लेपचा शादियों के गीतों में अब भी गाई जाती है तीस्ता की प्रेम कहानी, लेकिन अब यह नदी अपने गुस्से के लिए भी जानी जाती है. जो कहानी बर्फ के पिघलने से शुरू हुई थी, उसे बांधों और अतिक्रमण ने और भी भयावह बना दिया है.
यूनिवर्सिटी में काम करने वाले एक डॉक्टर ने कहा, ‘अभी एडमिशन का टाइम है, अगर यूनिवर्सिटी की छवि खराब हुई तो एडमिशन पर असर पड़ेगा. हम जांच एजेंसियों की मदद कर रहे हैं.’
चिनाब नदी के किनारे रहने वाले 23 साल के एक युवक ने कहा, ‘अगर हम इसकी धार को यूं ही समेटते रहे, तो ये ज़रूर हमारे घरों में घुस आएगी. इसे गुस्सैल नदी कैसे कह सकते हैं, इसमें नदी की गलती तो नहीं है.’
प्रोफेसर जितेंद्र पांडेय को मशहूर ‘सर स्टीफन श्नाइडर लेक्चर’ देने के लिए आमंत्रित किया गया है. वे यह सम्मान पाने वाले पहले जीव-विज्ञान वैज्ञानिक और पहले एशियाई विद्वान हैं.
स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि ब्यास नदी के किनारे अतिक्रमण सिर्फ स्थानीय समस्या नहीं है, बल्कि मौसमी बाढ़ के प्रभावों को भी और बुरा बना देता है.
यह एक छोटी सी शुरुआत है, लेकिन बिहार की कहानी के लिए एक बड़ी जीत है. और राजनेता इसका इस्तेमाल यह दिखाने के लिए कर रहे हैं कि बदलाव शुरू हो गया है। इसे आने में बहुत समय लगा है.