वैसे, एक महत्वपूर्ण सवाल जरूर उभरता है— लोकतंत्र आर्थिक वृद्धि के लिए अच्छा है या बुरा? कितना लोकतंत्र अच्छा है और कब यह जरूरत से ज्यादा हो जाता है? क्या सीमित लोकतंत्र जैसी भी कोई चीज होती है?
अगर गोरखनाथ मठ से जुड़ी संस्थाओं को भारतीय सेना ने अपने लिए निषिद्ध संस्थाओं की सूची में नहीं शामिल किया है, तो उसे दारुल उलूम देवबंद से जुड़ी संस्थाओं को भी इस सूची में शामिल नहीं करना चाहिए.
किसान पहले से कहते आये हैं कि हम बस इन तीन कृषि-कानूनों की वापसी चाहते हैं और वे अपनी इस बात पर अडिग हैं लेकिन दोष मढ़ा जा रहा है कि किसान बार-बार अपनी बात बदल रहे हैं.
इस नामंजूरी की जद में पिछले साल सीईसी यानी केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशें हैं जिसने तमाम सरकारी दवाबों के बाद भी इस परियोजना पर गंभीर प्रश्न खड़े किए.
अब किसानों को पहले की तरह शब्दजाल में फंसाकर या सब्जबाग दिखाकर अपना काम नहीं बनाया जा सकता. क्योंकि वे और उनके नेता न सिर्फ लोकतांत्रिक चेतना से सम्पन्न हो चुके हैं, बल्कि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और उनकी राह में आने वाले कानूनों की पूरी जानकारी से लैस भी हैं.
मोदी सरकार के कृषि सुधारों में वे सारी विशेषताएं और भावनाएं निहित हैं, जो मध्यवर्गीय आकांक्षाओं पर आधारित मोदी मार्का राजनीति से जुड़ी हैं लेकिन ऐसा लगता है कि वे जनता का मूड भांपने में चूक गए हैं.
अमेरिका को पुनर्विचार करने की ज़रूरत है. चीनी पैसे पर मौज करती पाकिस्तानी सेना हर तरह से बुरी खबर है, चाहे मैंडरिन में कही जाए या पंजाबी या अंग्रेजी में.
तेजस एक बेहतरीन, कम कीमत वाला और ज़्यादातर देश में बना हुआ लड़ाकू विमान है, जिसका सुरक्षा रिकॉर्ड भी बहुत अच्छा रहा है. पिछले 24 साल में इसके सिर्फ दो हादसे हुए हैं, लेकिन ताज़ा हादसे के बाद इसका आत्म-विश्लेषण ज़रूरी हो जाता है.