2018 में तटीय कर्नाटक की 19 में से 16 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने अपने कई मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है. इस तटीय और मलनाड जिलों में बीजेपी हिंदुत्व और मोदी ब्रांड के भरोसे ताल ठोक रही है.
यूपी में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव योगी आदित्यनाथ और उनके शासन के बारे में हैं. गैंगस्टर मुठभेड़ों पर उनका माफिया-को-मिट्टी-में-मिला-देंगे वाला वाला बयान आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार 8 मई को शाम 5 बजे थम गया. चुनाव के लिए वोटिंग 10 मई को होगी, जबकि चुनाव परिणाम 13 मई को आएंगे. इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने है जबकि जेडीएस मुकाबले को त्रिशंकु बना रही है.
सत्ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस नेताओं की खीज समझ में आती है लेकिन जिस तरह से वह मोदी विरोध के मुद्दे हर बार पहला मुद्दा बना देती है उससे सत्ताधारी दल की कमजोरियों को उजागर करने वाले बाकी अहम मुद्दे गौण हो जाते हैं.
बेलगावी कित्तूर-कर्नाटक का संभागीय मुख्यालय है, जहां लिंगायत समुदाय संभवतः सबसे प्रभावशाली हैं. समुदाय के लोगों का कहना है कि मतदान से पहले उनके पास विचार-विमर्श करने के लिए बहुत कुछ है.
कर्नाटक की 58 सीटों के मतदाताओं ने 2008, 2013 और 2018 में एक ही पार्टी को चुना. इनमें से 25 सीटें कांग्रेस के पास हैं, 23 बीजेपी के पास हैं और 10 जद (एस) के खाते में हैं.
अब बड़े बिलबोर्डस् लगे दिखाई नहीं देते. ना ही दीवारों पर चुनावी इश्तहार लिखे हैं. इधर-उधर चंद फ्लेक्स लगे जरूर नजर आ जायेंगे लेकिन चुनाव-प्रचार करती हुई कोई गाड़ी शायद ही देखने को मिले. कर्नाटक चुनाव मानो एकदम से भूमिगत हो चला है.
राहुल गांधी ने बेंगलुरु के एक होटल में इन वर्कर्स को कांग्रेस की उनके लिए 3,000 करोड़ रुपये कोष का वेलफेयर बोर्ड बनाने और असंगठित क्षेत्र के गिग श्रमिकों और अन्य श्रमिकों के लिए प्रति घंटा न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करने की बात बताई.
एक राष्ट्र, एक चुनाव के आलोचक मतदाताओं की थकान के बारे में नहीं सोच रहे हैं. जब चुनाव कई बार और लगातार होते हैं, तो शिक्षित मतदाता भी उन्हें एक अतिरिक्त छुट्टी के रूप में देखता है.