भले ही ट्रंप को इस क्षेत्र के इतिहास की जानकारी न हो, लेकिन उनकी टिप्पणी कोई हंसी-मज़ाक वाली बात नहीं है. वे संक्षेप में बताते हैं कि पश्चिमी देश भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के तनाव को किस तरह देखते हैं.
पाकिस्तान में और भारत में भी सबको पता था कि सवाल यह नहीं था कि हमले किए जाएंगे या नहीं बल्कि यह था कि वह कब किए जाएंगे. मोदी सरकार ने इन 14 दिनों का इस्तेमाल यह जताने के लिए किया कि उसे कोई हड़बड़ी नहीं है.
तीसरी नई बात यह है कि 2019 में हुए बालाकोट हमले से भी ज्यादा घातक इस बार का हमला था. बालाकोट में बम गिरने के बाद भी मिलकत या जान हानि के नुकसान के ठोस सबूत नहीं मिले थे, लेकिन इस बार पाकिस्तान ने खुद भारत के आक्रमण से हुई बर्बादी का ब्यौरा दिया.
स्पष्ट कारणों से, अगर भारत को जानबूझकर पाकिस्तान में लाखों लोगों पर सूखा डालने वाला माना जाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना ज़रा मुश्किल होगा.
पाकिस्तान को दिए जाने वाले जवाब का पैमाना हमेशा राजनीतिक फैसले से तय होता है. सेना प्रधानमंत्री द्वारा तय किए गए राजनीतिक लक्ष्य को किस तरह हासिल करेगी, इसके बारे में अटकलें ही लगाई जा सकती हैं.
मोदी सरकार पिछड़ी जाति के वोट पर अपनी पकड़ को खतरे में नहीं डालना चाहती, खासकर तब जब कांग्रेस और मंडल युग की सपा और राजद जैसी पार्टियां उसी क्षेत्र पर नज़र गड़ाए हुए हैं.
यह पहला मौका है जब बिना राष्ट्रपति या राज्यपाल की स्वीकृति के विधेयक कानून बन गए हैं. यह न्यायपालिका द्वारा अपनी संवैधानिक शक्तियों और मर्यादा का अतिक्रमण है.