यह एक ऐसा दुर्लभ मामला था जिसमें एक अधिकारी की निजी धार्मिक आस्था और सेना की धार्मिक परंपराओं के बीच टकराव हो गया. धर्म के राजनीतिकरण के मौजूदा वातावरण, और सेना की अधिकारी जमात द्वारा इसे बढ़ावा देने के मद्देनजर अब समय आ गया है कि आत्म-निरीक्षण और सुधार किए जाएं.