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Friday, 20 December, 2024
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जीवनदायिनी नदियों से लेकर पूरा विंध्य क्षेत्र इस बात का सबूत है कि कैसी राजनीति घातक है और कौन सी असरदार

उत्तर प्रदेश और बिहार में कोविड त्रासदी की मूल वजह राजनीति व अर्थनीति में छिपी है. राजनीतिक सत्ता, और आर्थिक व सामाजिक संकेतकों के मामलों में जो क्षेत्रीय असंतुलन है वह गंभीर संकट का कारण है.

असलियत को कबूल नहीं कर रही मोदी सरकार और भारतीय राज्यसत्ता फिर से लड़खड़ा रही है

पिछले सात वर्षों में मोदी सरकार ने बुनियादी शासन की नींव को मजबूत करने के लिए कुछ नहीं किया जिसका नतीजा यह है कि प्रधानमंत्री अपने कदम पीछे खींचते नज़र आ रहे हैं और उनके मंत्री विफल साबित हो रहे हैं जबकि कोविड का संकट गहराता जा रहा है.

मई दिवस- मोदी सरकार ने कैसे भारत को एक भयानक संकट के बीच लाकर खड़ा कर दिया

किसी ने यह देखने की कोशिश नहीं की कि भारत के पास पर्याप्त वैक्सीन, ऑक्सीजन, रेमडिसिविर दवा है या नहीं. अब देश ऐसे संकट में फंस गया है कि चार दशक बाद हम विदेशी मदद के मोहताज हो गए.

‘वायरस वोट नहीं करता’- जब मोदी सरकार कोविड संकट से जूझ रही है तब BJP ने कड़ा सच सीखा

कुछ ऐसी चीजें हैं जो सशक्त नेता कभी नहीं करते हैं, जैसे यह स्वीकारना कि उनकी तरफ से कोई चूक हुई है. तीन हालिया उदाहरण बताते हैं कि सात साल में पहली बार नरेंद्र मोदी की नजरें नीची हुई हैं.

कोविड की ‘खतरनाक’ तस्वीर साफ है, कोई मोदी सरकार को आइना तो दिखाए

कोरोना पर समय से पहले जीत जाने के ऐलान के साथ कुंभ मेले और चुनावों को मंजूरी देकर और वैक्सीन की जरूरत की अनदेखी करके मोदी सरकार ने अपने लिए सबसे बड़े संकट को बुलावा दे दिया है, अब हकीकत को पहचानने की विनम्रता, और कोई ‘रामबाण’ ही इस संकट से उबार सकता है.

अयोध्या, काशी, मथुरा- ज्ञानवापी मस्जिद पर अदालत का फैसला ‘अतीत के प्रेतों’ को फिर से जगाएगा

ज्ञानवापी मस्जिद पर वाराणसी की जिला अदालत का आदेश इस उम्मीद को तोड़ता है कि अयोध्या में जो कुछ हुआ उसे अब दोहराया नहीं जाएगा, गड़े मुर्दों को उखाड़ते रहना विनाश को बुलावा देना ही है.

बुद्धिमानो! सवाल अर्थव्यवस्था का है ही नहीं, भारत ने मोदी की एक के बाद एक जीत से यह साबित कर दिया है

आर्थिक सुधारों को अब जिस तरह ताबड़तोड़ लागू किया जा रहा है उससे यही संकेत मिल रहा है कि वे आर्थिक ‘रिकवरी’ की कोशिश तो करेंगे मगर अब तक जो कारगर साबित होता रहा है उससे तौबा नहीं करेंगे.

मोदी-शाह के चुनावी प्रचार से पाकिस्तान, बांग्लादेश और आतंकवाद जैसे मुद्दे इस बार क्यों गायब हैं

इस बार के चुनावों में मोदी-शाह जोड़ी के प्रचार अभियान में पाकिस्तानियों, बांग्लादेशियों, आतंकवादियों पर हमले नहीं हो रहे हैं तो ऐसा लगता है कि उन्हें घरेलू राजनीति और राष्ट्रीय रणनीतिक हितों के द्वेषपूर्ण घालमेल के खतरों का एहसास हो गया है.

पाकिस्तान भारत के साथ शांति क्यों चाहता है, और मोदी भी इसे जंग से बेहतर विकल्प मानते हैं

अगर भारत को लगता है कि उसे दो सरहदों पर मोर्चा संभालना पड़ रहा है, तो पाकिस्तान के लिए चुनौतियां कहीं और गंभीर हैं, वह भारत से दुश्मनी जारी रख सकता है और चीन के उपनिवेश वाली हैसियत में बना रह सकता है.

मोदी का भारत विश्वगुरू बनना चाहता है, लेकिन तुनकमिजाजी इतनी कि जरा सी असहमति बर्दाश्त नहीं

दुनिया को भारत से बड़ी अपेक्षाएं हैं, जो पूरी नहीं होतीं तो वह शिकायत करने लगती है; मोदी सरकार को दुनिया से अपनी वाहवाही तो बहुत अच्छी लगती है मगर आलोचना से वह नाराज क्यों होती है और उसे खारिज करने पर क्यों आमादा हो जाती है.

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