उत्तर-पूर्व के किसी छोटे राज्य में आप तीन काम करने से परहेज ही करेंगे— स्थानीय नेताओं को कमजोर बताने से, ‘बांटो और राज करो’ की नीति से, और जातीय पहचानों को होमोजिनाइजेशन (एक जैसा बनाने या एक-दूसरे में मिलाने) से.
इस अनुकूल मुकाम तक पहुंचने के लिए भारत ने कड़ी मेहनत की है लेकिन अपने सरोकारों को मजबूती देने का सबसे बुद्धिमानी भरा उपाय जम्मू-कश्मीर को उसका राज्य का दर्जा लौटाना ही है.
हममें से अधिकतर लोगों के लिए मणिपुर का संकट नज़र से दूर, ख़यालों से बाहर वाला मामला है. इतने छोटे और इतनी दूर के इस राज्य की खबरों पर हम बड़ी जम्हाई लेने लगते हैं मगर मैं आपको जगाना चाहता हूं.
पाकिस्तान ज़्यादातर पैमाने के लिहाज़ से सिफर पर है, चीन सुस्त नहीं पड़ रहा है और भारत की गाथा अमीर बनने से पहले ही काफी शक्तिशाली बनने में कामयाबी की उल्लेखनीय कहानी है.
सत्ताधारी पार्टी को हराने की विपक्षी महत्वाकांक्षा बिलकुल जायज है. लेकिन इसके लिए उन्हें चाहिए— एक नेता, एक विचारसूत्र, और एक विचारधारा. अगर वे ये तीन चीजें नहीं जुटा पाते तो एक यही रास्ता बचता है कि वे भाजपा की सीटें कम करने के लिए राज्य स्तरीय, झगड़ा मुक्त गठजोड़ बनाएं
‘क्रोनिज़्म’ निंदनीय है, और यह अच्छी बात है कि इस पर जोरदार बहस जारी है. लेकिन अविश्वसनीय रूप से ताकतवर, अमीर, सफल कंपनियों के साथ-साथ सरकारी नीति की सबसे बड़ी विफलता भारत की ब्रांडलेस ग्रोथ है.
मोदी सरकार एक ओर पश्चिम विरोधी और रूस समर्थक जनमत के निर्माण को प्रोत्साहित करती रही है, तो दूसरी ओर अपनी रणनीति इसके बिलकुल उलटी दिशा में निर्धारित करती रही है. ऐसे विरोधाभास चल नहीं सकते.