामधाम करना बढ़ेगा.

हर हफ्ते मापा जाने वाला उपभोक्ता मनोदशा का सीएमआइई सूचकांक शहरों में 2 मई से 16 मई के बीच 40.83 से बढ़कर 48.17 पर पहुंच गया. ग्रामीण भारत में तो यह अभी नीचे ही है मगर शहरों में इसमें सुधार कोविड के मामलों में ठहराव पर लोगों की मनोदशा का अच्छा संकेत देता है.


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मौतों का असर

परिवार के बुजुर्ग सदस्य की मौत और युवा सदस्य की मौत में आर्थिक लिहाज से फर्क पड़ता है. परिवार चलाने वाला गुजर जाता है तो उसकी आमदनी को झटका लगता है जिसका असर मांगों पर पड़ता है. परिवार के बजट और अर्थव्यवस्था पर इस बात का असर पड़ता है कि जिसकी मृत्यु हुई है उसकी उम्र क्या है.

महामारी के इस लहर में बड़ी संख्या में युवाओं की मौत हुई है. मांगों पर इसका पहली लहर के मुक़ाबले बड़ा असर पड़ेगा. बुजुर्ग के गुजरने का परिवार के बजट पर उस तरह से बुरा असर नहीं पड़ता. युवाओं की मौत की वास्तविक संख्या से आर्थिक प्रभाव का पता चलेगा. यह आंकड़ा अभी स्पष्ट नहीं है.

भारत में और बाहर : उपभोग और मांग

फिलहाल कई कारणों से उपभोग में गिरावट आई है. पहला कारण तो आय में गिरावट है. सीएमआइई के ताजा आंकड़ों के अनुसार, शहरी भारत में 9 मई को रोजगार का प्रतिशत 33.56 था, जो 16 मई को घटकर 31.55 प्रतिशत हो गया. ग्रामीण भारत में इस अवधि में इसमें गिरावट 39.84 प्रतिशत से 36.26 प्रतिशत की आई. बेरोजगारी (या परिवार चलाने वाले की मौत) से आय को लगे झटके के मुताबिक मांग में कमी आएगी. लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह महामारी और देश के अधिकांश भागों में लॉकडाउन का परिणाम है. स्थानीय लॉकडाउन का गहरा असर देखा जा सकता है, क्योंकि कार्यस्थल के लिए आवागमन में 56 प्रतिशत की गिरावट आई है. जब स्थानीय लॉकडाउन खत्म होगा तो लोग काम पर लौटेंगे.

उपभोग में गिरावट की दूसरी वजह लॉकडाउन ही है. जिन लोगों की आय में कमी नहीं आई उनके लिए उपभोग में इसलिए कमी आई है क्योंकि खर्च के मौके—पर्यटन, रेस्तरां आदि उपलब्ध नहीं हैं. यह स्थिति कुछ महीनों तक रह सकती है लेकिन यह भी संभावना है कि ऐसे परिवार दूसरे खर्चों की ओर मुड़ सकते हैं.

भारत में घरेलू मांग भले ही स्थिर हो, अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और व्यापार में तेजी आ रही है. मई के पहले सप्ताह में निर्यातों में 80 फीसदी की वृद्धि दिखी. हम उद्योग में मजबूती भी देख सकते हैं. रिजर्व से वंचित या खराब प्रबंधन व्यवस्था वाली छोटी फ़र्में बंद हो जा सकती हैं. इसका अर्थ यह है ज्यादा मजबूत फ़र्में बची रहेंगी. लॉकडाउन में छूट मिलते ही हम आर्थिक कारोबार शुरू होने की उम्मीद कर सकते हैं, डर दूर होगा और अनिश्चितता कम होगी, जैसा कि दूसरे देशों में टीकाकरण के बाद हो रहा है.

इसके अलावा, विश्व अर्थव्यवस्था में तेजी आने पर भारत को भी महामारी की दूसरी लहर से उबरने में मदद मिलेगी.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं और रेणुका साने एनआईपीएफपी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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