मोदी-भाजपा को 2019 में मात देनी है तो यह ताकतवर नेताओं को उनके गढ़ों में हराकर ही दी जा सकती है क्योंकि चुनावी विश्लेषण के लिहाज से यही तर्कपूर्ण दिखता है, चाहे विचारधारात्मक विरोध का तक़ाज़ा कुछ भी हो.
प्रोफेसर कांचा इलैया को पढ़ना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वे मुख्यधारा के समानांतर अपना एक प्रतिपक्ष यानी काउंटर नैरेटिव खड़ा करते हैं. ऐसे वैचारिक संघर्षों से ही दुनिया में ज्ञान का विकास हुआ है. उन्हें पढ़ने के लिए उनसे सहमत होना बिल्कुल ज़रूरी नहीं है.
असम के तिनसुकिया ज़िले के डांगारी में हुई हत्याओं के लिए सात रिटायर्ड फ़ौजियों को आजीवन क़ैद की सज़ा सुनाई गई. पर क्या ये आरोपियों और भारतीय सेना के बीच कोई गुपचुप समझौता है?
कश्मीर में जो सामान्य स्थिति बहाल हुई है उसे, मुनीर के मुताबिक, उलटना जरूरी था. पहलगाम कांड की तैयारी उनके भाषण और इस हमले के बीच के एक सप्ताह में तो नहीं ही की गई, इसमें कई महीने नहीं तो कई सप्ताह जरूर लगे होंगे.