भारत में आयकर बहुत ऊंची आय पर लगना शुरू होता है और बेहद कम दरों पर लगता है इसलिए करदाताओं की संख्या कम है, ऊपर से सरकार के चुनावी दांव समस्या को और गंभीर बनाते रहते हैं.
मोदी और शाह के बीच सत्ता का ऐसा अनूठा समीकरण है जैसा न तो नेहरू-पटेल के बीच था और न ही वाजपेयी-आडवाणी के बीच था. लेकिन दिल्ली में पार्टी की हार के बाद शाह ने अपने राजनीतिक करियर के नये अपरिचित दौर में कदम रख दिया है.
चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी ने महिला मुद्दों को लेकर संवेदनशील पार्टी की छवि पेश करने की कोशिशें की थीं. चाहे बात मेट्रो में महिलाओं की फ्री यात्रा के प्रस्ताव की हो या फिर बसों में महिलाओं का किराया माफ करने की.
चुनावी कामयाबी के लिए राष्ट्रवाद और धर्म के साथ समाजवाद का घालमेल एक रामबाण नुस्खा है, और ‘आप’ जैसी छोटी-सी पार्टी ने साबित कर दिया है कि यह नुस्खा भाजपा के विरोधियों की पहुंच से कतई दूर नहीं है.
आम आदमी पार्टी के बारे में विचित्र लगने वाली बात ये नहीं कि वो रुढ़ हो चले इन नियमों की लकीर पर चली बल्कि अचरज में डालने वाली बात ये है कि उसने बड़ी तेजी और त्वरा से इन नियमों को अपना लिया.
इस यात्रा को भले ही ज़्यादा तवज्जो नहीं मिली, लेकिन इसने चुपचाप मोहब्बत की दुकान से एक कदम आगे बढ़कर अन्याय के शिकार अलग-अलग वर्गों के बीच दर्द का रिश्ता बना दिया जो भविष्य की राजनीति का आधार हो सकता है.
कोलकाता, 28 मार्च (भाषा) तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने मालदाहा उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार खगेन मुर्मू के खिलाफ बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयोग से...