भारत ने अपना अंतिम पारंपरिक युद्ध 1999 में लड़ा था, तब से इसका रणनीतिक वातावरण काफी बदला है. तब से सामने आई भारत की अपरिपक्व प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि उसका सैन्य सिद्धांत और सैन्य संरचना अभी भी अनुकूलित नहीं हुई है.
विरोध करने वाले छात्र भारतीय युवाओं के एक व्यापक दायरे– लिंग, जाति और वर्ग का एक मिश्रित समूह– से आते हैं और जेएनयू या जामिया के छात्रों के विपरीत, वे भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं.
प्रणब मुखर्जी 1984 और 2004 में प्रधानमंत्री बन सकते थे लेकिन नहीं बन पाए. उसकी बजाए वो यूपीए के लिए राहुल द्रविड़ की तरह 'दीवार' बन गए, जिसके बाद उन्हें राष्ट्रपति बनाया गया.
सीएए विरोधी आंदोलन ने भाजपा के लिए कोई राजनीतिक चुनौती नहीं पेश की थी. लेकिन उससे उत्पन्न ये उम्मीद खतरनाक थी कि जनसाधारण बेहतर भारत में यकीन कर सकता है.
पश्चिमी देशों में झूठी खबरें अक्सर छोटे या अनजान न्यूज़ पोर्टल से शुरू होती हैं. लेकिन भारत में मेनस्ट्रीम मीडिया भी झूठी खबर छाप या दिखा देता है जो कि सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं.
भारत में एमएसएमई में नॉलेज मैनेजमेंट का स्तर लगभग शून्य है. इस देश में अगर एमएसएमई टिके हुए हैं तो सिर्फ इसलिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था में कंज्यूमर डिमांड का विस्तार अभी शुरुआती दौर में है.
रिटायर्ड ले. जन. आसिम बाजवा और उनका परिवार, अपने पीज़्ज़ा साम्राज्य को लेकर निशाने पर हैं, लेकिन पाकिस्तान के डिजिटल प्रचार में उनके ‘योगदान’ से, कोई इनकार नहीं कर सकता.
भाजपा देख सकती है कि पश्चिम बंगाल में 2024 के चुनाव परिणाम के लिए ‘लक्ष्मीर भंडार’ के पीछे मतदाताओं का एकीकरण कैसे महत्वपूर्ण हो सकता है, जिसके लिए पार्टी ने खुद को तैयार कर लिया है.