जहाज़ी जिन तनावपूर्ण हालात में काम कर रहे हैं, उसे देखते हुए जांच में ये तय होना चाहिए, कि क्या एमवी वाकाशियो के क्रू पर, लम्बे समय तक समुद्र पर रहने का असर पड़ा था.
वो जमाना बीत गया जब लालू यादव बड़ी रैलियों को संबोधित किया करते थे. आज के चुनाव अभियानों में सिर्फ भाषण कला में महारत से ही बात नहीं बनती बल्कि पृष्ठभूमि में व्हाट्सएप और फेसबुक जरूरी है.
पाकिस्तान ने कुरैशी को चीन भेजा और बाजवा को रियाद रवाना किया लेकिन ऐसा लगता है कि मध्य-पूर्व की इसकी नीति इस्लामाबाद में नहीं बल्कि रावलपिंडी में तय होगी.
प्रशांत भूषण को यदि जेल भेजा जाता है तो वह एक नायक बनकर उभरेंगे, असहमति के अधिकार के लिए कुर्बानी देने वाले शख्स के रूप में. पहले ही उनकी गांधी और मंडेला से तुलना की जा रही है.
कोई भारतीय सवर्ण या यूरोपीय या अमेरिकी श्वेत लेखिका या लेखक ऐसी किताब अब तक क्यों नहीं लिख पाया? इसकी वजह है विलकिरसन की वो खास नजर, जो उन्हें अपने जीवन अनुभव से मिली है.
गंभीर मसलों पर चुप्पी एक अच्छी राजनीतिक रणनीति तो हो सकती है. लेकिन खुले हाथ से खर्चों की घोषणाएं करने से पहले मोदी को आशंकित आर्थिक संकट का भी ख्याल रखना चाहिए.
हिंदुस्तानी भाऊ का पूरा एपिसोड भी 'अब्यूज कल्चर' की परतें खोलता है जो विज्ञापन, पैसा, प्रसिद्धि, ब्रांड वैल्यू और वायरल कंटेंट जो कि छद्म राष्ट्रवाद से भरा पड़ा है.
नरेंद्र मोदी के आलोचक काफी परेशान हैं कि आखिर इतनी परेशानियां झेलने के बावजूद लोग मोदी के खिलाफ क्यों नहीं हो रहे? वास्तव में लोकप्रिय, मजबूती से सत्ता में बैठे किसी भारतीय नेता को कोई प्रतिद्वंद्वी कभी नहीं हरा पाया है, मोदी ही खुद को हरा सकते हैं.
पश्चिम बंगाल में ‘घुसपैठिये’ या ‘तुष्टीकरण’ जैसे शब्द बहुत कम सुनाई पड़ते हैं, न ही ‘मंगलसूत्र’ या अमित शाह द्वारा ममता बनर्जी के ‘मां, माटी, मानुष’ नारे को ‘मुल्ला, मदरसा, माफिया’ में बदलने जैसे वाक्या सुनाई देते हैं.