बलात्कार, पुरुषों की यौन इच्छा या फिर औरत ने क्या पहना था या वो क्या कर रही थी के बारे में नहीं है. बलात्कार हमेशा अपनी ताकत, वर्चस्व और नियंत्रण दिखाने के बारे में है. हमारे देश के संदर्भ में ये जाति में भी तब्दील हो जाता है.
राष्ट्रपति पद के लिए 2012 के ओबामा-मिट रोमनी मुकाबले में भारतीय अमेरिकियों के वोट पर उतना ध्यान नहीं दिया गया था, और ओबामा ने नौकरियों को ‘बफेलो से बैंगलोर’ भेजने के लिए रोमनी पर निरंतर हमले किए थे.
यूडीआईएसई (शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली) की 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत में केवल 28.7 प्रतिशत स्कूलों और शहरी भारत में 41.9 प्रतिशत स्कूलों के पास ही उपयोग में लाने योग्य कंप्यूटर सुविधाएं थीं.
बिहार में चुनावीमहाभारत का सियासी पर्दा भले ही उठ गया है, मगर कई अहम सवालों के जवाब अनुत्तरित रहने के कारण चुनाव नतीजे का ऊंट इस बार किस करवट बैठेगा. 10 नवंबर तक इंतजार करना होगा.
सामान्य लोगों को लाखों करोड़ रुपयों से शायद ही वास्ता पड़ता होगा इसलिए वे इतनी बड़ी रकम के बारे में सुन कर घबरा सकते हैं, लेकिन सार्वजनिक खर्चों के मामले में 80 हज़ार करोड़ कोई इतनी बड़ी रकम नहीं होती.
जो लोग भी देश के बहुलवादी लोकतांत्रिक व संवैधानिक स्वरूप को सुरक्षित रखना चाहते हैं, इस बेहिस उम्मीद के सहारे बैठे रहकर गलती करेंगे कि एक दिन बहुसंख्यक समुदाय स्वयं ऐसे मुद्दों को बारंबार हवा देने की कोशिशों के खिलाफ खिलाफ उठ खड़ा होगा.
ट्विटर पर निडरता के साथ अपनी बात रखने भर से काम नहीं चलने वाला. विपक्ष को बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र सीएए-विरोधी आंदोलन से सीख लेनी चाहिए.
अमित शाह की जगह भाजपा अध्यक्ष बनने के आठ महीने बाद नड्डा ने शनिवार को जो नयी टीम बनाई उसमें भी, हार का मुंह देखने वाले पार्टी नेताओं की ही बल्ले-बल्ले रही.
जब वर्तमान वैश्विक महामारी ने लगभग सभी क्षेत्रों और संस्थाओं को अपनी रीति-नीति को बदलने पर विवश कर दिया है तो संसद भी इससे अछूती क्यों रहे ? भारतीय संसद को वे सभी जरूरी बदलाव करने के बारे में सोचना चाहिए जो किसी भी राष्ट्रीय संकट, आपदा या महामारी की स्थिति में उसे अपने जरूरी दायित्वों का निर्वाह करने के लिए सक्षम बना सके.