सुनील अरोड़ा, जो दिसंबर में मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में प्रभारी होंगे, होने वाले आम चुनाव की समाप्ति तक केवल 10 विधान सभा चुनाव की देख रेख कर चुके होंगे जो कि 2009 और 2014 में रहे उनके पूर्ववर्तियों के आधे अनुभव से भी कम है।
अधिकांश विश्वविद्यालयों ने केवल राजनेताओं के नाम पर चेयर्स स्थापित कर रखी हैं खासकर उस पार्टी की विचारधारा को ध्यान में रखकर जो कि केन्द्र की सत्ता में हैं।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के आलोचक मतदाताओं की थकान के बारे में नहीं सोच रहे हैं. जब चुनाव कई बार और लगातार होते हैं, तो शिक्षित मतदाता भी उन्हें एक अतिरिक्त छुट्टी के रूप में देखता है.