अयोध्या में आज का समारोह कोई धार्मिक या फिर आस्था-केंद्रित समारोह नहीं है. ये विशुद्ध राजनीतिक कर्मकांड है, सीधे-सीधे ये जीत का कर्मकांड हैं. इस एक समारोह में ताकत के कई रूप घुले-मिले हैं.
राम मंदिर का मुद्दा अस्सी के दशक तक बीजेपी और उसकी पूर्ववर्ती पार्टी भारतीय जनसंघ या फिर इसके मूल संगठन आरएसएस का मुख्य मुद्दा नहीं था. यह मुद्दा मूल रूप से अखिल भारतीय हिंदू महासभा का था जिसे बीजेपी ने बाद में अपना लिया.
आंबेडकर गांधी के राम और राम राज्य के विचार से तनिक भी प्रभावित नहीं थे. बल्कि राम और रामराज्य को लेकर उनकी दृष्टि आलोचनात्मक रही और इसे उन्होंने विस्तार से दर्ज भी किया है.
पूर्व उप-मुख्यमंत्री बेग कह रहे हैं—एक साल पहले अनुच्छेद 370 को हटाते हुए दावा किया गया था कि इससे वहां के लोगों में राष्ट्रवादी भावना बढ़ेगी मगर हकीकत में तो इसके कोई लक्षण दिख नहीं रहे हैं.
कुछ लेखकों, स्तंभकारों ने बहुसंख्यकवाद यानी मैजोरिटेरियन राजनीति के खतरों की आशंका जताई है. लेकिन भारतीय संविधान की संरचना ऐसी है कि सभी समुदायों के लिए न्याय और खुशहाली का पर्याप्त प्रायोजन है.
भारतीय सरकार ने जनता का मनोबल शांत करने की कोशिश की, जैसे कि कहा ‘ऑपरेशन सिंदूर अभी भी जारी है’, लेकिन साफ है कि ऐसा नहीं है. वरना हम दुश्मन के साथ क्रिकेट क्यों खेल रहे होंगे?