scorecardresearch
Wednesday, 24 April, 2024
होमएजुकेशनकिस्सा कुर्सी का: भारतीय विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिकों से ज़्यादा राजनैतिक विचारक हैं पहली पसंद

किस्सा कुर्सी का: भारतीय विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिकों से ज़्यादा राजनैतिक विचारक हैं पहली पसंद

Text Size:

अधिकांश विश्वविद्यालयों ने केवल राजनेताओं के नाम पर चेयर्स स्थापित कर रखी हैं खासकर उस पार्टी की विचारधारा को ध्यान में रखकर जो कि केन्द्र की सत्ता में हैं।

‘मेट्रो मैन’ ई. श्रीधरन, नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर और सी.वी. रमन विश्व प्रसिद्ध मार्गदर्शक हो सकते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय विश्वविद्यालय आने वाली पीढ़ियों के बीच में उनकी विरासत को पनपने देने की इच्छा नही रखते हैं।

पूरे भारत के महापुरुषों के नाम पर चेयर्स स्थापित करने के केंद्र सरकार के सुझावों को विश्वविद्यालयों द्वारा बहुत रूखी प्रतिक्रिया मिली है।

दिप्रिंट द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार स्थापित की गई कुछ चेयर्स का नाम प्रमुख राजनेताओं के नाम पर रखा गया है।

आरटीआई अधिनियम के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी से पता चलता है कि राज्य और केंद्र दोनों के अधिकांश विश्वविद्यालयों ने केंद्र में राजनीतिक दूरदर्शिता की विचारधारा को ध्यान में रखते हुए राजीव गांधी, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, बाबू जगजीवन राम, दयानंद सरस्वती और दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर यूजीसी द्वारा बनाई गई चेयर्स स्थापित की हैं।

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

अन्य क्षेत्रों से दिग्गजों के सम्मान में स्थापित की गईं चेयर्स हमेशा रिक्त रहती हैं। इनमें साहित्य के लिए रवींद्रनाथ टैगोर की चेयर, भौतिकी के लिए सी.वी रमन की चेयर, महिला सशक्तीकरण, शांति और मानवाधिकारों के लिए मदर टेरेसा की चेयर, अर्थशास्त्र के लिए अमर्त्य सेन की चेयर, अंतरिक्ष विज्ञान के लिए डॉ. होमी जहांगीर भाभा की चेयर, जीवविज्ञान के लिए हरगोबिंद खुराना की चेयर, और शहरी विकास के लिए ई. श्रीधरन की चेयर शामिल हैं।

‘श्वेत क्रांति के जनक’ वर्गीस कुरियन के नाम पर भी एक चेयर का प्रस्ताव विचाराधीन है।

पॉलिटिकल फ्लेवर

एक यूजीसी अधिकारी ने अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि, “इनमें से अधिकतर चेयर्स सिर्फ नाम के लिए हैं। कांग्रेस सरकार के अन्तर्गत, राजीव गांधी, जवाहरलाल नेहरू के नाम पर चेयर्स स्थापित की गईं और बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद वे अपने विचारकों के नाम पर चेयर्स स्थापित कर रहे हैं।”

अधिकारी ने कहा “हालांकि, तथ्य यह है कि इन चेयर्स के अन्तर्गत कोई अर्थपूर्ण कार्य नहीं हो रहा है और हम सिर्फ एक तर्क साबित करने के लिए एक के बाद एक चेयर जोड़ते जा रहे हैं।”

अधिकारी ने कहा कि “राजीव गांधी की सूचना और कंप्यूटर प्रौद्योगिकी की चेयर, एकमात्र चेयर है जिसके अन्तर्गत महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। लेकिन जब से नई सरकार सत्ता में आई है तब से किसी भी नये विश्वविद्यालय ने उस चेयर के लिए आवेदन नहीं किया है।

यूजीसी द्वारा वित्त पोषित

महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहन विचार के लिये विश्वविद्यालय प्रणाली के अकादमिक संसाधनों की समृद्धि हेतु यूजीसी अक्सर सरकार के दिशा-निर्देश में चेयर स्थापित करती है। यूजीसी ने नोबेल पुरस्कार विजेताओं और अन्य महान व्यक्तियों के नाम पर चेयर्स स्थापित की हैं जो भारतीय नागरिक हैं या भारतीय मूल के हैं।

ये चेयर्स महान व्यक्तियों के लिये, नोबेल पुरस्कार विजेताओं और अपने योगदान के क्षेत्र में श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए स्थापित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, शिक्षा, उर्दू और अरबी साहित्य और स्वतंत्रता आंदोलन में अनुसंधान करने के लिए मौलाना अब्दुल कलाम आजाद की चेयर है।

चेयर्स की भारतीय प्रणाली पाश्चात्य की कार्यप्रणाली से अलग है जहां समाजसेवी या बड़े व्यवसायों द्वारा चेयर्स किसी विशेष विषय के अनुसंधान को वित्तपोषित करने के लिए स्थापित की जाती हैं। व्यक्तियों के पास और व्यक्तिगत कारण भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, यह हो सकता है कि दाता के परिवार का कोई सदस्य अल्झाइमर से पीड़ित हो और वे उस क्षेत्र में अग्रिम अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए एक भेंट देना चाहते हों। साथ ही, शोधकर्ताओं के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि उस व्यक्ति के काम का अध्ययन करें जिसके नाम पर चेयर स्थापित की गई है।

पिछले 10 वर्षों में, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शोध के लिए वैज्ञानिकों, कलाकारों और राजनेताओं समेत प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों के सम्मान में लगभग 30 कुर्सियों को मंजूरी दे दी है।

चेयर्स के तहत अनुसंधान  के लिए यूजीसी पांच साल के लिए 100 प्रतिशत वित्त पोषण प्रदान करता है, जो काम की समीक्षा के बाद दो साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। आयोग पांच साल की अवधि के लिए प्रत्येक चेयर पर कम से कम 6 लाख रुपये खर्च करता है।

आवेदन के लिए, एक विश्वविद्यालय अपने विभागों में चेयर की स्थापना के लिए पहले यूजीसी को एक प्रस्ताव भेजता है। एक बार आयोग द्वारा अनुमोदित होने के बाद, सम्बंधित विभाग विषय-विशेष पर काम शुरू कर सकता है।

आधे मन से की गयी पहल

हालांकि, अकादमी के सदस्य, उस नीति पर सवाल करते हैं, जिसके अंतर्गत यूजीसी पांच साल की समय सीमा में चेयर्स की स्थापना की उम्मीद करता है। उन्होंने कहा कि समय सीमा किसी क्षेत्र में होने वाले संपूर्ण शोध के विचार को नाकाम कर देती है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक पेंटल ने दिप्रिंट को बताया कि, “चेयर स्थापित करने का पूरा विचार उत्साहहीन है। जब सरकार चाहती है कि विश्वविद्यालय कुछ शोध कार्य करे, तो यह केवल पांच वर्षों में कैसे किया जा सकता है?

“यही कारण है कि अधिकांश विश्वविद्यालय अमर्त्य सेन, सी. वी रमन और ई.श्रीधरन जैसी प्रतिष्ठित चेयर्स का चुनाव नहीं करते हैं क्यूंकि सिर्फ पांच वर्षों में वे क्या काम करेंगे? ”

उन्होंने कहा कि मौजूदा चेयर्स पर भी अल्प शोध हो रहें हैं। उन्होंने ये भी कहा, “कुछ विश्वविद्यालय वर्तमान सरकार को खुश करने के लिए राजनेताओं के नाम पर चेयर्स लेते हैं, लेकिन इन चेयर्स के तहत शायद ही कोई शोध होता है।”

Read in English: Indian universities prefer politicians over scientists & engineers when it comes to chairs

share & View comments