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गुरूवार, 12 जून, 2025
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ट्रंप की भूमिका, भारतीय मुसलमानों को ‘राफेल से नुकसान’, ऑपरेशन सिंदूर डेलिगेशन से देशों ने क्या पूछा

मलेशिया और कोलंबिया में कड़े स्वागत से लेकर अन्य देशों में अनुकूल प्रतिक्रिया तक, भारत-पाकिस्तान संघर्ष के बाद अपने आउटरीच के दौरान भारतीय नेताओं को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

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नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के बाद सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों ने सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ भारत का संदेश देने के लिए कई देशों का दौरा किया. प्रतिनिधिमंडलों द्वारा दौरा किए गए देशों द्वारा उठाए गए प्रमुख सवाल भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका, सैन्य टकराव में भारत द्वारा खोए गए लड़ाकू विमानों की संख्या, भारत में मुसलमानों की स्थिति, भारत और पाकिस्तान को समान रूप से जिम्मेदार बताने वाली पश्चिमी नैरेटिव, परमाणु हथियार का संभावित इस्तेमाल और पाकिस्तान को वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की ग्रे सूची में शामिल किए जाने से संबंधित हैं.

सबसे चुनौतीपूर्ण यात्रा मलेशिया में हुई जहां पाकिस्तान ने भारत की पहुंच को कम करने के लिए “इस्लामी एकजुटता” का आह्वान करने की कोशिश की. जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल कुआलालंपुर में था, तो पाकिस्तानी दूतावास ने कथित तौर पर मलेशियाई अधिकारियों से प्रतिनिधिमंडल के कार्यक्रमों को रद्द करने का आग्रह किया. हालांकि, मलेशिया ने कथित तौर पर पाकिस्तान के अनुरोध पर विचार करने से इनकार कर दिया.

संजय झा के नेतृत्व में जापान, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, सिंगापुर और इंडोनेशिया का दौरा करने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल भाजपा सांसद बृज लाल ने दिप्रिंट से कहा, “पाकिस्तान ने हमारे मिशन को विफल करने की कोशिश की. मलेशियाई दूतावास बहुत सक्रिय था और उसने सवाल किया कि हम यात्रा क्यों कर रहे हैं. हमने उनसे कहा, ‘पाकिस्तान आपका मित्र है, लेकिन आपको अपराधी और रक्षक के बीच अंतर करना चाहिए’.”

उन्होंने कहा, “हमने उनसे कहा कि वह पाकिस्तान के साथ अपनी दोस्ती बनाए रखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि 1965 में जुल्फिकार अली भुट्टो ने क्या कहा था — कि पाकिस्तान भारत के खिलाफ ‘हज़ार साल का युद्ध’ छेड़ेगा. यह उनके नेतृत्व और सेना की मानसिकता को दर्शाता है. यहां तक ​​कि जनरल ज़िया-उल-हक ने भी उस बयान को दोहराया था. हमने उन्हें पहलगाम हमले से एक हफ्ते पहले (पाकिस्तानी सेना प्रमुख) असीम मुनीर की टिप्पणी की भी याद दिलाई.”

प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले संजय झा ने कहा, “इंडोनेशिया का रुख अधिक सहायक था क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी होने के बावजूद वह भारतीय संस्कृति को साझा करते हैं…हमने उन्हें बताया कि पाकिस्तान ओआईसी (इस्लामिक सहयोग संगठन) में भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाता रहता है. चूंकि, हम ओआईसी का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए हमने उनसे ऐसे प्रस्तावों पर विचार करने से पहले हमारे दृष्टिकोण पर भी विचार करने को कहा. इंडोनेशिया इस पर सहमत हो गया, लेकिन मलेशिया ने ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई. हमें लगा कि मलेशिया का रुख पाकिस्तान के प्रति थोड़ा झुका हुआ है.”

एक और चुनौतीपूर्ण यात्रा कोलंबिया में हुई, जहां राष्ट्र ने शुरू में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के दौरान भारत के हमले में पाकिस्तानियों की मौत पर शोक व्यक्त किया. कांग्रेस सांसद शशि थरूर के प्रतिनिधिमंडल ने कोलंबिया के विदेश मामलों के उप-मंत्री से मुलाकात की और एक विस्तृत समयरेखा प्रस्तुत की. उनकी चर्चाओं के कारण कोलंबिया ने पाकिस्तान का समर्थन करने वाले अपने बयान को वापस ले लिया. यह महत्वपूर्ण था क्योंकि कोलंबिया 1 जनवरी, 2026 से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने वाला है, जिससे उसका रुख भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.

नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए थरूर के प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने कहा, “चूंकि, कोलंबिया आतंकवाद का शिकार रहा है, इसलिए शुरुआती गड़बड़ियों के बाद उन्हें भारत की स्थिति समझ में आ गई. कई देशों में समस्या यह है कि उन्हें भारत के दृष्टिकोण की समझ नहीं है और वह मौजूदा तनावों में भारत और पाकिस्तान को एक समान मानते हैं.”

सऊदी अरब, बहरीन, अल्जीरिया और कुवैत जैसे मुस्लिम बहुल देशों में प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले भाजपा सांसद बैजयंत पांडा से उनकी यात्राओं के दौरान कई तरह के सवाल पूछे गए — संघर्ष विराम की घोषणा में राष्ट्रपति ट्रंप की भूमिका से लेकर भारत की आर्थिक स्थिति और देश में मुसलमानों की स्थिति, खासकर जम्मू-कश्मीर तक.

भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बैजयंत पांडा ने दिप्रिंट से कहा, “चूंकि, ये सभी देश किसी न किसी समय आतंकवाद से पीड़ित रहे हैं — उदाहरण के लिए सऊदी अरब अल-कायदा का शिकार था, जिसने 2003 में रियाद में बम विस्फोट किए थे — इसलिए हमें उन्हें समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ी. वह हमारी चिंताओं को समझ रहे थे. इनमें से अधिकांश देशों ने जिहादी तत्वों से सख्ती से निपटा है. हमने पाकिस्तान को FATF की ग्रे सूची में रखने का तर्क दिया और तथ्य प्रस्तुत किए कि जब पाकिस्तान ग्रे सूची की निगरानी में था, तो आतंकवादी गतिविधि और सीमा पार आतंकवाद कम हो गया था.”

अक्टूबर 2022 में पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से हटा दिया गया, जिसमें वह देश शामिल हैं जिनके पास धन शोधन-रोधी और आतंकवाद रोधी वित्तपोषण व्यवस्था में रणनीतिक कमियां हैं.

हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष के दौरान ट्रंप की मध्यस्थता की भूमिका पर उठ रहे सवालों पर पांडा ने कहा, “हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस तरह के तनाव के दौरान कई देश सुझाव देते हैं या फोन कॉल करते हैं — जैसा कि हमने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान किया था. इसका मतलब यह नहीं है कि हम मध्यस्थता कर रहे थे. भारत-पाकिस्तान का मुद्दा द्विपक्षीय है और हम संघर्ष विराम पर तभी सहमत हुए जब पाकिस्तान के डीजीएमओ ने हमसे संपर्क किया.”

पांडा ने बताया कि एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी और डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के नेता गुलाम नबी आज़ाद, जो उनके नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे, उन्होंने आतंकवाद पर भारत की स्थिति को “बहुत जोरदार तरीके से” व्यक्त किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे जम्मू और कश्मीर में मुसलमानों को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के कारण नुकसान उठाना पड़ा है.

बहरीन में एक बातचीत के दौरान ओवैसी ने कहा, “कुरान ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या, कुरान ने एक निर्दोष मुसलमान की हत्या नहीं कही है, यह कहता है कि एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या पूरी मानवता की हत्या के समान है. इस्लाम ने आतंकवाद की निंदा की है. पाकिस्तान ने लोगों की हत्या को सही ठहराने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया है. इन आतंकवादियों और आईएसआईएस के बीच कोई अंतर नहीं है.”

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान “तकफीरिज्म” का केंद्र बन गया है — साथी मुसलमानों पर धर्मत्याग का आरोप लगाने की प्रथा.

अपने कट्टर हिंदुत्व रुख के लिए जाने जाने वाले भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने प्रतिनिधिमंडल के दौरे के दौरान पूछे जाने पर भारत में मुसलमानों की स्थिति का बचाव किया. उन्होंने यात्रा के दौरान कहा, “पूरी स्पष्टता के साथ, हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि कौन अपने देशों में अल्पसंख्यकों के साथ कैसा व्यवहार कर रहा है. स्वतंत्रता के बाद, भारत की मुस्लिम आबादी लगभग 9-10 प्रतिशत थी. अब यह लगभग 20 प्रतिशत है. दूसरी ओर, पाकिस्तान में हिंदू आबादी 13 प्रतिशत थी और अब केवल 1 प्रतिशत है. इसलिए, यह पाकिस्तान है जो अपने अल्पसंख्यकों के साथ बुरा व्यवहार कर रहा है और आतंक के माध्यम से भारत को भी प्रभावित कर रहा है. हम इस बारे में भी संवाद करने में सक्षम हैं.”

पांडा ने कहा, “निशिकांत दुबे जी ने यात्रा के दौरान अपने घरेलू निर्वाचन क्षेत्र को संबोधित करने के लिए ट्वीट किया हो सकता है, लेकिन आउटरीच मिशन के दौरान, सभी सदस्यों ने भारत के लिए बात की और देश की धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित किया.” यहां तक ​​कि गुलाम नबी आज़ाद, जो यात्रा के दौरान बीमार पड़ गए थे, ने कहा, “जब पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ, तो जम्मू-कश्मीर के मुसलमान पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए सड़कों पर उतर आए.”

राफेल के प्रदर्शन और भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में सवाल

द्रमुक सांसद कनिमोझी के ग्रीस, रूस, स्लोवेनिया, स्पेन और लातविया के प्रतिनिधिमंडल में शामिल समाजवादी पार्टी के सांसद राजीव राय ने दिप्रिंट को बताया, “यात्रा के दौरान एक सुझाव यह था कि संघर्ष विराम जारी रखा जाए और पाकिस्तान के साथ बातचीत की जाए. मैंने बीच में हस्तक्षेप किया और कहा, ‘हम आपके सुझाव को सुनते हैं. भारत में प्रधानमंत्री के साथ लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार है, लेकिन पाकिस्तान में सेना नागरिक सरकार को नियंत्रित करती है, जो कठपुतली की तरह काम करती है. हमें बताएं कि किससे बात करनी है. पाकिस्तान में आतंकवादियों का सबसे बड़ा गिरोह है’.”

उन्होंने कहा, “मैंने यह मुद्दा भी उठाया कि मुनीर से पहले, केवल एक अन्य पाकिस्तानी अधिकारी को सैन्य नुकसान के बावजूद नागरिक सरकार द्वारा फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था.”

स्पेन में प्रतिनिधिमंडल से जम्मू और कश्मीर में मुस्लिम आबादी की स्थिति के बारे में सवाल पूछे गए. राय ने कहा, “हमने उन्हें सफल चुनावों, नागरिक सरकार की उपस्थिति और आतंकवादी हमले के बाद जम्मू और कश्मीर के लोगों द्वारा एकजुटता दिखाने के बारे में जानकारी दी.”

ग्रीस ने राफेल लड़ाकू विमानों के बारे में पूछा और पूछा कि क्या पाकिस्तान ने किसी को मार गिराया है. उन्होंने कहा, “उनकी दिलचस्पी राफेल के प्रदर्शन और तकनीकी विवरणों को समझने में थी. हमने मान लिया कि वह खरीद के लिए प्रतिक्रिया मांग रहे हैं.”

बृज लाल के अनुसार, जापान और कोरिया में प्रतिनिधिमंडल से भारत के ऑपरेशन की सटीकता के बारे में पूछा गया. “हमने बताया कि हमारी तकनीकी प्रगति ने हमें नागरिकों को नुकसान पहुंचाए बिना हमला करने की अनुमति दी. इसने केवल आतंकवादी शिविरों और उनके एयरबेसों को निशाना बनाया, जिसे 22 मिनट में सटीकता के साथ पूरा किया गया. हमने इस बात पर जोर दिया कि भारत एक शांतिप्रिय देश है और आईसी 814 अपहरण का उदाहरण दिया, जिसके पीछे अब्दुल रऊफ अजहर (जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर का छोटा भाई) था. भारत ने एक कड़ा संदेश भेजने के लिए उसके परिवार के 10 सदस्यों को मारकर जवाबी कार्रवाई की.”

भारत की अर्थव्यवस्था जापान को पछाड़कर चौथे स्थान पर पहुंच गई, भारतीय प्रतिनिधिमंडल से देश के आर्थिक प्रदर्शन के बारे में पूछा गया.

बृज लाल ने कहा, “हमने कहा कि 2 साल के भीतर हम जर्मनी की अर्थव्यवस्था को भी पीछे छोड़ देंगे, जो भारत के विकास और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर ध्यान केंद्रित करने को दर्शाता है.”

उन्होंने कहा कि संभावित परमाणु संघर्ष और वृद्धि का सवाल भी उठा.

उन्होंने कहा, “हमने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने की नीति का पालन करता है और दृढ़ता से इस पर कायम है.”

जयशंकर के साथ नतीजे साझा किए गए

संजय झा और कनिमोझी के नेतृत्व में ऑपरेशन सिंदूर पर आउटरीच प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात की और उन्हें अपने दौरे के नतीजों के बारे में जानकारी दी. बैजयंत पांडा के प्रतिनिधिमंडल ने पहले भी मंत्री से मुलाकात की थी और उन्हें अपने नतीजों से अवगत कराया था.

कनिमोझी के प्रतिनिधिमंडल में शामिल आप सांसद अशोक कुमार मित्तल ने कहा, “लौटने के बाद हमने विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर से मुलाकात की. वे जानना चाहते थे कि हमने जिन पांच देशों का दौरा किया, वहां क्या प्रतिक्रिया मिली. हमने उन्हें इसके बारे में बताया. हम जहां भी गए, उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ भारत द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की…विदेश मंत्री ने कहा कि वे हमारे सभी फीडबैक के बारे में प्रधानमंत्री से बात करेंगे और उन्हें मामले की जानकारी देंगे.”

सपा के राजीव राय के अनुसार, प्रतिनिधिमंडल ने जयशंकर से कहा कि “कुछ देशों ने शिकायत की है कि हमारा द्विपक्षीय संसदीय मंच प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रहा है. इसे नियमित रूप से विचारों के आदान-प्रदान और हमारे आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए नियमित किया जाना चाहिए – न कि केवल संकट के समय में.”

शिवसेना नेता श्रीकांत शिंदे के नेतृत्व में यूएई, सिएरा लियोन, लाइबेरिया और कांगो गए प्रतिनिधिमंडल में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया ने दिप्रिंट से कहा, “हमारा मिशन दुनिया के सामने भारत का दृष्टिकोण प्रस्तुत करना था. संघर्ष विराम, हमारी संतुलित प्रतिक्रिया और ट्रंप की भूमिका के बारे में कई सवाल पूछे गए. हमने देशों को याद दिलाया कि कैसे भारत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान भी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से पीड़ित रहा है, जबकि उन्होंने बहुत प्रयास किए थे. वाजपेयी कहते थे कि पाकिस्तान भौगोलिक दृष्टि से हमारा पड़ोसी है और हम इसे बदल नहीं सकते, लेकिन हम बदलाव ला सकते हैं और पाकिस्तान को अपना मित्र बना सकते हैं.”

उन्होंने कहा, “इसलिए, लाहौर घोषणा के दौरान, वे बस से लाहौर गए, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? कारगिल हुआ…बार-बार, हम समझौता करने और शांति का संदेश देने की कोशिश करते हैं, लेकिन पाकिस्तान हमेशा हमें धोखा देता है. पाकिस्तान हमारे साथ पारंपरिक युद्ध में शामिल नहीं होता, बल्कि आतंकवाद में शामिल होता है क्योंकि वह हमें कमजोर करना चाहता है.”

अहलूवालिया 2001 के संसद हमले के बाद यूरोपीय संघ का समर्थन मांगने के लिए पीए संगमा के नेतृत्व वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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