नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ तनाव के मद्देनज़र भारत में राजनीतिक दलों द्वारा प्रदर्शित एकता की गुरुवार को सराहना की और सरकार से राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में आत्मनिर्भर होने का आह्वान किया.
नागपुर में स्वयंसेवक प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन पर कार्यकर्ता विकास वर्ग-2 को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा, “देशभक्ति के इस माहौल में, अपनी आपसी प्रतिद्वंद्विता को भूलकर, प्रतिस्पर्धी एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं. यह सच में आदर्श लोकतंत्र की तस्वीर है. यह भविष्य में भी जारी रहना चाहिए.”
भागवत ने आगे समाज से सतर्क रहने का आग्रह किया और इस बात पर जोर दिया कि भारत को सुरक्षा मामलों में आत्मनिर्भर बनना चाहिए. उन्होंने कहा, “नई तरह की तकनीकों पर शोध किया जाना चाहिए.”
उन्होंने पहलगाम हमले पर मोदी सरकार की प्रतिक्रिया की भी प्रशंसा की. इस हमले में जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों ने 26 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
भागवत ने कहा, “पहलगाम में हुए क्रूर हमले में हमारे देश के नागरिक आतंकवादियों द्वारा मारे गए. स्वाभाविक रूप से हम दुखी और क्रोधित थे. बदले में कुछ कार्रवाई की गई. इस पूरे प्रकरण में एक बार फिर हमारी सेना की क्षमता और वीरता का परिचय हुआ.”
इस घटना के बाद राजनीतिक वर्ग और जनता ने किस तरह आपसी समझ दिखाई, इस पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “लंबे समय से प्रतीक्षित समझ का प्रदर्शन करते हुए और मतभेदों को भुलाते हुए, पूरे समाज ने एकता का एक शानदार दृश्य बनाया. अगर यह दृश्य हमेशा बना रहे, तो यह हमारे देश के लिए एक बड़ा समर्थन होगा.”
पाकिस्तान का नाम लिए बिना भागवत ने कहा कि भारत को सीधे हराने में असमर्थ पड़ोसी देश ने आतंकवाद और छद्म युद्ध का सहारा लिया है.
उन्होंने कहा, “हम अलग हुए ताकि शांति से रह सकें, लेकिन, अलग होने के तुरंत बाद ही उन्होंने कलह पैदा करना शुरू कर दी. द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के भूत से पैदा हुए पाखंड को रोका जाना चाहिए…जब तक द्विराष्ट्र सिद्धांत का भूत मौजूद है, तब तक हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना रहेगा.”
सभी समुदायों और वर्गों से शांति और सद्भाव से रहने का आग्रह करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि लोगों को छोटी-छोटी बातों पर आंतरिक संघर्ष से बचना चाहिए.
उन्होंने कहा, “किसी भी स्थिति में समाज के किसी भी वर्ग को दूसरे वर्ग से नहीं लड़ना चाहिए. हमें आपस में सद्भावना बनाए रखनी होगी. भावुक होकर अत्याचारी बनना ठीक नहीं है. अब हमारी (भारत की) सरकार है, यह भारत के संविधान के अनुसार सरकार है. इसलिए हमें बिना किसी कारण के अभद्र भाषा का प्रयोग करना छोड़ना होगा.”
भागवत ने धर्म परिवर्तन पर आरएसएस की स्थिति को भी दोहराया, उन्होंने कहा कि संगठन धर्म परिवर्तन को “हिंसा” का एक रूप मानता है और यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है कि लोगों को लालच न दिया जाए या उन्हें अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर न किया जाए.
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ राजनेता अरविंद नेताम, जिन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों इंदिरा गांधी और पी.वी. नरसिम्हा राव के अधीन काम किया, इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे.
आदिवासी क्षेत्रों में “बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन” को रोकने के लिए काम करने के नेताम के अनुरोध को स्वीकार करते हुए, भागवत ने जोर देकर कहा कि आरएसएस धर्म परिवर्तन को “हिंसा” मानता है.
भागवत ने कहा, “हमारे पास विभिन्न धर्मों और समुदायों के साथ कोई मतभेद नहीं है. ईसा, मोहम्मद, सभी पूजनीय हैं और हम उनका सम्मान भी करते हैं, लेकिन हर कोई अपने धर्म का पालन करेगा. जिन लोगों ने लालच या जबरदस्ती से अपना धर्म बदल लिया और अब वापस आना चाहते हैं, उनका भी सम्मान किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक सुधार है.”
नेताम ने अपने भाषण में आरएसएस प्रमुख से नक्सलवाद के पुनरुत्थान को रोकने के लिए एक कार्य योजना के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डालने का आग्रह किया.
भागवत ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि युद्ध की प्रकृति बदल गई है और अब लड़ाई आमने-सामने नहीं लड़ी जाती.
उन्होंने कहा, “बदलती तकनीक के साथ, आप एक कमरे में बैठकर एक बटन दबा सकते हैं और ड्रोन से हमला कर सकते हैं.”
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि असली ताकत समाज के लोगों के पास है.
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