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Thursday, 25 April, 2024
होमचुनावकर्नाटक विधानसभा चुनाव‘विकास में पीछे लेकिन हिंदुत्व पर भरोसा’, तटीय कर्नाटक के लोग अधूरे वादे के बावजूद BJP के साथ हैं

‘विकास में पीछे लेकिन हिंदुत्व पर भरोसा’, तटीय कर्नाटक के लोग अधूरे वादे के बावजूद BJP के साथ हैं

2018 में तटीय कर्नाटक की 19 में से 16 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने अपने कई मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया है. इस तटीय और मलनाड जिलों में बीजेपी हिंदुत्व और मोदी ब्रांड के भरोसे ताल ठोक रही है.

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उडुपी/दक्षिण कन्नड़/शिवमोग्गा: उडुपी के करकला में राजमार्ग के किनारे बसा एक छोटा सा शहर हेब्री है. जहां एक प्राइवेट फैक्ट्री में लगभग 15 महिलाएं काजू की छंटाई का काम करती हैं. चतुराई से किया जानेवाला यह काम खत्म कर महिलाएं जब अपने घर जाती है तो यहां चारों ओर एकदम सन्नाटा छा जाता है. यहां बनने वाले अधिकांश काजू वैश्विक बाजारों में निर्यात किए जाते हैं.

छंटाई खत्म करने के बाद उन्हें टिन की छत के नीचे लाइन लगाने के लिए कहा जाता है जहां काजू को सूखने के लिए छोड़ दिया गया है. उसी वक्त वहां हिंदुत्ववादी संगठन श्री राम सेना के विवादास्पद प्रमुख प्रमोद मुथालिक कर्नाटक विधानसभा चुनाव का प्रचार करने पहुंचते हैं जिसके लिए 10 मई को मतदान होने वाला है.

वह लोगों से कहते हैं, ‘करकला के विधायक पिछले तीन कार्यकाल से यहां से जीत रहे हैं. बीते 15 वर्षों से वह यहां से विधायक हैं. लेकिन आज भी यहां सड़कें और पेयजल की व्यवस्था नहीं हो पाई है. उन्होंने केवल मुख्य सड़कों की मरम्मत करने पर ध्यान दिया, लेकिन गांवों के अंदर लोग दयनीय स्थिति में रहते हैं. मैं पैसा कमाने नहीं आया हूं, बल्कि आपको यह दिखाने आया हूं कि विकास कैसे किया जा सकता है.’ वह मतदाताओं से कहते हैं. 

Women at work at private factory in Hebri | Sharan Poovanna | ThePrint
हेब्री में एक काजू की प्राइवेट फैक्ट्री में काम करती महिला | फोटो: शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

मुतालिक करकला विधानसभा सीट से बीजेपी के सुनील कुमार के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. सुनील कुमार ऊर्जा, कन्नड़ और संस्कृति मंत्री भी हैं. कभी कर्नाटक में बीजेपी के सबसे कट्टर समर्थकों में गिने जाने वाले मुथालिक अब कहते हैं कि ‘बढ़ते भ्रष्टाचार और विकास की कमी’ के कारण उनका पार्टी और प्रशासन से मोहभंग हो गया है.

वह कहते हैं, ‘राज्य में बहुत अधिक भ्रष्टाचार है. वर्तमान विधायक हिंदुत्व के मुद्दें को लेकर चुनाव जीते थे लेकिन अब वह उसे भूल गए हैं. मैं हिंदुत्व को वापस लाने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए लड़ रहा हूं.’

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प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व ब्रांड और विकास कार्य – जिसे ‘मोदित्व’ नाम दिया गया है – की कर्नाटक के तटीय और मलनाड जिलों में काफी प्रसिद्धि है. 2018 में बीजेपी ने राज्य के तीन तटीय जिलों- उत्तर कन्नड़, दक्षिण कन्नड़ और उडुपी की 19 में से 16 विधानसभा सीटें जीती थीं.

लेकिन इस बार पार्टी ने कई नए चेहरों को मैदान में उतारा है, और पुराने विधायकों का टिकट काट दिया है.  

हेब्री निवासी 68 वर्षीय नारायण रागीहक्लू कहते हैं, ‘इस क्षेत्र के अधिकांश मतदाता सिर्फ हिंदुत्व के लिए बीजेपी को वोट करते हैं. और साथ काम करने को तैयार हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के वैचारिक प्रतिबद्धता को अधिक महत्व देते हैं.’ ‘मोरंगई मेले बेला हचिउरवा माद्री,’ एक कहावत का हवाला देते हुए वह कहते हैं कि बीजेपी ने उन लोगों की कोहनी पर गुड़ चिपकाया है जो न तो इसे चख सकते हैं और न ही देख सकते हैं.


यह भी पढ़ें: ‘हमें BJP की जरूरत नहीं’— कर्नाटक चुनाव से पहले लिंगायतों का एक धड़ा कांग्रेस के पक्ष में क्यों झुका


‘नम्माडू’ बीजेपी

सुबह के 7 बज रहे हैं और दो बुजुर्ग महिलाएं एक खाली टोकरे पर बैठी हैं. दोनों उडुपी के मालपे बंदरगाह में बहुतायत पाई जाने वाली मछलियों की एक ग्रुपर प्रजाति ‘मुरु मीनू’ को उतारने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं. यह मछली तटीय कर्नाटक में पाई जाने वाली अपनी तरह की सबसे बड़ी मछलियों में से एक है.

वहां मछली और खराब हो चुके केकड़े की काफी तेज गंध फैली हुई है. साथ ही पिघलती बर्फ ने निकली हुई पानी फर्श पर चारों ओर बिखरी हुई है. इसके अलावा जलते हुए डीजल की गंध भी काफी आ रही है. 

Fish market at Malpe Bandar in Udupi | Sharan Poovanna | ThePrint
उडुपी के मालपे बंदरगाह का मछली बाजार | फोटो: शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

कुछ भगवा झंडे बंदरगाह के चारों ओर बिखरे हुए हैं. स्थानीय बीजेपी उम्मीदवार यशपाल सुवर्णा के समर्थन में पिछले दिनों यहां एक बाइक रैली आयोजित की गई थी, जिसमें इस झंडे का इस्तेमाल किया गया था. यशपाल सुवर्णा, जो दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिले के सहकारी मछली विपणन संघ के अध्यक्ष भी हैं, इस पद पर अपना चौथा कार्यकाल पूरा कर रहे हैं. 

बीजेपी ने उडुपी से मौजूदा विधायक रघुपति भट का टिकट काट दिया क्योंकि स्थानीय लोगों द्वारा उनपर ‘भ्रष्ट’ और ‘खराब चरित्र’ के व्यक्ति होने का आरोप लगाया गया था. उसकी जगह बीजेपी ने सुवर्णा को मैदान में उतारा है. सुवर्णा ने कथित तौर पर हिजाब पहनने वाली छात्राओं को ‘आतंकवादी’ कहा था जिसके लिए उनके खिलाफ ‘आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला’ भी दर्ज करवाया गया था.

जैसा कि मीडिया द्वारा रिपोर्ट किया गया था, 2005 में सुवर्णा भी उस भीड़ का हिस्सा थे, जिसने एक पिता और पुत्र को निर्वस्त्र कर घुमाया था, जो कथित तौर पशु व्यापारी थे.

यह भी माना जाता है कि उन्होंने हिजाब विवाद को हवा देने और इलाके में गौ रक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. सुवर्णा ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘एक हिंदू होने के नाते, मुझे उडुपी में बीजेपी का उम्मीदवार होने पर अत्यंत गर्व है.’

इस बीच एक 62 वर्षीय मालपे निवासी गुलाबी से जब पूछा गया कि उनके लिए चुनाव क्या है और इससे उन्हें क्या फर्क पड़ता है, तो उन्होंने कहा, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सत्ता में कौन आता है, कौन नहीं. हमें जीवित रहने के लिए हर दिन संघर्ष करना पड़ता है.’

Fishermen at work at Udupi's Malpe Bandar | Sharan Poovanna | ThePrint
उडुपी के मालपे बंदरगाह पर मछुआरे | फोटो: शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

एक अन्य मालपे निवासी 61 वर्षीय सुमित्रा ने भी उनकी बातों से सहमति व्यक्त की. उन्होंने कहा, ‘चाहे कोई भी सत्ता में आए, हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा.’

करीब 20 मीटर दूर एक दुपहिया वाहन के पास दो आदमी खड़े होकर बातें कर रहे हैं.

नाम न छापने की शर्त पर उसमें से एक ने दिप्रिंट से कहा, ‘मछली पकड़ना धीरे-धीरे कम हो रहा है और उसकी कीमतें भी कम हो रही हैं. लेकिन डीजल का रेट काफी बढ़ गया है. गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए हर बार नाव से जाने पर लगभग 6 लाख रुपये का खर्च आता है. और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पकड़ी गई मछली का रेट क्या है. हमें डीजल का बिल, बोर्ड पर 10 आदमियों के लिए भोजन और मछलियों को रखने के लिए बर्फ खर्च आता है. यह एक जुए की तरह है.’ दोनों बंदरगाह पर काम करते हैं और कहते हैं कि नाम नहीं छापा जाए, पता नहीं उनकी बातों को कैसे लिया जाएगा. 

दिप्रिंट ने जिन तीन मालपे निवासियों से बात की, वे अलग-अलग आर्थिक पृष्ठभूमि से हैं. लेकिन तीनों में जो चीज कॉमन है वह यह है कि तीनों बीजेपी के समर्थक हैं. वह बीजेपी का समर्थन सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि बीजेपी एकमात्र पार्टी है जो ‘हिंदुत्व’ के लिए खड़ी है. वे कन्नड़ में कहते हैं, ‘नम्मादु बीजेपी (हमारी पार्टी बीजेपी है)’ और वह आगे कहते हैं कि बीजेपी ही एकमात्र पार्टी है जो ‘हिंदुत्व की रक्षा करती है’.

28 वर्षीय मालपे निवासी नितिन दिप्रिंट से कहते हैं, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यहां से कौन चुनाव लड़ता है. कोई भी लड़े जीतेगी बीजेपी.’ नितिन मछली खरीदने और बेचने का काम करते हैं. उडुपी में एक वैन चालक दिनेश शेट ने कहा, ‘हमारी कुछ समस्याएं हैं जैसे पानी से संबंधित, लेकिन यह बीजेपी का गढ़ हैं. यहां मोदी चर्चित हैं.’

तटीय कर्नाटक में बीजेपी के समर्थन पर, शरण कुमार (पंपवेल) जो विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के दक्षिणी कर्नाटक  के क्षेत्रीय प्रमुख हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि यहां ‘भ्रष्टाचार का सवाल ही नहीं उठता’. उन्होंने कहा, ‘चाहे वे (उम्मीदवार) कोई भी आरोप लगाएं, कार्यकर्ता केवल इस आधार पर मेहनत करते हैं कि इन विधायकों ने हिंदुत्व के लिए कितना कुछ किया है.’

पिछले साल अप्रैल में, एक निजी ठेकेदार और हिंदू वाहिनी नामक एक हिंदुत्ववादी संगठन के राष्ट्रीय सचिव संतोष के. पाटिल ने उडुपी के एक होटल में आत्महत्या कर ली थी. पाटिल ने दोस्तों और परिवार को भेजे अपने आखिरी मैसेज में के.एस. ईश्वरप्पा, तत्कालीन ग्रामीण विकास और पंचायत राज मंत्री और शिवमोग्गा शहर के बीजेपी विधायक, पर कमीशन की मांग करने और उन्हें मानसिक तौर पर परेशान करने का आरोप लगाया था.

पाटिल यह खतरनाक कदम उठाने से कुछ दिन पहले ही इस रिपोर्टर से कहा था, ‘हम नहीं जानते थे कि हमारे अपने लोग ही हमारे साथ ऐसा करेंगे.’ 

‘व्यापार और हिंदुत्व को नहीं मिला सकते’

मोदी के हिंदुत्व को बढ़ावा देने की लोकप्रियता तीन तटीय जिलों की सीमा से लगे क्षेत्रों में भी काफी चर्चित है. मामला शिवमोग्गा जिले का है, जहां शिकारीपुरा सीट पर अहम मुकाबला है.

करकला से लगभग 175 किमी पूर्व में, एक टोपी पहने व्यक्ति ट्रैफिक को एक ही लेन पर ले जाने के लिए सड़क के बीचों-बीच लाल झंडा लिए खड़ा है. जबकि तीन आदमी चिलचिलाती धूप में शिकारीपुरा मुख्य राजमार्ग के टूटे हिस्से पर डामर डालने के लिए बहादुरी के साथ काम कर रहे हैं. 

वहीं किसी गांव की ओर जा रही एक सड़क राजमार्ग से अलग होती है. राजमार्ग से अलग होते ही गांव जाने वाली यह सड़क कीचड़ के ढेर और खुली नालियों से बदल जाता है.

Road to Shikaripura | Sharan Poovanna | ThePrint
शिकारीपुरा जाने वाली सड़क | फोटो: शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

शिकारीपुरा से बीजेपी उम्मीदवार विजयेंद्र भद्रपुरा गांव में प्रचार कर रहे हैं. वहां वह अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, भाई बी.वाई. राघवेंद्र (शिवमोग्गा सांसद) और पीएम नरेंद्र मोदी की ‘डबल इंजन सरकार’ द्वारा किए गए विकास कार्य की तारीफ करे हैं और लोगों को गिना रहे हैं.

ग्रामीण डबल इंजन सरकार द्वारा किए गए विकास पर विजयेंद्र के भाषण को सड़कों पर खड़े होकर, जहां खुली नालियां होने के कारण काफी खतरनाक है और कीचड़ से भरा हुआ है, पर खड़े होकर सुन रहे हैं.

शिकारीपुरा के 60 वर्षीय शंकरप्पा ने कहा, ‘येदियुरप्पा के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है, लेकिन उनकी पार्टी के कार्यकर्ता हमारा सिरदर्द बन गए हैं.’ शंकरप्पा चाय की दुकान चलाते हैं.

Villagers in Bhadrapura listening to Vijayendra speak | Sharan Poovanna | ThePrint
भाषण सुनते लोग | फोटो: शरण पूवन्ना | दिप्रिंट

शंकरप्पा ने आरोप लगाया कि चार बार के सीएम येदियुरप्पा शिकारीपुरा से रिकॉर्ड आठ बार चुने गए. लेकिन पार्टी के कार्यकर्ताओं ने अब अधिकतर भूमिकाओं पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका उपयोग करते हैं. 

राजनीतिक बातों को अगर एक तरफ छोड़ दें तो मतदाताओं का कहना है कि उनकी कई अन्य चिंताएं भी हैं जिनपर ध्यान देने की जरूरत है.

शिवमोग्गा शहर के निवासी और पेशे से वकील मोहम्मद आरिफ (32) ने दिप्रिंट को बताया, ‘पेट्रोल, खाने का तेल और जीवन जीने के सारे सामानों की कीमत कई गुना बढ़ गई है. हमें खरीदना मुश्किल हो गया है.’ 

पड़ोसी चिकमगलूर में श्रृंगेरी के एक सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी रंगराज बी.आर. ने कहा: ‘हमारे गांव में न तो सड़कें हैं और न ही बिजली की पर्याप्त आपूर्ति. बीजेपी इसे ठीक करने का वादा करती रहती है लेकिन अब उसे लोगों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है.’

अधिकांश स्थानीय लोग मोदी को काफी सम्मान के साथ देखते हैं. लेकिन स्थानीय बीजेपी नेतृत्व के द्वारा मूल विचारधारा और विकास की इच्छा के बीच संघर्ष होता दिखता है.

शिवमोग्गा शहर के एक कपड़ा व्यापारी 37 वर्षीय उबैदुल्लाह ने कहा, ‘बीते साल कर्फ्यू ने हमें बहुत प्रभावित किया. यह अधिकांश दिहाड़ी मजदूरों और सड़क विक्रेताओं के लिए एक समस्या थी.’

पिछले साल फरवरी में बजरंग दल के कार्यकर्ता हर्षा जिंगडे की हत्या के बाद लगाए गए रुक-रुक कर कर्फ्यू छोटे व्यवसायों के लिए दोहरी मार के रूप में आया, जो अभी तक कोरोना महामारी और लॉकडाउन से पूरी तरह से उबर नहीं पाए थे. इसमें हिंदुत्व समर्थक समूहों का मुसलमानों के साथ कोई व्यापार नहीं करने का दबाव भी शामिल है.

शिवमोग्गा शहर के गोपी सर्कल में एक फूड-कार्ट विक्रेता नारायण एनएस ने कहा, ‘मेरे पास सभी समुदायों के ग्राहक हैं. मैं एक बीजेपी कार्यकर्ता हूं, लेकिन अपनी विचारधारा के आधार पर ग्राहकों का चयन नहीं कर सकता.’

जबकि शिवमोग्गा को कर्नाटक के चार मुख्यमंत्रियों- कदीदल मंजप्पा, जे.एच. पटेल, एस. बंगारप्पा और येदियुरप्पा, के लिए जाना जाता है. लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और सांप्रदायिक तनाव ने जिले को बदनाम कर दिया है और विकास नहीं हो पा रहा है. 

इस साल 13 फरवरी को गृह मंत्री द्वारा राज्य विधान परिषद में दिए एक लिखित जवाब में, कर्नाटक में 2020 और 2023 के बीच कम से कम 107 सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज की गईं. इनमें से 72 घटनाएं सिर्फ पांच जिलों (शिवमोग्गा, दावणगेरे, उत्तर कन्नड़, कोडागु, दक्षिण कन्नड़) से दर्ज की गईं, जहां ‘हिंदुत्व’ बीजेपी का मुख्य चुनावी मुद्दा रहा है. केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे, सी.टी. रवि, प्रताप सिम्हा और अनंतकुमार हेगड़े इन इलाके में बीजेपी के कुछ प्रमुख चेहरे हैं.

उडुपी के एक कार्यकर्ता और कर्नाटक में सांप्रदायिकता पर कथाओं का दस्तावेजीकरण करने वाली किताब ‘कोमुवदादा कराला मुखगलु’ (द डार्क फेसेस ऑफ कम्युनलिज्म) के सह-लेखक फणीराज के. ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘यहां (तटीय जिलों) लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच नहीं है. यहां लड़ाई कांग्रेस और हिंदुत्व के बीच है.’

उन्होंने कहा, ‘बीजेपी ने पिछले पांच सालों में जो भी प्रदर्शन किया है, वह सिर्फ हिंदुत्व की ताकत के भरोसे था. लोगों ने उनका इसमें साथ भी दिया.’

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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