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Thursday, 25 April, 2024
होममत-विमतसोनपापड़ी ना बाबा ना ! आखिर क्यों है यह दिवाली उपहार की सबसे कम पसंदीदा मिठाई?

सोनपापड़ी ना बाबा ना ! आखिर क्यों है यह दिवाली उपहार की सबसे कम पसंदीदा मिठाई?

हाल के कुछ वर्षों में सोनपापड़ी सोशल मीडिया पर चल रहे कई सारे चुटकुलों और मीम्स का भी हिस्सा बन गयी हैं. और तो और, इसे कितना नापसंद किया जा रहा है उसे साबित करने के लिए डेटा भी उपलब्ध है.

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दिवाली एक बार फिर से वापस आ गई है और बाजार मिठाइयों से गुलजार हो रहे हैं, सड़कों पर पटाखों की धूम गूंज रही हैं और हवा…. इसके बारे में तो जितना कम कहा जाए, उतना ही अच्छा है. हालांकि, अगर इस त्यौहार में कुछ अतिरिक्त चीनी और कैलोरी का पुट ना मिला हो फिर इस उत्सव का कोई आनंद ही नहीं है.

शुक्र है भारत की विविधता का कि हमारे पास इतनी सारी मिठाइयां हैं कि मैं उनमें से प्रत्येक के बारे में एक आलेख लिख सकता हूं. लेकिन इस लेख में तो मैं खुद को इनमें सबसे ज्यादा नापसंदीदा मिठाई – सोन पापड़ी – तक ही सीमित रखने जा रहा हूं.

मैं पिछले कुछ सालों से सोशल मीडिया पर बेसन, मैदा, चीनी और घी से बनी इस मिठाई को लेकर चस्पा किये गए चुटकुले और मीम्स देख रहा हूं. आप इस ट्विटर पेज पर इसमें कुछ सबसे मजेदार चुटकुलों को देख सकते हैं. लेकिन आखिर सोन पापड़ी के खिलाफ इतनी तिरस्कार की भावना क्यों? एक साधारण, सस्ती सी मिठाई कैसे लोगो की नफरत का विषय बन जाती है?

इसका उत्तर इसके अर्थशास्त्र में निहित है.

सोन पापड़ी में लोगों की ‘रुचि!’

जब मैंने मिठाइयों को खरीदने के बारे में लोगों की रुचि से सम्बंधित आंकड़े देखने के लिए गूगल टेंड्स के डेटा का उपयोग किया, तो मुझे मामला कुछ-कुछ समझ में आया. हमारे सर्वकालिक पसंदीदा मिठाइयों – गुलाब जामुन, रसगुल्ला, काजू कतली, और बर्फी – की तुलना में गरीब सी दिखने वाली सोन पापड़ी कहीं टिकती हीं नहीं है!

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प्रत्येक मिठाई के बारे में पूछा जा रहा सबसे अहम् सवाल इसकी कीमत को लेकर था. लोग आमतौर पर किसी भी विशेष मिठाई की कीमत प्रति किलो के आधार पर देखते हैं, या यदि यह किसी खास रेस्तरां की विशेषता है, तो वे इसका नाम भी अपनी गूगल सर्च में जोड़ देते हैं.

उपलब्ध डेटा से पता चलता है कि इस साल 1 से 29 अक्टूबर के बीच रसगुल्ला 71 के स्कोर के साथ सबसे अधिक खोजा जाने वाला मिठाई था, इसके बाद गुलाब जामुन (61), बर्फी (57) और काजू कतली (34) का नंबर रहा. बेचारी सोन पापड़ी को केवल 23 का ही स्कोर मिला और यह सिर्फ इस साल की बात नहीं है. पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान भी कुछ इसी तरह का रुझान देखने को मिला था.

इससे यह तो स्पष्ट है कि जब कोई मिठाइयों की कीमत के बारे में देख रहा होता है, तो सोन पापड़ी उसकी स्वाभाविक पसंद नहीं होती है. अतः अगर किसी को यह अचानक से, बिना किसी पूर्व-सूचना के, मिले तो उसे बुरा क्यों नहीं लगेगा?

आपसी रिश्तों का बैरोमीटर

उपहार में सोन पापड़ी देने वाले किसी रिश्तेदार के खिलाफ तिरस्कार की भावना उसके साथ आपके लगाव के स्तर पर भी निर्भर करता है. इसलिए यदि कोई बहुत करीबी रिश्तेदार, जो बाकी सबसे ऊपर है, को उसे वह सबसे खास उपहार मिलता है जो आपकी जेब की पहुंच में होता हैं, इसी तरह जिन्हें आप बिल्कुल भी पसंद नहीं करते है, तो आप उन्हें सबसे कमतर वस्तु देते हैं यानि की सोन पापड़ी.

हालांकि, मेरे अपने अवलोकन के आधार पर सोन पापड़ी को कभी भी अपने प्रियजनों को एक एकलौते उपहार के रूप में नहीं दिया जा सकता है. इसलिए हमारी अत्यंत चतुर, सुजान माताएं आमतौर पर इसे रिश्तेदारों कुछ अधिक मूल्यवान उपहार, जैसे कि ग्लास आइटम्स / कटलरी, कटोरे आदि के एक सेट, के साथ चस्पा कर के देती हैं. ऐसा करने से न तो परिजन को सोन पापड़ी का उपहार आपत्तिजनक लगता है और न ही हमें स्वयं उसे ठिकाने लगाने का अपराध-बोध होता है – यह एक तीर से दो निशाने लगाने जैसा है.

यदि आपको कोई एकलौती मिठाई देनी है, तो आमतौर पर सबसे ऊपरी स्थान पर, सूखे मेवे, आर्टिसनल चॉकलेट, काजू कतली, गाजर पाक / हलवा और स्थानीय रूप से किसी खास दुकान में मिलने वाली मिल्क केक को रखा जाता है.

उपहार में सिर्फ सोन पापड़ी और साथ में कुछ भी नहीं देने वालों के साथ आपको अपने रिश्ते को सुधारने का संकेत मिलता है. संभवतः इसकी शुरुआत उन्हें रिटर्न गिफ्ट के रूप में सोन पापड़ी न देकर ही करें?

अगर वाकई में किसी व्यक्ति को सोन पापड़ी बहुत पसंद है तो फिर तो बात अलग है. बुरा न माने, लेकिन अधिकांश लोग इसे थोक में उस तरह से नहीं खाते जैसे की वे अन्य मिठाइयों के मामले में करते हैं.


यह भी पढ़ें : इस दीवाली दो तिहाई परिवार नहीं जलाएंगे पटाखे, 53 फीसदी नहीं करते बैन का सपोर्ट- सर्वे में खुलासा


यदि आप किसी के ख़ास नजदीकी नहीं हैं, फिर भी आप उनसे सोन पापड़ी उपहार के रूप में प्राप्त करते हैं, तो इसे ‘सोना’ ही समझें. आखिर दीवाली सिर्फ रोशनी बिखेरने और पटाखे फोड़ने का त्योहार नहीं है बल्कि वह उपहार देकर खुशियां बांटने का भी त्योहार है. शायद यह किसी नए चीज/रिश्ते की शुरुआत भी साबित हो सकती है.

मिठाइयों का सूक्ष्म अर्थशास्त्र

हाई स्कूल में अर्थशास्त्र का अध्ययन करने वाले सभी छात्र घटते प्रतिफल के नियम (लॉ ऑफ़ डिमिनिशिंग रिटर्न्स) को अच्छी तरह से समझ सकते हैं. फिर भी जिन्होंने इस नहीं पढ़ा उनके लिए मेरे पास एक उदाहरण के रूप में ‘सम्मानजनक’ सोन पापड़ी का उपयोग करते हुए इसे समझाने का एक सुनहरा मौका है.

जरा गुलाब जामुन के एक डिब्बे के बारे में सोचें. जब आपके पास पहला पीस होता है, तो आप बेहद खुश होते हैं. आप इतने खुश होते हैं कि आपको एक और खाने का मन करता है. याद रखें, आप जैसे-जैसे अतिरिक्त गुलाब जामुन खाते हैं, उसके साथ भी इसे और अधिक खाने की आपकी इच्छा कम होती जाती है. जटिल आर्थिक शब्दजाल के आधार पर यह एक बुनियादी कानून है जो आपके द्वारा पहले से उपभोग की गई किसी चीज़ के लिए आपकी (कम होती हुई) प्राथमिकता को परिभाषित करता है.

कोई भी व्यक्ति गुलाब जामुन या रसगुल्ला को अधिक मात्रा में खाने के बारे में सोच सकता है क्योंकि वे छोटे, स्वादिष्ट होते हैं, और कभी-कभी उनमें कुछ भरा भी होता है. इस साल रक्षाबंधन पर मेरे पास पंद्रह मिनट में नौ गुलाब जामुन खाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. लेकिन फिर भी मैंने इसे काफी आराम से कर लिया.

क्या मैं सोन पापड़ी के साथ भी ऐसा ही कर सकता था? बिल्कुल नहीं. मुझे अभी भी शताब्दी एक्सप्रेस में यात्रियों को मुफ्त में दिया जाने वाला इसका छोटा सा पैक याद है. मैं इसे बिना अपराधबोध के खा सकता था क्योंकि यह छोटा सा था. लेकिन यह मिठाई जितने बड़े आकार वाले पैक में आती है, यह अपने आप में एक समस्या है, खासकर तब जब आप इसे खाने वाले अकेले शख्श हों. आपको इसके साथ कुछ तरल पदार्थ, जैसे दूध, चाय, चाहिए होता है. इसके अलावा, इसकी कुछ किस्में चुभने वाली होती हैं और वे जीभ को कष्ट पहुंचाती हैं.

यदि आप मुझे एक भी अतिरिक्त सोन पापड़ी खाने के लिए मजबूर करते हैं, तो मैं इस पर सिर्फ भड़क हीं सकता हूं. हर अगली सोन पापड़ी मुझे और बुरा महसूस कराएगी और साथ ही मेरे नेगेटिव रिटर्न ऑफ़ डिससटिफेक्शन को बढ़ाएगी ही.

जब आप दस लोगों को उपहार देते हैं, तो बदले में आप भी दस उपहार वापस मिलने की उम्मीद करते हैं, लेकिन अगर उनमें से आधे सोन पापड़ी हैं, तो क्या आप उदास महसूस नहीं करेंगे?

कोई भी परिवार सप्ताह में इसका एक डिब्बा खा सकता है, लेकिन 10 डिब्बे? इसे लोगों से लेकर दूसरों को आगे बढ़ाना ही बेहतर विकल्प हो सकता है, यहां भी कर्म का सिद्धांत जैसे करनी,वैसी भरनी (जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा) ही लागू होता है.

चुटकुलों के अलावा, दीवालीनॉमिक्स पर आधारित यह आलेख पूरी तरह से मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है, इसलिए कृपया इसे दिल पर न लें. अपनी पसंद के अनुसार उपहार दें और एक सुरक्षित और मीठी दिवाली का आनंद उठायें.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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