नीली क्रांति तभी सफल होगी जब राज्य और केंद्र सरकारें उन मछुआरों के बारे में सोचेंगी जो महानगरों में रिक्शा चला रहे हैं या सब्जी बेच रहे हैं. ये वे लोग है जिनके पास नदी के व्यवहार को समझने की समझ है. नदी का व्यवहार तेजी से बदल रहा है और उसे समझने वाले लोग खत्म होते जा रहे हैं.
लालू हों या मुलायम या फिर बात करें बाबरी विध्वंस और 2 जी स्पैक्ट्रम की राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील मामलों में सीबीआई आरोपियों को सजा दिलाने में क्यों नहीं कामयाब होती है?
प्रभावी श्रम कानूनों की संख्या घटाने से मामला कुछ सरल हुआ है मगर अपेक्षित परिणाम पाने के लिए वही काफी नहीं है, असली इम्तहान तो रोजगार में वृद्धि के मामले में होगा.
उत्तर प्रदेश की बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था पर जब भी बात होती है, तो उसे जिलों में तैनात डीएम और एसपी की जाति को देखकर समझने की कोशिश की जाती है. 40 से ज़्यादा जिलों के डीएम/एसपी मुख्यमंत्री के सजातीय हैं.
तालिबान ने संकेत दिया है कि उनकी सत्ता में भागीदारी या वापसी के बाद काबुल की जमीन से भारत विरोधी आतंकी गतिविधि की इजाजत नहीं दी जाएगी. इस तथ्य को देखते हुए भारत को अपनी अफगान नीति को द्विपक्षीय बनाने की जरूरत है.
2016 आरबीआई एक्ट के तहत, सरकार को अगले वर्ष इन्फ्लेशन टारगेट की समीक्षा करनी है, इसके फ्रेमवर्क की नहीं. फिर भी, इस सिस्टम को ख़त्म करने की मांग उठ रही है.
बहरहाल, समझने की नीयत हो तो यह समझना भी जरूरी है कि महात्मा गांधी व लालबहादुर शास्त्री में इतनी ही समानता नहीं है कि अलग-अलग शताब्दियों, जगहों व परिस्थितियों में दोनों एक ही तिथि 2 अक्टूबर को पैदा हुए. उनके नैतिक आग्रह भी लगभग एक जैसे थे.
आंबेडकर के करीबी रहे दलित नेता बाबू हरदास लक्ष्मणराव नागरले द्वारा बनाए गए ‘जय भीम’ नारे ने कई दलित दलों का उत्कर्ष और पतन देखा और अब इसे गैर-दलित सांसद उस लोकसभा में उठा रहे हैं जिसमें बसपा का कोई सदस्य नहीं है.