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Wednesday, 8 May, 2024
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समाज-संस्कृति

‘मणिकर्णिका’ दि क्वीन ऑफ झांसी के ये तीन पैसा वसूल सीन

नई दिल्ली: बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी...वो तो झांसी वाली रानी थी..सुभद्रा...

संस्मरण: ‘लिखना है मुझे अभी कुछ’: ये थी कृष्णा सोबती की आखिरी चाह

अनामिका जी के हाथों में हैं उनके नरम, मुलायम हाथ. एक-एक कर जैसे स्मृतियां उनकी आंखों के आगे अपने बहुरंगी रंगों में तैरने लगतीं हैं.

गणतंत्र के 70 साल: वे महिलाएं जिन्होंने संविधान निर्माण में निभाई अहम भूमिका

संविधान निर्माण के दौरान देशभर की विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिलाओं को एकत्रित किया गया था और उनसे महिला अधिकारों सहित कई मामलों पर बात की गई थी..

वो कृष्णा सोबती ही थीं जिन्होंने ‘पहला दरवाजा खोला था’

जिनके नाम पर दम भरते थे, जिनके होने से बहुत साहस था, जो मिसाल थीं, हर तरह से. जीवन और लेखन दोनों में, सुबह...

उसकी जिंदगी का मकसद बन गया है सार्वजनिक जगहों पर लिखे ‘अश्लील’ शब्द मिटाना

ट्रेन में हुई उस घटना के एक साल के अंदर वे अब तक 100 से अधिक ट्रेनों, कई स्कूल कॉलेजों, ढेर सारे सरकारी भवनों, में लिखे अपशब्दों को मिटा चुके हैं.

सिद्दगंगा के मठाधीश शिवकुमारा स्वामी, जिनके पास इंदिरा से लेकर मोदी सभी पहुंचते थे

सिद्दगंगा मठ के शिवकुमारा स्वामी, जो कि लिंगायत समुदाय के नेता थे. सोमवार सुबह 11.44 मिनट पर उनकी मृत्यु हो गई. वे 111 साल के थे

कंगना रनौत: पांच साल में ‘अर्बन नक्सल’ से ‘माचो राष्ट्रवादी’ बनने तक का सफर

2014 में फिल्म क्वीन और 2015 में तनु वेड्स मनु रिटर्न्स के रिलीज होते वक्त कंगना रनौत औरतों की चैंपियन बन गई थीं और उनके बयानों ने परंपरागत राष्ट्रवादियों की नींद उड़ा दी थी.

यदि जंगल को दिल मानें, तो उसकी धड़कन आदिवासी हैं

हम जाने-अनजाने में आदिवासियों की एकतरफा और अधूरी तस्वीर बना रहे हैं. उनको शिक्षा प्रयोगों से मिलती है. ये लोग आज भी खरे हैं, उनमें जरा भी मिलावट नहीं है.

शादी कार्ड में संदेसा आया है, आम आदमी पार्टी को वोट देना है!

राजनीतिक पार्टियां प्रचार-प्रसार की बात हो या वोट मांगने की, वह हर हथकंडे अपना रही हैं. इन दिनों शादी के कार्ड पर वोट मांगने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है.

‘मधुशाला’ नहीं कवियों को ‘मेहनताना’ दिलाने का श्रेय भी जाता है हरिवंश राय बच्चन को

कवियों को मिलने वाले पारिश्रमिक की शुरुआत करने का श्रेय बच्चन को ही जाता है. उनका तर्क था कि जब हर किसी को मेहनताना मिलता है, तो कवि इससे पीछे क्यों रहे.

मत-विमत

भाजपा को बंगाली बनने की ज़रूरत है, रोशोगुल्ला से आगे बढ़िए, पान्ताभात खाइए, होदोल कुटकुट को जानिए

पश्चिम बंगाल में ‘घुसपैठिये’ या ‘तुष्टीकरण’ जैसे शब्द बहुत कम सुनाई पड़ते हैं, न ही ‘मंगलसूत्र’ या अमित शाह द्वारा ममता बनर्जी के ‘मां, माटी, मानुष’ नारे को ‘मुल्ला, मदरसा, माफिया’ में बदलने जैसे वाक्या सुनाई देते हैं.

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महाराष्ट्र : मालिक के घर से दो करोड़ रुपये से अधिक के आभूषण चुराने के आरोप में घरेलू सहायक गिरफ्तार

मुंबई, सात मई (भाषा) मुंबई में पिछले महीने अपने मालिक के घर से दो करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के हीरे और सोने के...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.