scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमदेशअर्थजगतGDP के आंकड़े अर्थव्यवस्था में सुधार दिखा रहे हैं, लेकिन मुख्य बात है वैक्सिनेशन में तेजी लाना

GDP के आंकड़े अर्थव्यवस्था में सुधार दिखा रहे हैं, लेकिन मुख्य बात है वैक्सिनेशन में तेजी लाना

कोविड के नये मामलों में कमी और लॉकडाउन में धीरे-धीरे छूट देने से अगले कुछ महीने में मांग में सुधार आएगा, कुछ साप्ताहिक सूचकांक आर्थिक गतिविधियों में गति आने के संकेत दे भी रहे हैं

Text Size:

जीडीपी के जो आंकड़े इस सप्ताह जारी किए गए हैं. वे बताते हैं कि देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर आने से पहले भारतीय अर्थव्यवस्था बेहतरी के रास्ते पर थी. उपभोग और निवेश संबंधी मांग को दर्शाने वाले कई उच्च आवृत्ति सूचकांक दूसरी लहर आने के बाद अप्रैल और मई में गिरावट दर्शा रहे हैं. लेकिन अब जाकर उनमें कुछ सुधार दिखने लगा है.

लेकिन मांग में तेजी इसी पर निर्भर होगी कि हम लोगों के टीकाकरण में कितनी तेजी लाते हैं. आबादी को वायरस से सुरक्षित किए बिना आर्थिक तथा सामाजिक गतिविधियों पूरी तरह सामान्य स्तर पर लाने की छूट देने से संक्रमण के मामले फिर बढ़ने लग सकते हैं और हम जो थोड़ा-बहुत सुधार देख रहे हैं वह भी खत्म हो सकता है.

कोविड के नये मामलों में कमी और कुछ राज्यों द्वारा लॉकडाउन में धीरे-धीरे छूट देने से अगले कुछ महीने में मांग में सुधार आ सकता है. कुछ साप्ताहिक सूचकांक पिछले दो सप्ताह से आर्थिक गतिविधियों में गति आने के संकेत दे रहे हैं. मांग में वृद्धि का ग्राफ टीकाकरण की गति से और इससे तय होगा कि लोग कोविड के लिए जरूरी एहतियातों का कितना पालन करते हैं.


यह भी पढ़ेंः तमाम संकेतकों में गिरावट, उम्मीद से कम वृद्धि दर- कोविड की इस लहर ने अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित किया


जीडीपी के आंकड़े क्या कहते हैं

महामारी की दूसरी लहर आने से पहले, भारतीय अर्थव्यवस्था 2020-21 की चौथी तिमाही में जीडीपी में 1.6 प्रतिशत की वृद्धि दर से आगे बढ़ी. पूरे साल में इसमें 7.3 प्रतिशत की कमी आई. पहले तो 8 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान लगाया गया था. इससे तो यह कुछ बेहतर ही है. जीडीपी में सुधार मैनुफैक्चरिंग और निर्माण क्षेत्रों में तेज सुधार के कारण आया. लॉकडाउन के दौरान अटक गई परियोजनाएं बाद की तिमाहियों में गति पकड़ पाईं. व्यय के मोर्चे पर, निजी उपभोग में भी पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में 26 प्रतिशत की गिरावट के बाद सुधार आया.

पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कोविड के चलते लॉकडाउन के कारण घरेलू वित्तीय बचत में जीडीपी के 21 प्रतिशत के बराबर वृद्धि हुई. पूर्ण आंकड़ों के लिहाज से देखें तो कुल घरेलू वित्तीय बचत 8.1 ट्रिलियन रुपये की हुई. इससे एक साल पहले इस अवधि के लिए यह आंकड़ा 3.8 ट्रिलियन रु. था. दूसरी तिमाही में घरेलू वित्तीय बचत घटकर 4.9 ट्रिलियन रु. (जीडीपी का 10.4 प्रतिशत) हो गई. इसकी वजह शायद उच्च उपभोग और कम आय थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे खोला गया और आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू होने लगीं, घरों ने ‘जरूरी उपभोग’ से आगे बढ़कर पसंदीदा उपभोग शुरू किया. निजी उपभोग व्यय 2020-21 की पहली तिमाही में 22 ट्रिलियन रु. से बढ़कर चौथी तिमाही में 33.6 ट्रिलियन रु. हो गया.

महामारी की दूसरी लहर ने इस साल अप्रैल और मई में आर्थिक गतिविधियों पर बुरा असर डाला. मैनुफैक्चरिंग सेक्टर का एक प्रमुख सूचकांक ‘पर्चेजिंग मैनेजर इंडेक्स’ (पीएमआइ) अप्रैल में 55.5 से घटकर मई में 50.8 हो गया. सर्विस सेक्टर का पीएमआइ भी मई में सिकुड़ गया. ईंधन की मांग, कारों की बिक्री, इलेक्ट्रोनिक बिलों की संख्या, आदि दूसरे सूचकांक भी अप्रैल-मई में काफी धीमे पद गए.

अब लगता है कि कोविड की दूसरी लहर शिखर पर पहुंचने के बाद मई के उत्तरार्द्ध से उतार पर है. कोविड के नये मामले कम हो रहे हैं और देश के करीब आधे हिस्से से खबरें आ रही हैं कि पॉजिटिविटी रेट 5 प्रतिशत नीचे चली गई है.


यह भी पढ़ेंः चार बातें, जो तय करेंगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड की दूसरी लहर के झटके से कैसे उबरेगी


सुधार के चिह्न

कोविड के मामलों की घटती संख्या के साथ अर्थव्यवस्था पटरी पर आने के शुरुआती संकेत दे रही है. 30 मई को खत्म हुए सप्ताह में रोजगार का साप्ताहिक आंकड़ा 33.58 प्रतिशत से बढ़कर 34.22 प्रतिशत पर पहुंच गया. दूसरे साप्ताहिक आर्थिक आंकड़े मसलन बिजली उत्पादन, गतिशीलता के संकेतक, ट्रैफिक से होने वाले गैस में उत्सर्जन आदि के आंकड़ों में पिछले दो सप्ताह में धीरे-धीरे सुधार दिख रहा है. कोविड के मामले घट रहे हैं तो प्रवासी मजदूरों की शहरों में वापसी के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं. कुछ राज्यों ने लॉकडाउन में छूट देना शुरू कर दिया है, तो कुछ ने जून के मध्य तक लॉकडाउन बढ़ा दिया है. लॉकडाउन से पूरी मुक्ति तो धीरे-धीरे ही होगी लेकिन आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने की गति चालू वर्ष की दूसरी छमाही में तेज हो सकती है.

महामारी की पहली लहर में ग्रामीण क्षेत्रों से मांग रुक गई थी, मगर दूसरी लहर ने ग्रामीण क्षेत्र को गहरी चोट पहुंचाई है. सरकार ग्रामीण क्षेत्रों को राहत देने के उन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने या फिर से शुरू करने पर विचार कर रही है, जिन्हें पहली लहर के दौरान शुरू किया गया था. इनमें नकदी और जींसों की आपूर्ति, असंगठित क्षेत्र के कामगारों को राहत देने और ईपीएफ सबसीडी का नवीकरण जैसे कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं. इन उपायों से ग्रामीण इलाकों में उपभोग संबंधी मांगों में सुधार हो सकता है.

इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी स्कीम में ऐसे बदलाव किए गए हैं ताकि ज्यादा सेक्टर नकदी की कमी से उबर सकें.
रिजर्व बैंक जून में अपनी मौद्रिक नीति कमिटी की बैठक में घोषणा कर सकता है कि महामारी से प्रभावित सेक्टरों को उधार देने के अतिरिक्त कदम उठाए जा सकते हैं. इन कदमों से कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन मुख्य असर आबादी की सुरक्षा में सुधार से ही पड़ सकता है. विकसित देशों का अनुभव बताता है कि आबादी के बड़े हिस्से के टीकाकरण से आर्थिक सक्रियता बढ़ती है और निजी उपभोग उम्मीद से ज्यादा तेजी से बढ़ता है.

सरकार ने प्रतिदिन 1 करोड़ टीके लगाने का लक्ष्य तय किया है, जिससे संक्रमण का खतरा घटेगा. इससे उपभोक्ताओं की भावनाओं में उछल आ सकता है जिसके कारण आगामी महीनों में मांग में तेजी आ सकती है. उपभोग में मजबूत सुधार से निवेशों में भी सुधार आएगा जबकि व्यवसाय अतिरिक्त क्षमता से जूझ रहे हैं.

इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.


यह भी पढ़ेंः कोविड से जूझती मोदी सरकार को राहत की जरूरत, RBI को अपने सरप्लस फंड से और धन ट्रांसफर करना चाहिए


 

share & View comments