परामर्श और भागीदारी की प्रक्रिया के ज़रिए बदलाव किए जाने पर लोग बगैर टकराव के नए विचारों के अभ्यस्त हो सकते हैं. बुरे प्रस्तावों को छोड़ा जा सकता है जबकि अच्छे को बेहतर बनाया जा सकता है.
दूसरी तिमाही के लिए जीडीपी के आंकड़े उम्मीद से बेहतर रहे, लेकिन अब भी कोविड के मामले बढ़ने से विकास पर असर पड़ सकता है. लगातार आपूर्ति-पक्षीय मुद्रास्फीति भी एक समस्या है.
हाल में कई बैंक जिस तरह फेल हुए हैं वे जाहिर करते हैं कि रिजर्व बैंक की निगरानी क्षमता को लेकर शंकाएं बेजा नहीं हैं, जिसकी एक मिसाल यह है कि रिजर्व बैंक ने खराब कर्जों की समस्या को पनपने दिया.
पीएलआई योजना भारत में विनिर्माण और निर्यात संभावनाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से प्रोत्साहन के जरिये कंपनियों की तीव्र प्रगति पर केंद्रित है. लेकिन लंबे समय में इन क्षेत्रों को अपने हाल पर ही छोड़ देने की जरूरत है.
शहरों में नहरों की खुदाई जैसे शारीरिक श्रम वाले कार्यों की गुंजाइश बहुत कम है. शहरी मनरेगा के लिए अपेक्षानुरूप रोज़गार प्रदान करना और बुनियादी सुविधाएं तैयार करना शायद संभव नहीं हो.
कैपिटल कंट्रोल वित्तीय स्थिरता के लिए चाहे ज़रूरी हो, पर भारत का अनुभव दिखाता है कि आईएमएफ को अपना ध्यान पारदर्शिता के मापदंड और कानून के राज पर देना चाहिए.
रिज़र्व बैंक को ब्याज दरों में कटौती के फायदों के हस्तांतरण की व्यवस्था सुधारने की दिशा में काम करना चाहिए, उससे कहीं अधिक जितना कि मुद्रास्फीति का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रणाली लागू किए जाने के पहले चार वर्षों में किया गया है.