एक भ्रामक कहानी बनाई जा रही है कि भारत ने अपने राजनीतिक संकल्प और फौजी ताकत के बूते चीनियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है, इस तरह के दावे हमें नुकसान ही पहुंचाएंगे.
राजनीतिक महत्वकांक्षाएं रखने वाले नेता जिस दौर में छात्र संगठन और युवा संगठन में अपनी जगह बनाने के लिए दर-दर भटका करते हैं, झंडे उठाया करते हैं उस दौर में सचिन और ज्योतिरादित्य कांग्रेस में मंत्री बन गए थे.
अगर मज़हबी खयालात, नैतिकता और वक़्त की बर्बादी किसी एक खेल को बैन करने का पैमाना हैं, तो फिर इमरान खान सरकार को पूरा डिजिटल स्पेस ही बंद कर देना चाहिए.
मौके पर मौजूद जवान और अधिकारी ही किसी कार्रवाई के बारे सबसे सही निर्णय कर सकते हैं. उन्हें ‘आदेश’ की अनुपस्थिति को ‘निष्क्रियता’ की वजह नहीं बनने देना चाहिए.
जो भी सामाजिक नीति का पक्षधर है, उन्हें मांग करनी चाहिए कि 27 प्रतिशत आरक्षण को बांटने के बाबत बने रोहिणी आयोग की सिफारिशें सरकार महामारी के उतार के तुंरत बाद जारी करे.
इन दिनों यूपी में ब्राह्मण और ठाकुर आपसे में टकरा रहे हैं. सत्ता का अधिकतम लाभ पाने के लिए दोनों समुदायों में होड़ मची है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि इनमें से कोई बीजेपी को छोड़ देगा.
भारत में धर्मनिपेक्षता के पैरोकारों की चाहे जो भी गलतियां और नाकामियां रही हों, वे हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के उत्कर्ष के मुख्य जिम्मेदार नहीं हैं. वास्तव में, इनमें से कुछ पैरोकार अगर राष्ट्रीय मंच पर न उभरते तो वह उत्कर्ष बहुत पहले हो गया होता.
भारतीय लोगों की कपोलकल्पनाओं ने विकास दुबे को बेवजह उत्तर प्रदेश का ‘डॉन’ बना दिया कि वह जिंदा गिरफ्तार होता तो सरकार के तख़्तापलट का भी वजह बन सकता था.
यदि भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय रोगियों के संपर्कों को ढूंढने और आइसोलेशन पर ध्यान केंद्रित करना चाहता है तो उसके लिए कोविड-19 टेस्टिंग को पूरी तरह नियंत्रण मुक्त करना सबसे अच्छी नीति होगी.
एर्दोआन की सोच अब तुर्की की सीमाओं से बाहर भी साफ़ तौर पर दिखने लगी है. सीरिया की नई सरकार ने शरिया को अपने क़ानूनों की बुनियाद बना लिया है, ठीक वैसे ही जैसे एर्दोआन अपने देश में चाहते हैं.