या तो यह रेंकिंग के दोषपूर्ण तरीके को उजागर करता है या शुद्ध पूर्वाग्रह को. इससे इन सबको नकारने की या यह दावा करने प्रवृत्ति पैदा होती है लेकिन भारत में व्यवस्थागत दोषों की ओर से आंखें नहीं मूँदी जा सकतीं.
हालांकि, एसटी का दर्जा देने में समय लगेगा. लेकिन, मोदी सरकार मेइती समुदाय की आशंकाओं को दूर करने के लिए पूरे मणिपुर में अनुच्छेद 371 के प्रावधानों का विस्तार करने पर विचार कर सकती है.
यूपी में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव योगी आदित्यनाथ और उनके शासन के बारे में हैं. गैंगस्टर मुठभेड़ों पर उनका माफिया-को-मिट्टी-में-मिला-देंगे वाला वाला बयान आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
सत्ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस नेताओं की खीज समझ में आती है लेकिन जिस तरह से वह मोदी विरोध के मुद्दे हर बार पहला मुद्दा बना देती है उससे सत्ताधारी दल की कमजोरियों को उजागर करने वाले बाकी अहम मुद्दे गौण हो जाते हैं.
अब बड़े बिलबोर्डस् लगे दिखाई नहीं देते. ना ही दीवारों पर चुनावी इश्तहार लिखे हैं. इधर-उधर चंद फ्लेक्स लगे जरूर नजर आ जायेंगे लेकिन चुनाव-प्रचार करती हुई कोई गाड़ी शायद ही देखने को मिले. कर्नाटक चुनाव मानो एकदम से भूमिगत हो चला है.
दोनों की आलोचना के लिए मसाला तो है लेकिन माल-असबाब का निर्यात अब भारत की व्यापार में वृद्धि करने वाला ड्राइवर नहीं रह गया है, और पीएलआइ के मद में पांच साल में जीडीपी के 1 फीसदी के 10वें हिस्से के बराबर ही जाएगा.
नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में 2018 में ये फैसला हुआ कि 2021 की जनगणना में ओबीसी की गिनती की जाएगी. राजनाथ सिंह ने इसकी घोषणा भी कर दी थी. लेकिन 2019 का चुनाव निपटने के बाद सरकार ने अपना रुख बदल लिया.