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Friday, 3 May, 2024
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मोदी का नया नागरिकता कानून विभाजन के घावों को कुरेदेगा

मुहम्मद अली जिन्ना को नरेंद्र मोदी पर गर्व होगा.

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जॉर्ज ऑरवेल के अनुसार राजनीतिक भाषा को, झूठ को सत्य और हत्या को सम्मानजनक बनाने के लिए और शुद्ध हवा को ठोसता का रूप देने के लिए डिज़ाइन किया गया है. यह इस बात का एक अच्छा विवरण होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार विनाशकारी नीतियों को कैसे बेचती है.

यह निश्चित रूप से नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 का मामला है, कुछ हफ्तों में ही इसके कानून बनने की संभावना है. प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार, ‘मां भारती के कई बच्चे हैं जिन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उत्पीड़न का सामना किया है. हम उन लोगों के साथ खड़े होंगे जो एक समय में भारत का हिस्सा थे, लेकिन हमसे अलग हो गए.’

दावा यह है कि नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) किसी तरह विभाजन के अधूरे कारोबार को समाप्त कर देगा. इसके विपरीत, यह केवल विभाजन के घावों को कुरेदेगा.

मां भारती के नामंजूर बच्चे

विभाजन आवश्यक हो गया, क्योंकि स्वतंत्रता के बाद भारत को कैसा होना चाहिए, इसके दो अलग-अलग नज़रिये थे. एक नजरिया दो-राष्ट्र के सिद्धांत पर आधारित था, इसमें यह विचार था कि ‘हिंदू और मुस्लिम’ दो अलग-अलग ‘राष्ट्र’ हैं. (आश्चर्य होता है कि दो-राष्ट्र सिद्धांत ने ईसाई, पारसी, सिख, बौद्ध, जैन और बहाई को अलग-अलग ‘राष्ट्र’ के रूप में कभी नहीं देखा. तार्किक रूप से आठ-राष्ट्र सिद्धांत होना चाहिए था.)

दूसरा नजरिया यह था कि राष्ट्रीयता धार्मिक निर्माण नहीं है. यह भौगोलिक है. पेशावर से पुडुचेरी तक साझा भूगोल और इतिहास से हम एक थे. हम अपनी विविधता में एकजुट थे.

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विचारों में मतभिन्नता थी, जिसके कारण विभाजन हुआ. पाकिस्तान ने खुद को मुस्लिम राष्ट्र के रूप में देखा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान भारतीय सीमा से लगभग 1,700 किलोमीटर दूर है. भारत ने खुद को एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में देखा, जो सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है और भारत में पाकिस्तान की तरह राज्य धर्म नहीं था. यही कारण है कि महात्मा गांधी हिंदू-मुस्लिम दंगों को रोकने में व्यस्त थे. राष्ट्रपिता के रूप में भारत सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध थे कि मुसलमान समान नागरिक के रूप में भारत में शांति से रह सकें.

दूसरे शब्दों में इस भूमि के सभी लोग ‘मां भारती’ के बच्चे थे, चाहे वे किसी भी धर्म का पालन करते हों, लेकिन नरेंद्र मोदी अब ‘मां भारती’ के कुछ बच्चों को उनसे अलग करना चाहते हैं जैसे, मुसलमान.

यदि आप वर्तमान में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं, तो आप जल्द ही अवैध रूप से भारत में आ सकते हैं या अपने वीजा को आगे बढ़ाकर छह साल में भारतीय नागरिक बन सकते हैं. मुसलमानों को इस विशेषाधिकार से बाहर करने के लिए सिर्फ इसलिए कि वे इन देशों में ‘बहुसंख्यक’ समुदाय हैं, यह कहना है कि मुसलमान ‘मां भारती’ की संतान नहीं हैं.

उन अहमदियों के बारे में क्या है, जिन्हें पाकिस्तान एक अलग संप्रदाय का हिस्सा मानता है और जो ईसाई और हिंदुओं की तुलना में कहीं अधिक सताए जाते हैं? यह देखते हुए कि अहमदिया संप्रदाय का संस्थापक स्थान भारतीय पंजाब में है, अहमदी नागरिकता संशोधन विधेयक में शामिल हो सकते हैं.

जिन्ना को गौरवान्वित करना

नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के रक्षकों का कहना है कि यह भारत को हिंदू राज्य नहीं बनाता है, क्योंकि यह सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों का भी स्वागत करता है. फिर भी, यह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहुसंख्यकों के धर्म को शामिल नहीं करता है. पीएम मोदी को बताना चाहिए कि इन देशों में मुसलमान ‘मां भारती’ की संतान क्यों नहीं हैं.


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धर्म-आधारित नागरिकता का नया विचार इन तीन देशों के लोगों के बड़े पैमाने पर प्रवास को बढ़ावा देगा, जो हमें विभाजन के घावों की याद दिलाता है. चूंकि, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक हिंदू है, इसलिए नागरिकता संशोधन विधेयक के अधिकांश लाभार्थी हिंदू होंगे. इसके साथ ही तथाकथित पैन-इंडिया नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स उन मुसलमानों को लक्षित करेंगे, जो अपने परदादाओं को भारतीय साबित करने में असमर्थ हैं. उनकी नागरिकता छीन ली जाएगी और उन्हें हिरासत में रखा जाएगा. यह द्वि-राष्ट्र सिद्धांत से भी बदतर है. यह भारत में सिर्फ एक धार्मिक अल्पसंख्यक (मुसलमानों) के उत्पीड़न के लिए एक व्यवस्थित कानूनी डिजाइन है.

हिंदू आए, मुसलमान जाए, यही नागरिकता संशोधन विधेयक और पैन-इंडिया एनआरसी का संदेश है.

सभी ओरवेलियन प्रवंचना के बाद नागरिकता संशोधन विधेयक और पैन-इंडिया एनआरसी मूल रूप से द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार करने का एक तरीका है. महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती ऐसा करने का सही समय है. मुहम्मद अली जिन्ना को नरेंद्र मोदी पर गर्व होगा. यह ऐसा है जैसे विभाजन अभी भी हो रहा हो.

कुछ और ओरवेलियन प्रवंचना

संयोग से प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक का पाठ विभाजन, उत्पीड़न और मां भारती को छोड़ने के बारे में कुछ नहीं कहता है.

यदि यह विचार है कि किसी को नागरिकता दी जानी चाहिए, क्योंकि वे धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं, तो उन्हें यह साबित करने के लिए कहा जाना चाहिए कि वे उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. इस तरह, अक्सर शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त की मदद से, पश्चिमी देश शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान करते हैं.

उदाहरण के लिए, नागरिकता संशोधन विधेयक कानून बनने के बाद पाकिस्तान में भंडारा परिवार, जो कि पारसी है, भारत में आ सकता है और भारतीय नागरिक बन सकता है. क्या वे पाकिस्तान में ‘सताए गए’ हैं? हरगिज़ नहीं. वे पाकिस्तानी हाई सोसाइटी का हिस्सा हैं और मुर्री ब्रूअरी के मालिक हैं. यदि वे अपने परिवार के सदस्यों में से एक को भारतीय नागरिक बना सकते हैं और भारत में मुर्री ब्रूअरी का संचालन शुरू कर सकते हैं, तो क्या वे इसे पसंद नहीं करेंगे?

इसलिए नागरिकता संशोधन विधेयक का विचार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में सताए गए अल्पसंख्यकों के लिए मीडिया के जरिए हमें बेवकूफ बनाना है. कानून का पाठ ऐसी कोई बात नहीं कहता है, क्योंकि असली इरादा शायद तीनों देशों में सताए गए अल्पसंख्यकों की मदद करना नहीं है. असली इरादा लाखों हिंदुओं को आयात करने का है ताकि भाजपा उनके साथ वोट बैंक की राजनीति कर सके.

बामियान से बर्मा तक

दूसरी तरफ, क्या कोई यह बता सकता है कि अफगानिस्तान का विभाजन से क्या संबंध है? यह 1947 में भारत का हिस्सा नहीं था. यह कभी भी ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं था. हमें हमेशा बताया गया है कि विभाजन ने भारत को दो देशों में विभाजित किया. भारत और पाकिस्तान और पाकिस्तान का एक हिस्सा बाद में तीसरा देश बन गया, बांग्लादेश. इसलिए, यदि नागरिकता संशोधन विधेयक विभाजन के बारे में है, तो अफगानिस्तान यहां क्या कर रहा है?

अगर अफगानिस्तान योग्य हो सकता है, तो म्यांमार क्यों नहीं? म्यांमार (तब बर्मा) 1937 तक ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का एक हिस्सा था. यह म्यांमार में उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने के बारे में कैसे? जातीय और धार्मिक उत्पीड़न के कारण 7 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर हो गए हैं. अगर हेरात का एक अफगान-ईसाई ‘मां भारती’ की संतान है, तो अरकान का रोहिंग्या मुसलमान ‘मां भारती’ की संतान क्यों नहीं है?

अगर आरएसएस के अखण्ड भारत के विचार के कारण अफगानिस्तान को शामिल किया गया है, तो श्रीलंका को क्यों नहीं? सिर्फ इसलिए कि श्रीलंका से तमिल बोलने वाले हिंदू वास्तव में तमिलनाडु में भाजपा को चुनाव जीतने में मदद नहीं करेंगे?


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नागरिकता संशोधन विधेयक के साथ अन्य मुद्दे हैं. क्या भारत को वास्तव में अधिक लोगों की आवश्यकता है, यह देखते हुए कि यह पहले से ही दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है? और सुरक्षा के मुद्दों के बारे में क्या? नागरिकता संशोधन विधेयक एजेंसियों को भारत में जासूस भेजने और उन्हें केवल छह वर्षों में भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक बहुत ही सुविधाजनक मार्ग प्रदान करता है.

इसका अर्थ यह नहीं है कि भारत को शरणार्थियों को नागरिकता नहीं देनी चाहिए. हमें एक व्यापक शरणार्थी कानून की आवश्यकता है, जो यह निर्धारित करता है कि भारत कितने शरणार्थियों को हर साल नागरिकों के रूप में अवशोषित कर सकता है और ऐसी नागरिकता का आधार धर्म या राष्ट्रीयता नहीं होना चाहिए. यह भारतीय संविधान की भावना को ध्यान में रखते हुए मानवता के आधार पर होना चाहिए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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