सामना में लिखा है, 'जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के मोर्चे पर दिल्ली में अमानवीय लाठीचार्ज हुआ. सैकड़ों विद्यार्थियों के सिर फूट गए, हड्डियां टूट गईं और खून बहा. हजारों गिरफ्तारियां हुईं.'
आखिर ऐसी क्या वजह थी कि सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी 2014 में केन्द्र में राजग के सत्तासीन होने के बाद से विदेश यात्राओं में अपने साथ एसपीजी कमांडो ले जाने से गुरेज़ करने लगे?
जेएनयू के छात्र जहां फीस वृद्धि के खिलाफ सड़कों पर उतरकर सरकार का दम फुला देते हैं, वहीं बीएचयू के ज्यादातर छात्र अपनी धार्मिक-साम्प्रदायिक ग्रंथियों तक से आजाद नहीं.
क्या पाकिस्तान खालिस्तान के मुद्दे को फिर से सुलगाना चाहता है या वह एक भू-राजनीतिक औजार के रूप में करतारपुर गलियारे का उपयोग करना चाहता है? दोनों का ही उत्तर ‘हां’ है.
दोनों नेता बड़बोले दावे करने में माहिर हैं, दोनों जो पैकेज पेश कर रहे हैं उनमें कोई फर्क नहीं है, दोनों की कार्यशैली व्यक्तिपूजा को बढ़ावा देने वाली है. लेकिन दोनों में अहम एक अंतर है. ‘आप’ में वह तीखी सांप्रदायिकता नहीं है जो भाजपा में है.
पश्चिम बंगाल में ‘घुसपैठिये’ या ‘तुष्टीकरण’ जैसे शब्द बहुत कम सुनाई पड़ते हैं, न ही ‘मंगलसूत्र’ या अमित शाह द्वारा ममता बनर्जी के ‘मां, माटी, मानुष’ नारे को ‘मुल्ला, मदरसा, माफिया’ में बदलने जैसे वाक्या सुनाई देते हैं.