scorecardresearch
Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतपायलट और सिंधिया बागी होते हैं तो कांग्रेस की हार होती है, लेकिन 'विरासत के दमपर' चमकने वालों का भी नुकसान होता है

पायलट और सिंधिया बागी होते हैं तो कांग्रेस की हार होती है, लेकिन ‘विरासत के दमपर’ चमकने वालों का भी नुकसान होता है

राजनीतिक महत्वकांक्षाएं रखने वाले नेता जिस दौर में छात्र संगठन और युवा संगठन में अपनी जगह बनाने के लिए दर-दर भटका करते हैं, झंडे उठाया करते हैं उस दौर में सचिन और ज्योतिरादित्य कांग्रेस में मंत्री बन गए थे.

Text Size:

सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया ही नहींं  26-32 साल की उम्र के बीच के तमाम नेता कांग्रेस में विधायक, सांसद बनते-बनते मंत्री तक बन गए. फिर कुछ दिनों में साइडलाइन फील करते हुए ‘बागी’ हो गए.पार्टी की भी गलती उन्हें साथ होने का एहसास नहीं करा पाई, उनकी मेहनत को तवज्जो नहीं दी गई. आरोप तो ऐसा ही है और बात भी काफी हद तक ठीक है लेकिन हर कहानी की दूसरी तस्वीर भी होती है. इनकी कहानी की भी है.

राजनीतिक महत्वकांक्षाएं रखने वाले देश के न जाने तमाम युवा उम्र के जिस दौर में छात्र संगठन और युवा संगठन में अपनी जगह के लिए दर-दर भटका करते हैं, झंडे उठाया करते हैं. उस दौर में ये नेता संसद, मंत्रालयों की कुर्सियों पर बैठे थे. बेशक वह जनता द्वारा चुनकर आए थे लेकिन ये बात सब जानते हैं वो जीत पार्टी और पीछे लगे सरनेम की ज्यादा थी. ये ‘प्रिव्जेल्ड’ होना नहीं कहलाया जाएगा. बेशक अब वक्त बदला हो कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रही हो लेकिन बावजूद इसके इतनी जल्दी प्रिव्लेज्ड से ‘बागी’ होने के हालातों को समझना जरूरी है.


यह भी पढ़ें: गहलोत को लेकर ख़ामोशी और कांग्रेस के प्रति वफादारी क्यों दिखा रहा है सचिन पायलट ख़ेमा


विरासत का फायदा

कांग्रेस के गांधी परिवार के परिवारवाद पर अगर निशाना साधा जाता है तो ये भी देखना चाहिए की जो नेता ‘बागी’ हुए उनका बैकग्राउंड क्या है. और एक आम नेता की तुलना में उनके स्ट्रगल क्या हैं. चाहे सिंधिया हों पायलट या मिलिंद देवड़ा राजनीति में पैर रखते ही 1-2 साल के भीतर पार्टी का टिकट, संगठन में पद, सरकार आने पर मंत्रालय. सब कुछ इतनी जल्दी मिल गया की पता ही नहीं चला की स्ट्रगल क्या होता है और राजनीति में पैर जमाना क्या होता है.

करियर में ऐसी ‘क्रोनोलाॅजी’ भला कौन आउटसाइडर जीना चाहता है. बड़ी सी गाड़ी से उतरना. बड़ी उम्र के आदमी का झुककर सलाम करना, लुटियंस मीडिया के बड़े हिस्से के आंखो का तारा होना. ये प्रिव्लेज्ड होना नहीं है तो क्या है. ऐसा ड्रीम करियर राजनीति में आए हर युवा के नसीब में कहां होता है.

बात सचिन पायलट की करें तो कांग्रेस के सभी बागियों में सचिन कहीं ज्यादा डिजर्विंग दिखते हैं. 2014 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सचिन ने जिस तरह से मेहनत करके संगठन में दोबारा दम भरा वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है. पार्टी अध्यक्ष तो वह थे ही चुनाव जीतने के बाद डिप्टी सीएम भी बन गए. सचिन को सीएम बनाने की डिमांड पार्टी के एक धड़े में पहले से ही थी लेकिन सचिन उस वक्त डिप्टी सीएम पद पर राजी हो गए तो इस डिमांड पर कुछ समय के लिए ब्रेक लग गया. अशोक गहलोत को सीएम बनाया गया लेकिन ये फैसला यूं ही नहीं लिया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

इस बात में कोई संदेह नहीं कि 3 बार के सीएम गहलोत नेशनल मीडिया और सोशल मीडिया पर सचिन-सिंधिया जैसी पॉपुलैरिटी नहीं लेकिन जमीन पर गहलोत की पकड़ आज भी काफी मजबूत है. कभी राजस्थान जाएं तो इसका एहसास करेंगे. गहलोत अच्छे वक्ता नहीं लेकिन जमीनी राजनीति के महारथी हैं. राजनीति की सारी चालें उन्हें बखूबी आती है. एक साधारण कार्यकर्ता से सीएम बनने के सफर में बाल सफेद हुए हैं. आज भी दो-तिहाई से अधिक विधायक गहलोत के साथ दिख रहे हैॆ.

बात ‘महाराज’ की करें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया की जो राजनैतिक हैसियत कांग्रेस में थी क्या वह बीजेपी में बन पाई या बन पाएगी. महाराज की कांग्रेस में एंट्री के बाद ही शिवराज ने उन्हें ‘विभीषण‘ बता दिया. स्टेज पर बैठे ‘आक्रामक’ सिंधिया मंद मुस्कान से सुनते रहे और सुनें भी क्यो न. ये रास्ता तो उन्होंने ही चुना है. अपनी सीट वह नहीं बचा पाए लेकिन अब उन्हें खुद को टाइगर बताते हुए खुद को जिंदा बताना पड़ रहै है. इस तरह के बयान बताते हैं कि राजनीतिक कहां से कहां पहुंच गया.


यह भी पढ़ें: सचिन पायलट के और विधायकों को जुटाने का है राजस्थान भाजपा को इंतज़ार, 19 बागी विधायक नाकाफी


बागियों को भी होगा नुकसान

अब बात भविष्य की , सचिन (अगर बीजेपी जाते हैं तो हालांकि उन्होंने बीजेपी ज्वाइन करने की बात को मना कर दिया है.), सिंधिया भाजपा में जाकर भले ही कांग्रेस की सरकारें गिराने की क्षमता रखते हों लेकिन क्या वो स्टेटस वहां पा पाएंगे जो कांग्रेस में मिला. पार्टी के अहम पद ही नहीं बल्की कार्यकर्ताओं के बीच पकड़, मीडिया चार्म आदि क्या बीजेपी में बरकरार रह पाएगा जहां मोदी-शाह की मर्जी के बिना खुलकर बयानबाजी भी आसान नहीं. कांग्रेस में रहते हुए आलाकमान के साथ जितनी तस्वीरें इन ‘युवा बागियों’ की होंगी शायद ही भाजपा में किसी के पास मोदी और शाह के साथ इतनी तस्वीरें होंगी. महज़ कुछ साल में जितना प्रमोशन कांग्रेस में मिला क्या वह भाजपा इन्हें दे पाएगी. भाजपा भी बखूबी इस बात को समझती है कि कैसे किसका इस्तेमाल करना है और जब खुद कोई इस्तेमाल होने आ रहा हो तो वो क्यों अधिक तवज्जो देगी.

अध्यक्ष पद छोड़ने पर राहुल गांधी ने एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने लोकसभा चुनाव की हार की जिम्मेदारी अपने सर ली थी. उनका ये पत्र कार्यकर्ताओं ने भले ही पढ़ा हो लेकिन शायद उनके इन करीबियों ने ही नहीं पढ़ा जो बागी हो गए.

ऐसा नहीं है कि सारी गलती इन युवा नेताओं की है. इसमें अहम गलती तो राजनीतिक ट्रेनिंग और कम्यूनिकेशन गैप की है जिसके सीधे जिम्मेदार कांग्रेस आलाकमान है लेकिन राजनीतिक ट्रेनिंग/कम्यूनिकेशन से ज्यादा बड़ी चीज़ राजनीतिक महत्वकांक्षाएं होती हैं जो इन युवा बागियों में अधिक हैं. महत्वकांक्षी होना गलत नहीं लेकिन इतिहास गवाह रहा है कि राजनीति में मेहनत के साथ सब्र रखने वाले ज्यादा सफल हुए हैं.

उदाहरण चाहे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के लिए जाएं या कांग्रेस के. बेहतर रहेगा अगर सचिन अपनी पार्टी बनाते हैं और ममता बैनर्जी, शरद पवार की राह अपनाते हैं. फिर दोहरा रहा हूं कि सचिन सब बागियों मेॆ सबसे काबिल हैॆ. अगर वह भी सिंधिया की राह चलते हैं तो ये कहने में गुरेज नहीं कि अगर कांग्रेस अपने इन ‘ युवा चेहरों’ को खो रही तो ये नेता भी काफी कुछ खोएंगे जो अभी कुछ समय का फायदा (शॉर्ट टर्म गेन, लॉन्ग टर्म लॉस) समय के नुकसान की तरह भी हो सकता है.

( ये निजी विचार हैं)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. Congress की असली समस्या का भी विशलेषण कर देते कि ऐसी कयामत किस लिए आ रही है जो विरासत वाले ही भाग रहै हैं!

Comments are closed.