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मंगलवार, 22 अप्रैल, 2025
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मत-विमत

ट्रंप के टैरिफ भारत के लिए सिर पर बंदूक तानने जैसा है, शायद यही अब तक की सबसे अच्छी बात है

ट्रंप जबकि गोली दागने की धमकी दे रहे हैं, अपनी पीठ खुद ठोकने में व्यस्त भारतीय सत्ता-तंत्र को सुर्खियां बनवाने के मोह से छुड़ाने के लिए ऐसी ही धमकी की जरूरत थी.

चिपको आंदोलन ने अपने उद्देश्य से आगे बढ़कर बड़ी जीतें हासिल कीं, उत्तराखंड उनमें से एक है

अलग उत्तराखंड राज्य की मांग के आंदोलन में भी चिपको आंदोलन के तरीकों का प्रयोग शुरू हो गया और शांतिपूर्ण प्रदर्शन, सत्याग्रह, जन जागृति, आदि रोज होने लगी.

चिपको आंदोलन दुनिया के लिए मिसाल बना, लेकिन इससे कुछ चुनौतियां भी पैदा हुईं

विडंबना यह है कि लोगों के अपने स्थानीय पारिस्थितिकी के प्रति लगाव के प्रदर्शन का इस्तेमाल केंद्रीकृत निर्णयकर्ताओं द्वारा उन्हें इससे अलग करने के लिए किया गया.

‘गूगल डूडल’ आपको चिपको आंदोलन की पूरी कहानी नहीं बताता, जो दरअसल गौरा देवी से भी पहले शुरू हुई थी

आम धारणा यह है कि चिपको आंदोलन ‘पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए महिलाओं का आंदोलन’ था, जो 26 मार्च 1974 को शुरू हुआ था, लेकिन यह धारणा कुछ हद तक ही सही है.

सुशांत सिंह मामले में हम सभी ने लड़ाई हारी है, कोर्ट, मीडिया, नेता हमारे अधिकारों की रक्षा नहीं करेंगे

सुशांत सिंह राजपूत केस में रिया चक्रवर्ती को ही नुकसान उठाना पड़ा. अगली बार यह आप या मैं हो सकते हैं.

बसें चलाने से मणिपुर में शांति बहाल नहीं होगी, सरकार लोगों को जोड़ने की कोशिश करे, मिटाने की नहीं

भारत विरोधी बगावत ने मैतेई समुदाय में हिंदू शासन के दौर से पहले की सांस्कृतिक परंपराओं और आस्थाओं को पुनर्जीवित करने पर ही ज़ोर दिया और कुकी और नगा समूहों की उपेक्षा की.

बंगालियों को भूत की अच्छी कहानियां पसंद हैं लेकिन इस बार, यह वोटर्स लिस्ट में है

घोस्ट वोटर्स मतदाता सूची में कैसे घुस जाते हैं? यह वाकई डरावना है. यह भी डरावना है कि केवल पश्चिम बंगाल में ही घोस्ट वोटर्स को राजनीतिक हथियार में बदल दिया गया है.

लाल बहादुर शास्त्री की 19 महीनों की विरासत, दूसरे की इमरजेंसी से ज्यादा प्रभावशाली साबित हो रही है

शास्त्री की विरासत पर ताशकंत में हुए शांति समझौते, और उनके उस जानलेवा दौरे का साया अनुचित रूप से हावी हो जाता है, जबकि ‘हरित क्रांति’ और प्रतिभाशाली वैज्ञानिक डॉ. स्वामीनाथन की खोज उनकी यादगार विरासतों में शामिल हैं.

पाकिस्तान सैनिकों की कमी के चलते दो मोर्चों पर नहीं लड़ सकता, LoC और बलूचिस्तान में से एक को चुनना होगा

पाकिस्तानी राज्य तब तक जीत नहीं सकता और न ही जीतेगा, जब तक वह औपनिवेशिक आतंकवाद विरोधी सिद्धांतों को त्याग नहीं देता, जिसने उसके संस्थागत चिंतन को विषैले कीचड़ की तरह ढक दिया है.

औरंगज़ेब की कब्र खोदने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन यह हमारी राजनीति की पिछड़ी सोच को दिखाता है

समस्या फिल्म ‘छावा’ नहीं है. समस्या यह है कि राजनेताओं ने किस तरह से भावनाओं का फायदा उठाया. फिल्म में औरंगजेब की कब्र को तोड़ने की बात नहीं कही गई, बल्कि राजनेताओं ने ऐसा किया.

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मुझे एएस दुलत के लिए बुरा लग रहा है—उन्होंने फारूक अब्दुल्ला से दोस्ती पर किताब लिखी, मिली बेरुखी

दुलत जब आईबी में थे, तब उन्होंने कश्मीर में काम किया था और फारूक अब्दुल्ला के साथ उनके करीबी संबंध थे. तब से दिल्ली ने गुप्त वार्ता के लिए उनका इस्तेमाल किया है.

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राजनीति

देश

रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले चार पैसे टूटकर 85.19 पर

मुंबई, 22 अप्रैल (भाषा) रुपया मंगलवार को शुरुआती कारोबार में सीमित दायरे में कारोबार करता हुआ चार पैसे कमजोर होकर 85.19 रुपये प्रति...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.