scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतओपरा विनफ्रे ने 100 अमेरिकी सीईओ को जाति पर एक पुस्तक भेजी, पर भारतीय इसकी चर्चा भी नहीं कर रहे

ओपरा विनफ्रे ने 100 अमेरिकी सीईओ को जाति पर एक पुस्तक भेजी, पर भारतीय इसकी चर्चा भी नहीं कर रहे

कोई भारतीय सवर्ण या यूरोपीय या अमेरिकी श्वेत लेखिका या लेखक ऐसी किताब अब तक क्यों नहीं लिख पाया? इसकी वजह है विलकिरसन की वो खास नजर, जो उन्हें अपने जीवन अनुभव से मिली है.

Text Size:

भारतीय समाज और राजनीति पर लिखने वाला हर विदेशी लेखक जिस एक बात को लेकर सबसे ज्यादा चकित या मंत्रमुग्ध या हैरान-परेशान होता है, वो मसला जाति और जाति व्यवस्था का है. इसलिए जब पुलित्ज़र प्राइज विजेता अमेरिकी पत्रकार और लेखिका इसाबेल विलकिरसन ने अमेरिका में नस्लभेद की समस्या को जाति के आईने में देखते हुए अपनी किताब Caste: The Origins of Our Discontent लिखी तो पहली नजर में ये बात चौंकाने वाली नहीं थी.

ये किताब इन दिनों अमेरिका और पश्चिमी दुनिया में धूम मचा रही है. इस किताब को लेकर सबसे बड़ी बात ये हुई कि अमेरिकी टीवी की सबसे बड़ी स्टार ओपरा विनफ्रे ने अपने बहुचर्चित ओपरा बुक क्लब में इस किताब को शामिल कर लिया. ये किसी भी किताब के अमेरिका में कामयाब होने का लक्षण है. ओपरा विनफ्रे ने न सिर्फ इसे अपने बुक क्लब की सबसे महत्वपूर्ण किताब बताया बल्कि अमेरिका की 500 कंपनियों के सीईओ और देश के प्रमुख लोगों को ये किताब भेजी.


यह भी पढ़ें: प्रशांत भूषण के लिए बोलने वाले लोग जस्टिस कर्णन के मामले में चुप क्यों थे


अमेरिकी मीडिया में व्यापक चर्चा

इस किताब को न्यूयॉर्क टाइम्स ने इंस्टेंट अमेरिकी क्लासिक की संज्ञा दी है. वाशिंगटन पोस्ट ने इसकी समीक्षा छापी है और समीक्षक ने लिखा है कि लेखक ने नस्लभेद की समस्या को समझने के लिए नई भाषा का इस्तेमाल किया है और वो भाषा जाति है. न्यूयॉर्कर में सुनील खिलनानी लिखते हैं कि ये किताब अमेरिका में श्वेत वर्चस्ववाद और भारत में जाति व्यवस्था के इतिहास को एक साथ लाने का जटिल काम करती है. सीएनएन से लेकर एमएसएनबीसी और लगभग सभी प्रमुख अमेरिकी चैनलों में इस किताब की चर्चा हो चुकी है. द गार्डियन में इस किताब की समीक्षा करते हुए फातिमा भुट्टो ने लिखा है कि ये किताब तकलीफदेह सच को सामने लाती है और इसे छापे जाने का ये सबसे अच्छा समय है.

इस किताब में भारत और भारत की जाति व्यवस्था का जिक्र विस्तार से और बार-बार आता है. इसमें एक पूरा चैप्टर भारतीय जाति व्यवस्था के बारे में है. भारत का जिक्र इस किताब में 136 बार आता है. जाति का जिक्र लगभग 1500 बार और हमारे देश के अपने विख्यात या कुख्यात लेखक मनु का जिक्र इसमें 6 बार आया है. जाहिर है कि भारत में इस किताब की चर्चा होनी ही चाहिए.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

भारत से इतना करीबी रिश्ता होने के बावजूद इस किताब की भारत में अब तक कम ही चर्चा हुई है. किसी भी प्रमुख अखबार, पत्रिका ने इसकी समीक्षा नहीं छापी है और न ही पुस्तक अंश छापे हैं. भारतीय टीवी चैनलों का जो हाल है, उसमें तो ये कल्पना करना भी मुश्किल है कि इस किताब पर कोई चर्चा होगी. इस आलेख को लिखे जाने के समय तक ले-देकर मुंबई मिरर और स्वराज की वेबसाइट पर इस किताब की चर्चा है. ये इसलिए भी आश्चर्यजनक है क्योंकि इस किताब में ज्योतिबा फुले, बीआर आंबेडकर, गांधी और नेहरू तक की चर्चा है. इस किताब में उस प्रकरण का भी जिक्र है जब मार्टिन लूथर किंग अपने भारत दौरे में जब केरल पहुंचे तो तिरुवनंतपुरम के एक स्कूल में शिक्षक ने उनका परिचय कराते हुए कहा कि जिस तरह हमारे यहां अछूत होते हैं, वैसे ही ये अमेरिका के अछूत हैं.

विलकिरसन की किताब खास क्यों?

भारत में जाति व्यवस्था पर कलम चलाने वाली विलकिरसन कोई पहली अमेरिकी या यूरोपीय विद्वान नहीं हैं. इससे पहले सेलेस्टिन बूगले, मैक्स वेबर, एमिल सेनार्ट, लुई दुमों, मैकिम मैरियट, निकोलस डर्क, गेल ऑम्वेट, रोजालिंड ओ’हैनलॉन, सूज़न बायली, जॉन पी मेंचर, रुडॉल्फ दंपति से लेकर क्रिस्टॉफ जैफरले और गिल वर्नियर्स ने इस विषय पर सघन या छिटपुट लेखन किया है या पेपर या किताबें लिखी हैं. इस विषय पर लिखने वाले भारतीय लेखकों की लिस्ट अगर हजारों में नहीं तो सैकड़ों में जरूर है.

खास बात ये है कि यह किताब इसाबेल विलकिरसन के अश्वेत होने के जीवन अनुभव से निकली है, जो उन्हें एक अलग विश्वदृष्टि देती है. इस अनुभव के आधार पर उन्होंने अमेरिका और नाजी जर्मनी के नस्लभेद को भारतीय जाति व्यवस्था के साथ जोड़कर देखा है और यहां से उन्हें अमेरिकी नस्लभेद की समस्या को समझने की नई दृष्टि और भाषा मिली है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि अगल-अलग काल खंड में अलग-अलग देशों में पैदा हुई इन तीनों समस्याओं में उन्हें आठ प्रमुख बिंदु समान नजर आते हैं – 1. दैवी इच्छा और प्रकृति का कानून, 2. गुणों का वंशानुगत स्थानांतरण, 3. अपने ही समूह के अंदर विवाह और बच्चे पैदा करना, 4. पवित्र बनाम अपवित्र की अवधारणा, 5. जन्म का कर्म से रिश्ता और सबसे नीचे की जाति पर पूरी व्यवस्था का बोझ, 6. अमानवीय और अपमानबोधक, 7. आंतक से अनुशासन और क्रूरता से नियंत्रण. 8. ऊंच और नीच का बोध.

सवाल उठता है कि वो कौन सी महत्वपूर्ण बात है तो विलकिरसन की किताब को बाकी लेखकों की रचनाओं से अलग करती है?

लिखे हुए शब्द और जीवन अनुभव का साझा वक्तव्य: भारतीय जाति व्यवस्था के अध्ययन की एक बड़ी समस्या ये रही है कि लेखक अक्सर वर्तमान समस्या को समझने के लिए ग्रंथों और वेद-पुराण में घुस जाता है और वहां से जाति को समझने की कोशिश करता है. इस लेखन और विचार पंरपरा का असर इतना ज्यादा है कि डी.पी. मुखर्जी जैसे कई विद्वान तो ये भी कहते हैं कि अगर आप संस्कृत नहीं जानते तो भारतीय समाज को समझ नहीं सकते या किसी और के ज्ञान की नकल ही कर सकते हैं. विदेशी लेखकों ने इस समस्या का समाधान इन ग्रंथों के इंग्लिश अनुवाद को संदर्भ बनाकर किया. इस चक्कर में ढेरों लेखकों ने जाति को वहां से देखने की कोशिश की, जहां जाति को जीवन अनुभव से काटकर शास्त्रीय ज्ञान की चीज बना दिया गया, जबकि जाति वर्तमान में हर भारतीय के जीवन को किसी न किसी रूप में छूती है.

प्राचीन संस्कृत ग्रंथों से जाति को समझने की कोशिश को खारिज करते हुए समाजशास्त्री गेल ऑम्वेट ने गैर-ब्राह्मण-गैर-संस्कृत लेखन को आगे लाकर समाज में चल रहे द्वंद्व को रेखांकित किया. इस क्रम में ऑम्वेट ने चोखामेला, जनाबाई, कबीर, रैदास, तुकाराम, कर्ताभज, फुलो, इयोती तास, पंडिता रमाबाई, पेरियार और आंबेडकर के लेखन के आधार पर भारतीय समाज की व्याख्या की.

विलकिरसन ने जाति का सच समझने के लिए संस्कृत ग्रंथों की जगह फुले और आंबेडकर के साथ ही जाति के विरुद्ध लिखने वाले समकालीन लेखकों जैसे सूरज येंगड़े, आनंद तेलतुंबड़े, जी. श्रीनिवास, वी.टी. राजशेखर, चंद्रभान प्रसाद, कल्पना कन्नाबिरन, याशिका दत्त और मोहनदास नेमिसराय आदि का संदर्भ लिया और इनकी किताबों को अपनी संदर्भ सूची में शामिल किया. लेखकों की सामाजिक रूप से इतनी विविधतापूर्ण सूची आपको किसी ‘महान और दिग्गज’ भारतीय समाजशास्त्री की किताब में नहीं मिलेगी.

इन लेखकों की बातों को शामिल करने के कारण विलकिरसन की किताब ज्यादा विश्वसनीय हो गई है, क्योंकि ये सभी लोग जाति की पीड़ा और वंचना को बताने के लिए बेहतर स्थिति में हैं.

इसके अलावा विलकिरसन ने इस किताब को लिखने के क्रम में भारत की यात्रा की और अमेरिका में भी जाति-विरोधी संगठनों से संपर्क में रहीं. इस तरह से उनका लेखन सिर्फ किताबी नहीं है, बल्कि इसमें एक अश्वेत के नाते उनका जीवन अनुभव और भारत में किया गया उनका अध्ययन शामिल है. ये बात उनकी किताब को विशेष बनाती है.

जाति को बीमारी के रूप में देखना: पश्चिम के कई लेखक जाति को एक विचित्र चमत्कार के रूप में देखते हैं तो लुई दुमों जैसे लेखक इसे एक विचारधारा की उपज मानते हैं, वहीं निकोलस डर्क तो ये मानते हैं कि जाति को हम जिस रूप में आज जानते हैं, वह औपनिवेशवाद के दौर में इस रूप में पहुंची है. बूगल मानते हैं कि जाति एक व्यवस्था है, जो अलगाव, ऊंच-नीच और परस्पर निर्भरता पर आधारित है. ये सभी लेखक जाति व्यवस्था की क्रूरता, पीड़ा और इसके भेदभावमूलक स्वरूप को उसकी पूरी विभीषिका में नहीं दिखा पाते हैं. भारतीय लेखकों की बात करें तो एनएन श्रीनिवास के लिए प्रभावशाली जाति और संस्कृतिकरण महत्वपूर्ण हैं तो घुरये जाति, नस्ल और आधुनिकता का रिश्ता ढूंढ़ते रहे गए. इसके मुकाबले विलकिरसन जाति को एक बीमारी, एक समस्या के रूप में देखती हैं, जिसने करोड़ों लोगों की जिंदगी तबाह कर रखी है और जिसकी वजह से कुछ लोगों को तमाम तरह के विशेषाधिकार हासिल हैं.

जाति का अध्ययन करने वाले कई अन्य लेखक तो जाति के टिकाऊ होने को उसके गुण के तौर पर देखते हैं और इस व्यवस्था की जगह समानतामूलक किसी व्यवस्था के आने की संभावना को लेकर सशंकित हैं. जवाहरलाल नेहरू भी इसी तरह के विचार रखते थे. गांधी छुआछूत के विरोधी थे, लेकिन जीवन भर वे वर्ण व्यवस्था के समर्थक रहे और ये कहते रहे कि हर जाति को अपना जन्म से निर्धारित कर्म ही करना चाहिए.

इनके मुकाबले विलकिरसन के पास जाति की प्रशंसा करने के लिए कुछ भी नहीं है. इस क्रम में वे जातिवाद की एक परिभाषा पेश करती हैं- ‘कोई भी कार्य या व्यवस्था जो किसी व्यक्ति को नीचे धकेलती है या उसे किसी खास खांचे में रखती है और जो किसी व्यक्ति को एक निर्धारित श्रेणी के मुताबिक ऊपर उठाती या नीचे गिराती है, वह जातिवाद है.’


यह भी पढ़ें: मायावती-अखिलेश की नजरों में महान परशुराम ज्योतिबा फुले की नजरों में क्रूर और हिंसक क्यों


दरअसल ज्यादातर लेखक, जिनमें घुरये, श्रीनिवास से लेकर आंद्रे बेते शामिल हैं, जातिवाद की संरचना का अध्ययन करने और इसके जाति व्यवस्था के जन्म की कहानी को जानने में व्यस्त रहे हैं, जबकि विलकिरसन इसे समस्या या बीमारी मानकर इसका अध्ययन करती हैं. इस मायने में वे नेहरू या गांधी की तुलना में आंबेडकर के ज्यादा करीब हैं, जिन्होंने जाति को बीमारी माना था.

एक पीड़ित का वक्तव्य: विलकिरसन के पास नस्ल और जाति की समस्या को देखने की एक विशिष्ट दृष्टि है जो कई और लोगों के पास नहीं है. ये नजरिया उनके अश्वेत होने से आया है. वे अपने जीवन अनुभव की कई बातों को किताब में समटेती हैं और इसी नजरिए से जब भारत की जाति समस्या को देखती हैं तो खुद को भारतीय दलितों के करीब पाती हैं. वे बताती हैं, ‘किस तरह अच्छे श्वेत लोग भी जाति व्यवस्था को टिकाए रखने के लिए काम करते हैं. जबकि निजी जीवन में वे नस्लभेद नहीं बरतते.’ समाज में अपनी हैसियत, विशेषाधिकार और सुविधाओं को बनाए रखने के लिए सचेत रहने को विलकिरसन जातिवाद मानती हैं. समाज व्यवस्था को इतनी बारीकी से समझने वाली नजर विलकिरसन को उनके अपने जीवन से मिली है.

कोई भारतीय सवर्ण या यूरोपीय या अमेरिकी श्वेत ऐसी किताब शायद ही लिख सकता था.

(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

share & View comments

19 टिप्पणी

  1. हिंदू धर्म को सदैव नीचा दिखाने की पृवती का परीचायक है ये लेख और शायद ये पुस्तक भी. जब कोई विदेशी हिंदू धर्म के बरे मे लिखे तो उसे जरूरत से ज्यादा महत्व देना हमारी फितरत है. अगर नाही दिया (किसीं वजह से )तो वो हमारी अपनी कमी है ये सोच ही डिफेकटिव्ह है. लेख मे बेसिक यांनी मूलभूत कमीया है. अमेरिका मे इस वर्ष चुनाव है और हाल ही मे वहा अश्वेत व्यक्ती की पुलिस गोली से हुई मृत्यू को लेकरं दंगे भडके है. जो मोहतरमा इस ‘किताब की पब्लिसिटी कर राही है वो ट्रम्प विरोधी है .. बस… याही एक बात इस पुस्तक की प्रसंगिकता बताने के लिये काफी है . बाकी राही बात पुस्तक के विषय की , तो जनाब इस पार तो हमारे देश के काई राजनेतीक दल, विचारक , पत्रकारो की दशको से रोजी रोटी , खीर पुरी , मटण बिर्याणी वगेरे चल राही है. ये पुस्तक तो बस यहांचटनी की भाती है, अखिर कोई कितनी खायगा?

    • बाबू जितनी अच्छी तरह से आप अपने व्याख्यान पेश कर रहे है तो एक बात अच्छी तरह से जान लीजिए कि “समझदार के लिए इशारा काफी है और बच्चो के लिए गुब्बारा काफी है”

  2. ब्रह्मण जाति व्यवस्था का ब्याख्या किसी दूसरे से नही स्वीकार करता है ,अगर कोई दूसरा स्वयं निम्न जाति के लोग जाति की ब्याख्या करे तो उन्हें स्वीकार नहीं है ।

    ब्राह्मण महाजातिवादी होता है ।

  3. भारत का समाज विक्रितियों से पूर्ण रूप से भरा पडा है ।लेखिका ने जो लिखा कम है सायद जमीनी स्तर पर शुद्रो की हालत और भी भयंकर है जो सदियों पहले की बात करें तो बो जीवन नहीं होता था उसको समझने लिए एक अधमरा सांप लाखों लाल चींटियों के बीच मे हो ।
    आज की बर्तमान सरकार उस व्यवस्था को और मजबूती प्रदान करने के लिए मुस्लिमों को निसाने पर रख हिन्दू राष्ट्र की कल्पना सभी के जहन मे पैदा कर चूकी जो उन कट्टरपंथी मनुवादियों की बहुत बडी साजिश है ।
    शुद्र समाज पढने के बजाए पुजारियों और बाबाओं के चक्कर मे ज्यादा जाना पसंद करती है ।
    हम अपनी कमियों नहीं देखते दुसरों पर दोसा रोपड कर देना बडा आसान हैं।धन्यवाद।

  4. To isme galat baat konsi hai , Caste system Hindu Dharam pe sabse bada kalank hai. To dusre log humare iss kalank pe hi to baat karenge. Or Aapke comment me ek jikr bhi nahi hua , Jis wajah se ye book likhi gayi. To jabtak caste system khatam nahi hoga , tabtak esi book aati rahengi.

    • to ane do savarn kiska theka leke nehi rakha he ki sabka bojh apne upar le jae…ab scholarship sabko mila par savarno ko nehi kya galti he hamari .kya savaran garib nehi he…..aane do ye hindu hindu ka nara hame mat bolo….hum savarn he hame aur drama mat sikhao

  5. किताब अपने को महान मानने वाले कितने तुच्छ हैं उनकी औकात दिखाती है।

  6. क्योंकि कुछ इस तरह लिखने की हिम्मत नहीं है।

  7. किसी को जाति पांति से नफ़रत है तो किसी को ऊंच नीच से। किसी को अमीर गरीब से नफ़रत है तो किसी को नौकरियों में अधिकारी कर्मचारी जैसे पदों से।
    और तो और अब घरों में भी रिश्ते नातों से भी लोगों को नफ़रत होने लगी है।
    .
    यहां एक ही बात नजर में आ रही है संतोष किसी के पास नही है। धन लिप्सा बलवती हो चली है । लोगों को अपनी वाहवाही कराने के लिए अच्छा बुरा सब जायज लगता है।
    .
    लेकिन एक दिन सभी को इस तन को त्यागना है………. पता नहीं कब समझेंगे लोग?

    • Ek dam sahi kaha apne sb kuch jante hai log ki sbhi ko marna hai ekdin hme janm mila hai ki ham sabke sath milkar khushi se jee sake lekin ham sb kya kar rhe hai ek dusre se jalan chhota bada apne ko shresth btana or jeevan bhar kuthit hokar jeena bs itni hi h hmari jindagi

  8. भारत की जाति व्यवस्था अपने में पूर्ण और संतुलित है। यह दुनिया कि सर्वोत्तम व्यवस्था है। केवल कुछ लालची लोग इसको गलत ढंग से परिभाषित कर वाहवाही लूटने का प्रयास कर रहे हैं।जिन लोगों को भारतीय जनमानस कि व्यवस्था रास नहीं आ रही है वहीं लोग लोगों को भड़का कर उपद्रव कराने का प्रयास निरंतर करते रहते हैं।

    चीन समर्थित लेखक आजकल ज्यादा सक्रिय हो गए हैं और भारत को कमजोर करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। लेकिन हम भारतीय उनके मंसूबों को फलित नहीं होने देंगे।
    जय भारत

  9. यह मात्र पोलिटिकल स्टंट है…!! जाति कोई समस्या नहीं है बल्कि स्वयं को नीच या निम्नतर समझना समस्या है…!!

  10. क्या यह किताब हिंदी अनुवाद में उपलब्ध है???

  11. Jaati ka sabse jaada nuksan sc st OBC logoka ho raha hai aor des ka bhi nuksan ho raha hai jaati system khatm hone ke bad aarkshaaapo aap band hoga

  12. आज हिन्दू धर्म का झंडा दलितों और खासतौर से पिछड़ो ने ही उठा रखा है। सवर्ण तो केवल 10 से 15 प्रतिशत हैं। सारे महत्वपूर्ण और शासकीय पदों पर ये 10 प्रतिशत लोग ही बैठे हैं। कोई भी बात जो भारतीय समाज की सच्चाई सामने लाती है तो इनको बड़ी मिर्च लगती हैं। यदि आज के दलित और ओबीसी अपनी हिन्दू धर्म शास्त्रों में सही औक़ात पहचान जाय तो स्वर्णो का वर्चस्व खत्म हो जायेगा।

  13. Sunil ji kis mayne me bharat ki cast system acchi hai,agar dekha jaye to ye bharat k samaj k patan k lie sbse jyada jimmedar hai. Ek unchi caste wala hi caste system ko accha kh sakta hai kyoki use isme adhikar mila Huaa hai.

  14. भुवनेश्वर के ओडिशा के ढेनकनाल जिले के कांटियो केटनी गांव में 40 दलित परिवारों का केवल इसलिए बहिष्कार कर दिया गया क्योंकि 15 साल की एक बच्ची ने 2 महीने पहले ऊंची जाति के लोगों के बगीचे से फूल तोड़ लिए थे घटना के बाद गांव में दलित परिवारों का सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया बच्ची के पिता निरंजन नायक ने कहा कि हम ने माफी मांग ली थी फिर भी हमारा बहिष्कार कर दिया गया हम ना किसी से बात कर सकते हैं ना किसी सार्वजनिक आयोजन में भाग ले सकते हैं गांव के 800 परिवार रहते हैं इनमें से 40 दलित परिवारों के साथ यह किया गया इसे लेकर जिला प्रशासन को ज्ञापन दिया गया है । भाइयों यह घटना 22 अगस्त 2020 की है यानी कि फिलहाल की और आप बात करते हो हमारे पुराने धर्म हिंदू की तो देख लो इस हिंदू धर्म में आज इस 21वीं सदी सदी में देश में क्या हाल है एक आम दलित के साथ यह बताने के लिए किस देश में देश देश में रहने वाले रहने वाले दलितों के साथ आज क्या हाल है और यह तो मात्र में कुछ घटना है जो किसी न किसी माध्यम से हमारे लोगों द्वारा प्रकाशित कर दी जाती है ऐसी अनगिनत घटनाएं हमारे देश में हर वर्ष गठित होती हैं जिसका इन सरकार द्वारा दमन कर दिया जाता है सरकार के द्वारा दमन कर दिया जाता हैऔर बताने को बहुत सी बातें हैं पर अभी इन बातों का व्यर्थ में आपके सामने भी व्यक्त करना मैं लाइन लाजमी नहीं समझता और यह आपके आसपास हर समय जो आपसे दलित हैं लोग उनको आप देखो और उनके ऊपर जो बीत रही है उनको आप ज्ञान करो कि आज हम देश का दलित किस हालत में पहुंच चुका है और अगर आप बहुत ज्यादा इच्छुक है इसके बारे में जानने के लिए तो एक बार आप जम्मू से कन्याकुमारी के लिए ट्रेन में सफर करें रास्ते में जो कच्ची बस्ती आती है अगर आप में इतनी हमदर्दी है दलितों के प्रति तेवर उन कमरों में आने वाली कच्ची बस्तियों में जाकर उन लोगों का हाल-चाल देखें कि आज उनके पास जो एक आवश्यकता ग्रुप चीज है जो हमारे संविधान में हमारे को दे रखी है रोटी कपड़ा मकान कच्ची बस्तियों में आज रोटी कपड़ा मकान भी उपस्थित होने नहीं मिल पा रहा है तो बस मेरा मानना है कि मैं से लड़ने से बढ़िया है कि हम एक बार प्रैक्टिकल देखें सोते उसे महसूस करें कि देश का एक आम दलित आज कैसी कठिनाइयों के बीच जी रहा है और अपने बच्चों को पढ़ा रहा है और पढ़ाई नहीं रहा अपने बच्चों को कामयाबी बना रहा है और वही बच्चे आगे चलकर देश का सदुपयोग करेंगे और अंबेडकर साहब ने कहा है कि शिक्षा उस शेरनी का दूध है जो पियेगा वह दहाड़े गा । इसमें आप कितना भी जोर लगा लो किसी का कुछ नहीं चलेगा जो व्यक्ति जो दलित दलित बढ़ेगा और इस देश में इस देश में जो रामराज्य रामराज्य को लागू करेगा कहने की बातें हैं सब को यहीं विराम देता हूं धन्यवाद

  15. कमाल है ना ,लोगो को अपनी ५ पीढ़ी की नाम भी याद नहीं होती लेकिन ५००० साल क्या हुआ था ये भली भांति जानती है, प्ता नहीं किस पुस्तक से किस मुंह से पढ़ी या सुनीं।।
    मुगलों ने भारत में ८०० साल गुलाम बनाया ,अंग्रेजो ने २५० साल तो समझ नहीं आता ये जातिवाद, राज , ब्रह्मण का राज कैसे चलता रहा इन बीच के समय में…??

  16. भारत एक महान देश है सब जानते है और यही इसकी सबसे बड़ी खूबी रही है हमारी सनातन सभ्यता और संस्कृति जो की विभिन्न होते हुए भी एक है विश्व पटल पर देखे तो आज भी असल्ल में लोग यही जानने आते है और मोहित हुआ बिना नहीं रहते बाकी रहा जाति का parshn to विश्व में हर जगह सिर्फ और सिर्फ अशांति ही नजर आती है जबकि हमारे देश में इसे एक अवसर या त्यौहार भी कह सकते है जिसे की खासकर जो हमे यानि भारतीय होने पर गर्व का एहसास कराता है

Comments are closed.