विधि आयोग ने बयानबाजी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिये कानून के प्रावधानों को पूरी तरह पुख्ता नहीं पाया था और भारतीय दंड संहिता की धारा 153 और धारा 505 में नयी उपधारा जोड़ने और इन अपराधों को संज्ञेय तथा गैर जमानती बनाने का सुझाव दिया था.
सांप्रदायिक हिंसा अपने आप नहीं होती. ये गुस्से का मासूम इजहार नहीं है. इसके पीछे हमेशा योजना होती है, साजिश होती है. इसलिए ये जानना जरूरी है कि दिल्ली में जो हुआ, वो क्यों हुआ?
सरदार पटेल 1947 की हिंसा को काबू करने में इसलिए सफल रहे क्योंकि जब कानून और व्यवस्था बहाल करने की बात आई तो वे पूरी तरह निष्पक्ष रहे. उन्होंने दंगाइयों के धर्म की परवाह किए बगैर उन पर सख्ती की.
भारत की शिक्षा व्यवस्था के हालात को देखकर नानाजी बहुत चिंतित रहते थे. उनका मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें शिक्षा के साथ संस्कारों की भी बहुलता हो.
प्रधानमंत्री मोदी को ये बात एक पल भी गवारा नहीं हो सकती कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के दौरे पर हों और उसी वक्त दिल्ली की सड़कों पर हिंसा का तांडव हो. जहां तक मोदी के विरोधियों का सवाल है, वे इस हालत मे थे ही नहीं कि हिंसा की कोई साजिश रचें और उसे अमली जामा पहनायें. लेकिन, हिंसा हुई तो फिर उसे सांयोगिक नहीं माना जा सकता.
संघ के अयोध्या निवासी स्वयंसेवक कन्हैया मौर्य यह याद करते हुए अपनी निराशा छिपा नहीं पाते कि तब कहा गया था कि राम तो सबके हैं. किसी एक खास वर्ग, जाति या समुदाय के नहीं.
केंद्र सरकार ओबीसी रिजर्वेशन से जुड़े क्रीमी लेयर के प्रावधानों में बदलाव करने जा रही है. इनके लागू होने से बड़ी संख्या में ओबीसी आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे.
अपने बांके को पता लग गया है की असली बांकपन इस देश में तब तक नहीं दिखता जब तक बांके का एक गोरा दोस्त ना हो. वह दोस्त अगर गोरे देश का गोरा राष्ट्रपति हो तो सोने पे सुहागा.
प्रयागराज, 26 अप्रैल (भाषा) इलाहाबाद विश्वविद्यालय का प्रथम पुरा (पुराने) छात्र सम्मेलन “फैमिलियर फेसेस फीएस्टा” का शनिवार को उद्घाटन होगा जिसमें देश-विदेश में विभिन्न...