scorecardresearch
Friday, 26 April, 2024
होमइलानॉमिक्स10 क्षेत्रों के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इन्सेंटिव मोदी सरकार की मंशा बताते हैं, लेकिन इसे अस्थायी ही रखने की जरूरत है

10 क्षेत्रों के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इन्सेंटिव मोदी सरकार की मंशा बताते हैं, लेकिन इसे अस्थायी ही रखने की जरूरत है

पीएलआई योजना भारत में विनिर्माण और निर्यात संभावनाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से प्रोत्साहन के जरिये कंपनियों की तीव्र प्रगति पर केंद्रित है. लेकिन लंबे समय में इन क्षेत्रों को अपने हाल पर ही छोड़ देने की जरूरत है.

Text Size:

विनिर्माण से जुड़े 10 क्षेत्रों के लिए 1.46 लाख करोड़ रुपये के प्रोडक्शन-लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) की घोषणा की गई है. इन क्षेत्रों में ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट, फार्मास्यूटिकल ड्रग्स, एडवांस केमिकल सेल (एसीसी), कैपिटल गुड्स, प्रौद्योगिकी उत्पाद, कपड़ा उत्पाद, व्हाइट गुड्स, खाद्य उत्पाद, दूरसंचार और विशेष तौर पर स्टील शामिल हैं.

10 क्षेत्रों के लिए पांच साल की अवधि का वित्तीय आउटले आवंटित कर दिया है, और इस योजना का उद्देश्य भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना, निर्यात बढ़ाना देना और भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन का एक अभिन्न हिस्सा बनाना है.

पीएलआई योजना कंपनियों को तेजी से वृद्धि के लिए प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है. इनमें से कुछ प्रोत्साहन उन उद्योगों की मदद के लिए हैं जहां भारत पहले से ही तुलनात्मक रूप की फायदे की स्थिति में है, अन्य उद्योगों में खाद्य जैसे क्षेत्र शामिल हैं जिनमें भारत वर्ल्ड लीडर बनने की क्षमता रखता है; और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पीएलआई योजना उन क्षेत्रों के लिए है जहां भारत की चीनी आयात पर एक असहज निर्भरता है.

किसी भी क्षेत्र के लिए कोई योजना कम या मध्यम अवधि के लिए लागू करना ही बेहतर होता है. लंबे समय में एक अर्थव्यवस्था केवल तभी प्रतिस्पर्धी बन सकती है जब विभिन्न क्षेत्रों को उनके अपने हाल पर छोड़ दिया जाए. उन क्षेत्रों के लिए संसाधन फिर उपलब्ध हो जाते हैं जो उच्च उत्पादकता वृद्धि दर्शाते हैं. भारत में फार्मा या आईटी जैसे कुछ उभरते क्षेत्रों ने सेक्टर आधार पर सरकार से किसी विशेष समर्थन के बिना ऐसा कर दिखाया है. यदि पीएलआई योजना कारगर रहती है और उत्पादन को प्रोत्साहन में मददगार साबित होती है तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी.

दो बातें ध्यान रखी जानी चाहिए. एक कि इन क्षेत्रों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए प्रोत्साहन अस्थायी होना चाहिए, अन्यथा वे तेजी से बढ़ने के बजाये इसके दीर्घकालिक विकास को धीमा कर देंगे. दूसरा, जिन क्षेत्रों को प्रोत्साहन नहीं मिल रहा वे तुलनात्मक रूप से नुकसान की स्थिति में हैं, और सरकार को व्यापार, कर और नीतिगत वातावरण में सुधार के लिए दोगुनी मेहनत करनी चाहिए ताकि सभी उद्योगों को लाभ पहुंचाया जा सके.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें


यह भी पढ़ें: मनरेगा के शहरी संस्करण में दूर की सोच नहीं, मोदी सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डालकर समझदारी दिखाई है


निर्यात की संभावनाएं बढ़ाना

सरकार ने पहले बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (विशेष रूप से मोबाइल फोन), चिकित्सा उपकरणों और दवा सामग्री के लिए 50,000 करोड़ रुपये की पीएलआई योजना शुरू की थी. विदेशी कंपनियों को प्रोत्साहन के साथ-साथ इस योजना का उद्देश्य स्थानीय विनिर्माण इकाइयों को अपनी विनिर्माण इकाइयां लगाने या इनका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करना था. यह योजना मौजूदा और नई इकाइयों को अपनी बिक्री बढ़ाने में मदद करती है.

वैसे तो नई पीएलआई योजना का उद्देश्य कोविड-19 महामारी की चपेट में आकर चौपट हुए उद्योगों की मदद करना है, लेकिन इसका लक्ष्य चीनी आयात पर निर्भरता घटाना भी है. दूरसंचार क्षेत्र में इस योजना का उद्देश्य 4जी, 5जी और वायरलेस उपकरणों के विनिर्माण को बढ़ावा देना है. भारत दूरसंचार क्षेत्र में ब्रिटेन, जापान और अन्य देशों के साथ साझेदारी कर रहा है ताकि चीनी दूरसंचार कंपनियों को उनके अधिकार क्षेत्र में 5जी इंफ्रास्ट्रचर के निर्माण से रोका जा सके, जिससे सुरक्षा संबंधी चिंताएं उत्पन्न हो सकती हैं.

भारत की निर्यात संभावनाएं ध्यान में रखकर इस योजना में वस्त्र उत्पाद भी शामिल किए गए हैं जिनमें निर्यात क्षमता तो है लेकिन महंगे कच्चे माल और विदेशों से सस्ते आयात के कारण इसे मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है. सौर फोटो-वोल्टाइक पैनल जैसे कुछ उभरते क्षेत्र भी पीएलआई योजना के लिए चयनित 10 क्षेत्रों की सूची में शामिल हैं.

सरकार विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने और निर्यात बढ़ाने के कदम उठा रही है. कॉर्पोरेट टैक्स की दर में कमी इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है. हालांकि, यह सभी क्षेत्रों के लिए समान रूप से लागू किया गया था.

पीएलआई योजना विनिर्माण क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन और निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में एक और कदम है. हालांकि सभी क्षेत्रों के संबंध में योजना का पूरा खाका ज्ञात नहीं है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए पूर्व की पीएलआई योजना इस तरह तैयार की गई थी कि यह विश्व व्यापार संगठन की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है क्योंकि समर्थन को सीधे तौर पर निर्यात या वैल्यू-एडिशन से नहीं जोड़ा गया है. यह पूर्व में शुरू की गई मर्चेन्डाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (एमईआईएस) जैसी योजनाओं के विपरीत है, जिन्हें विश्व व्यापार संगठन में चुनौती दी गई थी.

पीएलआई योजना सभी संस्थाओं को थोड़ा-थोड़ा लाभ पहुंचाने के बजाय उन कंपनियों के लिए कारगर साबित होती है जो आधार वर्ष में इन्क्रीमेंटल राजस्व के लिए प्रतिबद्ध होती हैं. सरकार उच्च उत्पादन के बीच घरेलू बिक्री से जो जीएसटी जुटाएगी वो प्रोत्साहन पेशकश के फायदे के रूप में सामने आ सकता है.

सरकारी सहयोग अस्थायी होना जरूरी क्यों है

नवजात उद्योग का तर्क देकर कुछ क्षेत्रों के लिए सरकारी सहयोग को उचित ठहराया जा सकता है. नए उद्योगों की आर्थिक स्थिति उस स्तर की नहीं हो सकती जैसी अन्य देशों में उनके पुराने और स्थापित प्रतिस्पर्धियों के पास हो सकती है, और ऐसे में उन्हें उतनी मजबूत आर्थिक स्थिति हासिल करने के लिए कुछ प्रोत्साहन दिए जाने की आवश्यकता हो सकती है.

हालांकि, ये प्रोत्साहन अच्छी तरह से निर्धारित और अस्थायी होने चाहिए ताकि सहयोग पाने वाले उद्योग विकसित हो सकें और किसी संरक्षण के बिना आर्थिक आत्मनिर्भरता हासिल कर सकें. इन क्षेत्रों की मदद लंबे समय तक जारी रखना इन क्षेत्रों की वृद्धि को गति देने के बजाये उन्हें पंगु बना सकता है.

इन उपायों के साथ-साथ आयात शुल्क को भी युक्तिसंगत बनाए जाने की जरूरत है. यहां तक कि अगर इन्हें लगाया जाता है तो भी निर्धारित समयसीमा का एक स्पष्ट क्लॉज होना चाहिए. हाल के वर्षों में सरकार ने मोबाइल फोन सहित इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं पर सीमा शुल्क बढ़ा दिया है. सीमा शुल्क वृद्धि के कारण कई देशों ने भारत को विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटारे वाले तंत्र में घसीट लिया है.

इसके अलावा तकनीकी क्षमता के अभाव में ऐसे कदम घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाने में मददगार नहीं होते हैं. इसके बजाय वे घरेलू निर्यात पर कर के रूप में कार्य करते हैं. इस संदर्भ में पीएलआई योजना तकनीकी क्षमता बेहतर बनाने में मददगार हो सकती है क्योंकि यह उन कंपनियों को प्रोत्साहन देती है जो निवेश की सीमा और इन्क्रीमेंटल बिक्री बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध होती हैं.

चूंकि ऐसे समर्थन का उद्देश्य विदेशी कंपनियों को भारत में विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना भी है, इसलिए यह जरूरी है कि उन्हें एक पारदर्शी और स्पष्ट नीति मुहैया कराई जाए. नीतिगत असंगतता और नियामक परिदृश्य में बार-बार बदलाव विदेशी खिलाड़ियों को भारत में बड़े पैमाने पर निवेश की प्रतिबद्धता से दूर रखेगा.

पीएलआई योजना भारत में घरेलू विनिर्माण की संभावनाएं बढ़ाने की सरकार की मंशा को दर्शाती है. यह बड़ी कंपनियों को और आगे बढ़ने, निवेश बढ़ाने और ग्लोबल सप्लाई चेन का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहन देने वाली भी है. यह पूर्व में एमएसएमई को दिए गए समर्थन में एक स्वागत योग्य बदलाव है, जिसने उन्हें छोटे स्तर पर ही बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया था.

पीएलआई योजना को अस्थायी ही रखने के अलावा पारदर्शी और स्पष्ट नीतिगत ढांचे के जरिये देश में व्यापार के लिए बेहतर माहौल बनाने के उपाय किए जाने चाहिए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं और राधिका पांडेय एनआईपीएफपी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढे़ं: मोदी सरकार के ‘ब्याज पर ब्याज’ माफ करने का दीवाली उपहार भारत के ‘क्रेडिट कल्चर’ के लिए अच्छी खबर क्यों है


 

share & View comments