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Thursday, 25 April, 2024
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कैसे ‘जहरीला सांप’ और ‘बजरंग दल’, कर्नाटक चुनाव में पीएम मोदी और बीजेपी की नैया पार लगाएगा

सत्‍ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस नेताओं की खीज समझ में आती है लेकिन जिस तरह से वह मोदी विरोध के मुद्दे हर बार पहला मुद्दा बना देती है उससे सत्ताधारी दल की कमजोरियों को उजागर करने वाले बाकी अहम मुद्दे गौण हो जाते हैं.

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कर्नाटक में दस मई को होने वाले विधानसभा चुनाव जय बजरंग बली के नाम कर दिया गया है. चुनावी सभाओं में अब तक जय श्री राम के नारे गूंजते थे लेकिन उसके साथ जय बजरंग बली का उद्घोष भी जुड गया है. कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहरीला सांप कहा तो मोदी ने बिना वक्‍त गंवाएं जनता से शिकायत की कि उन्‍हें अब तक 91 बार गालियां दी गई हैं लेकिन उन्‍हें कोई शिकवा नहीं है. वह जनता जनार्दन कर भलाई के लिए काम करते रहेंगे. खडगे ने सफाई दी कि उन्‍होंने मोदी के लिये नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के लिये इस शब्‍द का इस्‍तेमाल किया लेकिन इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के कैमरे में कैद हो चुके खड़गे का बयान उनके लिए ही नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए जी का जंजाल बन गया.

चुनाव में राजनीतिक दलों के बीच आरोप प्रत्‍यारोप के दौर चलते रहे हैं और आगे भी यह क्रम जारी रहेगा. स्‍वस्‍थ लोकतंत्र के लिये मुद्दों को लेकर दावे प्रतिदावों से सत्‍ता पर निगाह रखने और वस्‍तुस्थिति को समझने में मदद मिलती रही है. आवेश में आकर नेतागण व्‍यक्तिगत आक्षेप लगाते हैं और अपशब्‍द बोल जाते हैं लेकिन लिखित में कोई भी इस तरह की अभिव्‍यक्ति नहीं करता है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस और उसके नेताओं के खिलाफ अपशब्‍द का इस्‍तेमाल नहीं हुआ है, जो आज सत्ता में हैं या पहले कभी सत्‍ता का स्‍वाद चख चुके हैं उन्होंने कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कड़वे बोल नहीं बोले. खुद कांग्रेस नेता भी एक-दूसरे के खिलाफ सारी हदें पार कर चुके हैं और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी निशाना बनाया गया था.

1977 में इंदिरा गांधी को भी मिली थी गालियां

दरअसल ये गालियां उस समय निकलती हैं जब कोई अपना आपा खो देता है. अपनी खीज मिटाने के लिए खुद ब खुद अपशब्‍द निकल जाते हैं और ये अभिव्‍यक्ति की पराकाष्‍ठा माने जा सकते हैं लेकिन सभ्‍यता और संस्‍कृति उनका तिरस्‍कार ही नहीं करते हैं बल्कि यही अपेक्षा रखते हैं जुबान लड़खडानी नहीं चाहिए, शब्‍द गरिमा में रहकर गढ़े और बोले जाने चाहिये. कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है और उससे सबका लगाव और अपेक्षाएं रही हैं. उसके हर फैसले और आहवान को बड़े पैमाने पर जनसमर्थन मिलता रहा है लेकिन 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के देश में इमरजेंसी लगाने के फैसले ने कांग्रेस को कसौटी पर परखना शुरू कर दिया. नतीजा इतिहास में दर्ज है, कांग्रेस की 1977 के लोकसभा चुनाव में करारी हार हुई और असंतुष्ट कंग्रेसियों की टोली की अगुआई में जनता पार्टी की सरकार बनी थी.

इस चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ भद्दी गालियों का प्रयोग किया गया और इमरजेंसी को लेकर नाराज जनता ने भी सुर में सुर मिलाये जिसकी वजह एक ही थी, वह गुस्‍से में थी. लेकिन जब जनता पार्टी आपसी कलह के कारण बिखर गई और इंदिरा गांधी का सितारा चमकता दिखा तो यही गालियां उनके प्रति सहानुभूति का कारण बन गई. जिन्‍‍होंने गालियां दी थीं वे इंदिरा लहर में तहस नहस हो गये और कई तो दोबारा राजनीति के मैदान में ताल नहीं ठोक पाये.


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हिंदू और मुसलमान राजनीति के मोहरे बनते रहे हैं

कांग्रेस और भाजपा की विचारधारा की लड़ाई में हिंदू और मुसलमान राजनीति के मोहरे बनते रहे हैं. कांग्रेस की स्‍थापना के कुछ दिन बाद ही मुसलमान नेताओं ने उसे हिंदुओं के वर्चस्‍ववाला संगठन बताकर विरोध किया और फिर मुसलमान के हितों की रक्षा के नाम पर मुस्लिम लीग की स्‍थापना की गई थी. कांग्रेस पर पहली बार धर्म के आधार पर तोहमत लगाई गई और तबसे लेकर अभी तक वह तोहमत से उबरने के लिए नित नए नए उपाय गढ़ती रही है. अभी तक उसे इस दिशा में कामयाबी नहीं मिली है और अब बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के चुनावी वादे को उसका नया प्रयोग माना जा सकता है.

संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के सत्‍ता में रहते तत्‍कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भगवा आतंकवाद का नया शब्‍द गढ़ा जिसका मकसद राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ (आरएसएस) को निशाने पर लेना था. शिंदे ने संसद में अपने भाषण में जब इस शब्‍द का इस्तेमाल किया तो हंगामा हुआ और गतिरोध खत्‍म करने के लिये शिंदे को माफी मांगनी पडी थी. दरअसल संप्रग सरकार के समय से हिंदुओं को भी भगवा आतंकवाद के नाम पर अतंकवाद की जंजीरों में जकडने की जो कोशिश शुरू हुई थी वह थमी नहीं हैं.

संप्रग सरकार 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक को संसद में पारित कराने का प्रयास किया था और राज्‍यसभा में वह बुरी तरह घिर गई थी. भाजपा के साथ वाम दलों और कुछ अन्‍य विपक्षी दलों ने इसका कड़ा विरोध किया जिसके बाद सरकार को इसे वापस लेना पडा था. राज्‍यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा था कि यह मसौदा विधेयक उन सामाजिक उद्यमियों का काम प्रतीत होता है, जिन्होंने गुजरात के तजुर्बे से यह सीख लिया कि किस तरह वरिष्ठ नेताओं को उस अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जाए, जिसके वे असल में दोषी नहीं होते.

जेटली ने आरोप लगाया था कि यह विधेयक इस अनुमान पर बनाया गया है कि साम्प्रदायिक अशांति सिर्फ बहुसंख्यक समुदाय (हिंदू) के लोग ही फैलाएंगे, अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ऐसा कभी नहीं करेंगे और अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा बहुसंख्यकों के खिलाफ समान तरह का कृत्य अपराध नहीं माना जाएगा. ऐसा प्रतीत होता है कि यौन दुर्व्‍यवहार तभी दंडनीय होगा जब वह अल्पसंख्यक समुदाय के किसी सदस्य के खिलाफ हो. जेटली ने अपने विश्लेषण में कहा था कि मसौदे से यह भी नजर आता है कि नफरत भरा प्रचार तभी अपराध माना जाएगा जब वह अल्पसंख्यक समूह के खिलाफ हो.

भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस मसौदा विधेयक में अपराध को अत्यधिक भेदभाव के साथ पुन:परिभाषित किया गया है. इससे ऐसा लगता है कि अगर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई सदस्य बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ अपराध करता है तो उसे दंडनीय नहीं माना जाएगा. उन्होंने मसौदा विधेयक में राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के जिक्र पर भी सवाल उठाए. जेटली ने कहा कि मसौदे में कहा गया है कि साम्प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा का अर्थ उस हिंसा से है जो राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नुकसान पहुंचाती हो. लेकिन धर्मनिरपेक्षता क्या है, इसे लेकर भी तर्कसंगत राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं. जेटली ने कहा कि संप्रग की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इस तरह के खतरनाक और भेदभावकारी विधेयक के मसौदे को आकार दिया है लेकिन यह भी आश्चर्यजनक है कि किस तरह इस परिषद की राजनीतिक प्रमुख (सोनिया गांधी) ने मसौदे को मंजूरी दे दी.

केंद्र सरकार ने मुस्लिम संगठन पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) पर आतंकवादी गतिविधियों में लिप्‍त होने के कारण पिछले साल पांच साल के प्रतिबंध लगााया था. संप्रग के कार्यकाल में 22 नवंबर 2006 को तीन मुस्लिम संगठनों को मिलाकर पीएफआई का गठन हुआ था. कर्नाटक के चुनाव घोषणा पत्र में बजरंग दल की तुलना पीएफआई से करते हुए उसपर भी समाज में सौहार्द को बिगाडने के लिये दोषी ठहराया गया और कहा गया है कि अगर कांग्रेस सत्‍ता में आई तो उसे प्रतिबंधित किया जायेगा.

कर्नाटक चुनाव में एक बार भी PM मोदी विपक्ष के निशाने पर है

इस बार भी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर रहे. गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान रावण और दुर्योधन से उनकी तुलना की गई. सब जानते हैं कि ये दोनों पात्र बुराई के प्रतीक थे. कांग्रेस की पूर्व अध्‍यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर कहा था जब वह गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे. तब भी चुनाव प्रचार का दौर था और सोनिया गांधी ने गुजरात दंगों के लिये जिम्‍मेदार मानते हुये मोदी के खिलाफ ऐसी कठोर टिप्‍पणी की थी. लेकिन आगे चलकर क्‍या हुआ, मोदी दंगों को लेकर लगाये गये सारे आरोपों से बरी हो गये और उन्‍हें उच्‍चतम न्‍यायालय ने भी पाक साफ करार दिया.

पिछली बार रावण के बयान के बाद खडगे सुर्खियों में आ गये थे और इस जहरीला सांप के बयान को लेकर सुर्खियों में हैं. भला बाकी विपक्ष कैसे पीछे रह सकता है तो तृणमूल कांग्रेस की विधायक सावित्री मित्रा ने मोदी को दुर्योधन और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दुशासन कह दिया. गुजरात चुनाव में आम आदमी पार्टी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्‍पणी करते दिख रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री के लिए इस वीडियो में नीच शब्द का इस्तेमाल किया.

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी गुजरात दंगों के बाद से कांग्रेस ही नहीं बल्कि तमाम विपक्ष के निशाने पर रहे हैं. 2002 से लेकर 2012 तक में गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्‍यमंत्री मोदी को घेरने की कोशिश होती रही. केंद्र में संप्रग सरकार थी और गुजरात दंगों को लेकर मोदी संसद से लेकर सड़क तक निशाने पर थे लेकिन हर चुनाव में मोदी को अमर्यादित टिप्‍पणियों से फायदा हुआ जिससे यह अंदाज लगाया जा सकता है कि जनता जनार्दन ऐसा कहने वालों का समर्थन नहीं करती है. मोदी ने अपने खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी को पलटकर अपने पक्ष में करने में महारत हासिल कर ली है. ऐसे कई उदाहरण हैं जब कांग्रेस ने सीधे तौर पर मोदी पर हमला किया लेकिन हर बार उन्होंने सफलतापूर्वक बाजी पलट दी और विजयी हुए.

सत्‍ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस नेताओं की खीज समझ में आती है लेकिन जिस तरह से वह मोदी विरोध के मुद्दे हर बार पहला मुद्दा बना देती है उससे सत्ताधारी दल की कमजोरियों को उजागर करने वाले बाकी अहम मुद्दे गौण हो जाते हैं. कर्नाटक में भ्रष्‍टाचार, आरक्षण और जनकल्‍याण के मुद्दे विपक्ष को मजबूती दे रहे थे लेकिन एनवक्‍त पर मोदी के खिलाफ व्‍यक्तिगत अपमानजनक टिप्‍पणी और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने को लेकर खेला गया दांव कांग्रेस के नफे को नुकसान में नहीं बदल दे.

(लेखक अशोक उपाध्‍याय वरिष्‍ठ पत्रकार हैं. वह @aupadhyay24 पर ट्वीट करते हैं . व्यक्त विचार निजी हैं)


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