हिंदुत्व के उदारवादी विरोधियों को अभी तक हिंदुत्व संवैधानिकता के राजनीतिक प्रभाव का एहसास नहीं हुआ है. वे अब तक भारतीय संविधान को एक स्व-व्याख्यात्मक राजनीतिक पाठ मानते हैं.
लागू नहीं किए जा सकने वाले आदेश, पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध और एक मॉडल के रूप में दिल्ली का इस्तेमाल, ये उपाय न तो दिवाली के समय, न उससे पहले और न उसके बाद कारगर साबित होते हैं.
राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने भाजपा से वैचारिक संघर्ष से परहेज कर बिहार चुनाव के पहले चरण में करीब 70 प्रतिशत सीटों पर कब्जा किया. लेकिन तीसरे चरण में बाजी पलट गई.
मोदी और अमित शाह से लेकर खुली जीप में सवार होकर आए जेपी नड्डा तक सभी पिछले सप्ताह बिहार में जीत का जश्न मनाने के लिए भाजपा मुख्यालय पहुंचे थे. क्या जदयू की बजाये भाजपा का वर्चस्व कायम होने का समय आ गया है?
जीवन भर विवादों से दूर रहने वाले विनोबा के जीवन की एकमात्र विडंबना यह है कि उन्होंने 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा नागरिकों की स्वतंत्रता का अपहरण कर देश पर थोपी गयी इमरजेंसी को ‘अनुशासन पर्व’ बताया था.
मोदी यह मान बैठे कि चीन अपने आर्थिक हितों को दांव पर लगाकर हमारे लिए सैन्य चुनौती बनने की कोशिश नहीं करेगा, इसलिए प्रतिरक्षा पर खर्चे फिलहाल टाले जा सकते हैं. मोदी यहीं पर नेहरू की भूल के मुकाबले आधी भूल कर बैठे.
आज की तारीख में दीपावली का रूप-रंग कुछ इस तरह बदल गया है कि वह महज बाजार की उन शक्तियों का त्यौहार नजर आती है, जो शुभ-लाभ से जुड़ी देसी व्यावसायिक नैतिकताओं से परे पूंजी को ब्रह्म और मुनाफे को मोक्ष बना डालने पर आमादा हैं.