शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों के चैंबर में सूचीबद्ध सारे मामले स्थगित कर दिये गये हैं. जबकि रजिस्ट्रार के समक्ष 16 से 20 मार्च के दौरान सूचीबद्ध मामले भी स्थगित कर दिये गये हैं.
‘अपनी पार्टी’ में शामिल होने वाले नेताओं में सबसे अधिक बड़ा व बहुचर्चित नाम गुलाम हसन मीर का है. जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवारों की तरह ही गुलाम हसन मीर की अपनी पहचान है.
सामाजिक न्याय आंदोलन के उज्ज्वल सितारों में शिवदयाल चौरसिया का नाम अग्रणी है. पिछड़ी जातियों को राजनीतिक पहचान दिलाने से लेकर पिछड़ी जाति की महिलाओं के सवाल उठाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.
भारत के वित्तीय सेक्टर की समस्याओं का कोई रामबाण समाधान नहीं है. विश्वास बढ़ाने के लिए उबाऊ लगने वाले सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है. रिज़र्व बैंक को इस बारे में सोचना चाहिए.
सिंधिया का ‘एसी-रहित’ रेंज रोवर इस बात को उजागर करता है कि एक खास तरह का पाखंडपूर्ण और आत्मघाती- सामाजिक-लोकलुभावनवाद हमारी राष्ट्रीय विचारधारा है और यही कारण है कि हिंदू विकास दर भारत की नियति है.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लेकर बांग्लादेश की मुक्ति तक, इंदिरा के प्रधान निजी सचिव पीएन हक्सर की भूमिका वाले बड़े परिवर्तनों के जयराम रमेश के विश्लेषणों में जो छोटी-छोटी गौण बातें सामने आती हैं उनसे कांग्रेस के बेहद विचारशील नेतृत्व की झलक मिलती है.
उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल 2009 में अपने एक फैसले में प्रतिपादित दिशा निर्देशों में कहा था कि जब कभी भी विरोध प्रदर्शन की वजह से बड़े पैमाने पर संपत्ति को नुकसान पहुंचता है तो उच्च न्यायालय स्वतः कार्रवाई कर सकता है.
भारतीय राजनीतिक में सियासी परिवारों की विरासत देखकर लगता है कि यहां इन परिवारों से संबंध रखने वाले नेता ही युवा कहला सकते हैं, फिर वो चाहे 40 साल के हों या फिर 50 के.
मोदी की मौजूदगी बाकी तमाम मुद्दों को एक किनारे सरका कर लोगों के दिमाग पर छा जाने के मामले में अब नाकाफी है. साधारण राजनीति वापिस आ रही है और लंबे वक्त से दबे चले आ रहे मुद्दे अब सिर उठा रहे हैं.