कांग्रेस ने अगर गलती की थी, तो भाजपा तो वहां असली बदलाव ला सकती थी लेकिन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने हिंसा से पहले और उस दौरान जो बयान दिए उनसे भाजपा की वही विभाजनकारी नीति उभरी.
क्या विचारधारा अब बेमानी हो गई? जी नहीं, पिछले दशकों में यह जितनी बड़ी ताकत थी, आज उससे कहीं ज्यादा मजबूत ताकत बन गई है. सिवाए इसके कि यह केवल बीजेपी के मामले में कारगर दिख रही है.
इंदिरा गांधी के बाद सबसे ताकतवर मानी जा रही मोदी सरकार जबकि सत्ता में है, मणिपुर अराजकता की गिरफ्त में फंसा है और मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की नौटंकी बताती है कि सर्वशक्तिशाली भाजपा हाईकमान का भी हुक्म वहां नहीं चल रहा है.
भारत में मुसलमानों के प्रति बरताव के मामले में मोदी पर अंगुली उठाकर ओबामा ने इस बहस में हस्तक्षेप किया. लेकिन तानाशाहों से हेलमेल रखते रहे अमेरिका का कोई राष्ट्रपति दूसरों को किस मुंह से उपदेश दे सकते हैं?
राज्य में बीरेन सरकार के लगातार कायम रहने से दोनों ही पक्षों की भावनाएं भड़की हुई हैं. कुकी इसे बहुसंख्यकवादी एजेंडा बढ़ाने वाली पक्षपाती सरकार के रूप में देखते हैं, जबकि मैतेई इसे उनकी रक्षा करने में अक्षम मानते हैं.
भारत का कारवां ऐसे लाखों अति प्रतिभाशाली लोगों द्वारा खींचे जा रहे विशालकाय रथ की तरह गति पकड़ते हुए आगे बढ़ रहा है, जिन्हें तैयार करना हमारे पुराने श्रेष्ठ संस्थानों के बस में नहीं हो सकता था.
उत्तर-पूर्व के किसी छोटे राज्य में आप तीन काम करने से परहेज ही करेंगे— स्थानीय नेताओं को कमजोर बताने से, ‘बांटो और राज करो’ की नीति से, और जातीय पहचानों को होमोजिनाइजेशन (एक जैसा बनाने या एक-दूसरे में मिलाने) से.
इस नई दुनिया में ‘पॉपुलिज़्म’ वाम, दक्षिण, मध्य, सभी मार्गों को ध्वस्त कर रहा है. बेशक हर एक देश, मतदाता समूह, और समाज के लिए यह अलग-अलग रूप में उभर रहा है, इसका आकर्षण और इसकी सफलता इसके प्रयोग में निहित है. यह आपके दिल या दिमाग पर ज्यादा बोझ नहीं डालता.