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Friday, 3 May, 2024
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आर्मी अधिकारियों को नहीं, टीवी चैनलों को कोड ऑफ कंडक्ट की ज़्यादा ज़रूरत है

हाल ही में एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम में इंडियन आर्मी से रिटायर्ड मेजर जनरल एसपी सिन्हा ने भड़काऊ बातें बोलते हुए सारी हदें पार कर दीं.

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news on social cultureहाल ही में एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम में ‘कश्मीरी पंडितों की चीखें, आज सुनेगा हिंदुस्तान’ में इंडियन आर्मी से रिटायर्ड मेजर जनरल एसपी सिन्हा ने भड़काऊ बातें बोलते हुए सारी हदें पार कर दीं. उन्होंने चीखते हुए कहा- हमें हत्या के बदले हत्या, बलात्कार के बदले बलात्कार चाहिए. वो सीधा कह रहे थे कि कश्मीरी पंडितों के साथ जो अत्याचार हुआ उसका बदला अब हत्या और बलात्कार करके लेना चाहिए. हालांकि आज उन्होंने अपनी बात के लिए माफी मांगते हुए कहा कि वो दिमागी तौर पर परेशान थे. चैनल वालों और एडीजीपीआई को लिखी चिट्ठी में उन्होंने इस बात को लेकर पछतावा जताया है.

लेकिन एक रिटायर्ड आर्मी अफसर के मुंह से ये बातें सुनना दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, डरावना भी है. तुरंत मन में प्रश्न उठता है कि आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल एक्ट के तहत ऐसी मानसिकता वाले ऑफिसर क्या करते होंगे. एक औरत के बलात्कार का बदला दूसरी औरत के बलात्कार से लेने का खयाल कैसे आया? न्याय और कानून की जगह एक और अपराध? क्या ये बातें सुनकर ऐसा नहीं लगता कि सारे मर्दों ने मिलकर औरतों के खिलाफ जंग छेड़ दी है?

इसके बाद सुगबुगाहट होने लगी कि रिटायर्ड आर्मी अफसरों के लिए सरकार की तरफ से कोड ऑफ कंडक्ट होना चाहिए. ऐसी बातें तकरीबन एक सप्ताह पहले भी सुनाई दी थीं. तुरंत रिटायर हुए लेफ्टिनेंट जनरल अश्विनी कुमार ने एक टीवी चैनल को बताया कि सरकार रिटायर्ड अधिकारियों के लिए कोड ऑफ एथिक्स लाने की बातें कर रही है.

सवाल ये है कि इसके लिए कोड ऑफ कंडक्ट की क्या ज़रूरत है?

सेना से रिटायर्ड तमाम अधिकारी सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं और जनतंत्र के नाते ये ज़रूरी भी है. कोड ऑफ कंडक्ट का हवाला देकर इन व्यक्तियों का मुंह सिल दिया जाएगा. सेना से रिटायर्ड अधिकारी सेना के ऑफिशियल प्रवक्ता नहीं होते हैं. अगर वे नफरती भाषा बोलें या आलोचना करें तो इसके लिए सेना ज़िम्मेदार नहीं है. ध्यान रहे कि रिटायर्ड जनरल वीके सिंह ने भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार की आलोचना से ही शुरुआत कर अपना राजनीतिक करिअर बनाया था.

अप्रैल 2019 में पाकिस्तान की सरकार ने ये फैसला लिया कि आईएसपीआर द्वारा प्रमाणित अधिकारी ही टीवी चैनलों पर डिफेंस एक्सपर्ट की तरह बोल सकते हैं. दो अधिकारियों को बोलने से रोका भी गया था. सरकार टीवी चैनलों पर आने वाले लोगों के लिए नियम नहीं बना सकती. ये तो टीवी चैनल पर सरकारी नियंत्रण जैसा हो गया.

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हमें पाकिस्तानी मॉडल को फॉलो नहीं करना है. अगर टीवी चैनल्स पर कोई आर्मी अधिकारी फालतू बोलता है तो ये टीवी चैनल की ज़िम्मेदारी है कि उसका कहा प्रसारित न करे और दोबारा वैसे लोगों को आने न दें. इसके लिए किसी कोड ऑफ कंडक्ट की आवश्यकता नहीं है.


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जनतंत्र के नाते हमें किसी रिटायर्ड अधिकारी की फ्रीडम ऑफ स्पीच भी नहीं छीननी है. बस नफरत की भाषा को वैधानिकता नहीं दी जानी चाहिए. ऐसे लोगों को वैधानिकता तब मिलती है जब इनसे अखबारों में लेख लिखवाये जाते हैं, टीवी चैनलों पर इनकी बातों को प्राथमिकता दी जाती है, ट्विटर पर इनके अकाउंट वेरिफाई करा दिये जाते हैं. ये प्रामाणिकता इन्हें नहीं दी जानी चाहिए. बाकी अगर कोई व्यक्ति अपने निजी जीवन में नफरती भाषा बोलना चाहता है तो बोले. हमें इस बात पर यकीन रखना होगा कि आज नहीं तो कल ये व्यक्ति अपने बोले हुए का पश्चाताप करेगा. जैसा कि एसपी सिन्हा ने किया भी. करोड़ों लोगों का जीवन एक टीवी डिबेट नहीं है. नफरती भाषा बोलने वाले लोगों का परिवार भी टीवी डिबेट की तरह नहीं है. जीवन बहुत अलग है और बोले हुए शब्द हमेशा पीछा करते हैं. हमें ये बात हमेशा हॉन्ट करेगी कि हमारी सेना के एक अधिकारी ने टीवी पर इतनी घिनौनी बात कही थी.

हम्मूराबी के वक्त आंख के बदले आंख और कान के बदले कान का कानून बना था. तब से लेकर अब तक मानव सभ्यता ने बहुत प्रगति की है. पर नफरती लोगों को वो कानून ज़्यादा भाता है. ये भाषा फासिज़्म के समर्थक बोलते हैं. इन्हें कानून और संविधान में यकीन नहीं रहता. जेसन स्टैनले ने अपनी किताब ‘हाऊ फासिज़्म वर्क्स’ में लिखा है कि फासिज़्म रोज़ अपने लिए नये दुश्मन तलाशता है. अगर उपरोक्त आर्मी अधिकारी फासिस्ट माइंडसेट का प्रशासन चाहते हैं तो वही प्रशासन किसी दिन इनको अपना दुश्मन बना लेगा और इनकी कही इन्हीं बातों के लिए इन पर कार्रवाई कर देगा.

चैनल ‘संवेदनहीन बयानों’ पर खुद ही लगाएं रोक

वर्तमान समय में अगर कोई अघोषित कोड ऑफ कंडक्ट चाहिए भी तो वो टीवी चैनलों और एंकर्स के लिए चाहिए. हेट स्पीच के लिए तो पहले से ही कानून है लेकिन इससे पहले है अपनी नैतिकता. अगर एसपी सिन्हा वाले वीडियो को देखें तो एंकर बार बार कहती हैं कि आप ऐसा नहीं बोल सकते, पर साथ ही विरोध कर रहे पैनलिस्ट से कहती हैं कि डोंट ओवररिएक्ट. यहां पर खुद का कॉमन सेंस और नैतिकता काम आएगी.

जैसा कि चैनल चाहें तो ऐसे पैनेलिस्ट के संवेदनहीन बयानों का टेलिकास्ट रोक दें. एंकर इस तरह के बयान देने वाले पैनेलिस्ट को उत्साहवर्धन करना बंद कर दें. शो पर ऐसी भड़काऊ बातें करने वालों को अपने शो से तब तक के लिए बैन कर दें जब तक कि वो सभ्य तरीके से अपनी बात नहीं रखना सीखते हैं. जान-बूझकर दो पक्षों की तड़कती भड़कती बहस दिखाने के लिए अति उत्साही मौलाना या साधु बैठाने से बचें.

आर्मी अधिकारियों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट नहीं चाहिए, अगर चाहिए भी तो वो टीवी चैनलों के लिए.

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