अवामी लीग पर प्रतिबंध बांग्लादेश में गहरी राजनीतिक अस्थिरता के संकेत देते हैं. हाल में जो घटनाएं घटी हैं उनके कारण बड़ी चिंता यह उभरी है कि अंतरिम सरकार बच पाएगी या नहीं.
तमिलनाडु 69 फीसदी आरक्षण की नीति के साथ सकारात्मक कार्रवाई को दिशा देता रहा है. वह उपलब्धि किसी संयोग से नहीं बल्कि एआईडीएमके के राजनीतिक संकल्प और संवैधानिक कौशल के बूते हासिल हुई थी.
भारत जिन लक्ष्यों की परवाह करता है—चीन पर नियंत्रण रखना, पाकिस्तान में जिहादियों को निशाना बनाना, व्यापार मार्गों और ऊर्जा की सुरक्षा सुनिश्चित करना—वे ट्रंप को ज़्यादा मायने रखते नहीं दिखते.
यह पहला मौका है जब बिना राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति के विधेयक कानून बन गए हैं. यह न्यायपालिका द्वारा अपनी संवैधानिक शक्तियों और मर्यादा का अतिक्रमण है.
भारत आज दुनिया में जिस बेहतर हैसियत में है वैसी स्थिति में वह शीतयुद्ध के बाद के दौर में कभी नहीं रहा. हमें तय करना पड़ेगा कि विश्व जनमत को हम महत्वपूर्ण मानते हैं या नहीं. अगर मानते हैं तो हमें उनकी मीडिया, थिंक टैंक, सिविल सोसाइटी के साथ संवाद बनाना चाहिए.
क्या हम यह कह रहे हैं कि एक राष्ट्र के तौर पर हम अलग-अलग विचारों को नहीं संभाल सकते? कि हम असहमत होने के लिए बहुत कमज़ोर हैं? अगर अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ समय और लहज़े के बारे में चेतावनी भी दी जाती है, तो क्या यह वाकई आज़ाद है?
यूरोप के देशों ने अमेरिका से हो रहे ब्रेन ड्रेन को देखते हुए जल्दी कदम उठाए हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने दुनिया के सबसे होनहार माइंड्स को फ्रांस आने के लिए खुला निमंत्रण दिया है.
ममदानी की मान्यताएं, गज़ा के लिए उनका समर्थन, मोदी या नेतन्याहू के प्रति उनकी नापसंद आदि की वजह से भारत में कई लोग उनके उत्कर्ष को एक और ‘भारतीय विजय’ के रूप में नहीं मना सकते हैं.