राममंदिर आंदोलन के नेता के तौर पर अशोक सिंघल और आडवाणी का ही नाम दर्ज है. उनके अलावा मुख्य न्यायाधीश गोगोई और पांच जजों की बेंच को भी इतिहास याद रखेगा. लेकिन इन सब के बीच नरेंद्र मोदी कहां हैं?
एनजीटी ने सरकारों को या संस्था को डांटा यह बात सभी जानते हैं लेकिन अंतिम रूप से आदेश क्या दिया इस पर बात नहीं हो पाती, एनजीटी ने जुर्माना किया यह सभी जानते हैं लेकिन कितना जुर्माना वसूला गया इस पर बात नहीं हो पाती.
मौलाना यह तक कहने से नहीं हिचके थे कि उनके लिए राष्ट्र की एकता स्वतंत्रता से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है और वे उसका विभाजन टालने के लिए कुछ और दिनों की गुलामी भी बर्दाश्त कर सकते हैं.
भारत की अर्थव्यवस्था अपने ठहराव की जकड़ को तोड़कर आगे नहीं बढ़ती तो मोदी का कद छोटा हो सकता है. इस गिरावट को थामने के लिए उन्हें बड़े उपाय सोचने होंगे या फिर वे भावनाएं भड़काने के जोखिम की ओर मुड़ सकते हैं.
देश अब अपने अंदर ज्यादा देख रहा है. तो सिस्टम उदार और ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी कैसे होगी? प्रतिस्पर्द्धी जो प्रतिस्पर्द्धी नहीं उन्हें बाज़ार से बाहर कर रहे हैं. इस तरह तो अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन की नहीं होने वाली!
भारत कोई चीनीमिट्टी का नहीं बना है. करतारपुर साहिब का रास्ता खुल गया है और यह हम सबके लिए खुशी का मौका है. खालिस्तान की खातिर उन्माद भड़काने वाले टीवी को बंद करो.
इमरान इतिहास को जिस नजरिए से देखते हैं उसके मुताबिक, खून के प्यासे उदारवादी फासिस्टों ने गांवों पर बमबारी, ड्रोन से हमले और अमेरिकी नीतियों का समर्थन किया, जिनमें ‘दहशतगर्दी के खिलाफ जंग’ भी शामिल है.
तिरुवनंतपुरम में राजीव चंद्रशेखर का मुकाबला शशि थरूर से है. वे खुद को एक ऐसे राज्य के लिए प्रचारित कर रहे हैं जिसने परंपरागत रूप से भाजपा के प्रति घृणा दिखाई है.