बेजान कंपनियों को और अशक्त बैंकों को थोड़ी और अवधि के लिए उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए यदि ऐसा करने से व्यापक सुधारों की भूमिका बनती हो, ताकि भारत 1980 के दशक वाली विफल वित्तीय प्रणाली से छुटकारा पा सके.
जीएसटी से आय में कमी की भरपाई के लिए चाहे जो भी उधार लेगा, सरकार पर सामान्य कर्ज का बोझ बढ़ने ही वाला है इसलिए उधार लेने की एक व्यवस्थित योजना बनाने की जरूरत है.
जीएसटी से इस साल अगस्त में जो राजस्व आया वह पिछले साल अगस्त में आए इस राजस्व से 12 फीसदी कम रहा, अब अर्थव्यवस्था कोरोना के कारण लॉकडाउन के बाद सुधार की ओर रेंगती हुई बढ़ रही है.
इस साल के बजट में वित्तीय घाटा जीडीपी के 3.5 प्रतिशत के बराबर रहने का अनुमान लगाया गया था मगर कोरोना महामारी और लॉकडाउन के प्रभावों के चलते यह संभव नहीं दिख रहा है.
मरीज अगर अपना इलाज एक जगह छोड़कर दूसरी जगह कराना चाहें तो उन्हें तमाम तरह के कागजात साथ रखने पड़ते हैं, लेकिन डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत उनकी सेहत से संबंधित जानकारियों का डिजिटल रेकॉर्ड रखा जाएगा.
आरबीआई ने कोविड-19 महामारी के असर से निपटने के तरीके के रूप में मोराटोरियम बढ़ाने की बजाए एकमुश्त ऋण पुनर्गठन की बैंकरों की मांग को स्वीकार कर लिया है.
केंद्र सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों में अनेक पाबंदियों को हटाने की पहल की है और 1991 के उदारीकरण के विपरीत, राज्य सरकारें भी इस प्रक्रिया में साथ दे रही हैं.
सप्लाई चेन्स के धीरे धीरे फिर से शुरू होने के साथ ही, मुद्रास्फीति घट सकती है. लॉकडाउन से भी आंकड़े सीमित हो गए हैं, इसलिए दरें बदलने से पहले, एमपीसी को इंतज़ार करना चाहिए.
एक राष्ट्र, एक चुनाव के आलोचक मतदाताओं की थकान के बारे में नहीं सोच रहे हैं. जब चुनाव कई बार और लगातार होते हैं, तो शिक्षित मतदाता भी उन्हें एक अतिरिक्त छुट्टी के रूप में देखता है.