दलित पैंथर आंदोलन की गतिविधियों की दृष्टि से मई 1972 से लेकर जून 1975 तक की अवधि सबसे महत्वपूर्ण थी. इस काल में दलित पैंथर आंदोलन ने तूफान-सा बरपा दिया था.
हमारे देश में एक इलाका ऐसा भी है, जहां हिंदू होने के बाद भी आबादी के एक हिस्से को दाह संस्कार से वंचित होना पड़ रहा है और यह उस तबके की कहानी है जिसे श्मशान घाट का राजा माना जाता है.
कृष्ण बलदेव वैद की लेखनी में मनुष्य जीवन के नाटकीय सन्दर्भों की गहरी पहचान है. अपनी रचनाओं में उन्होंने सदा नए से नए और मौलिक-भाषाई प्रयोग किये हैं जो पाठक को 'चमत्कृत' करते हैं.
केंद्रीय मंत्री प्रह्ललाद पटेल ने कहा, 'रहीम आज भी सामयिक हैं. ऐसा बहुत कम जगह देखा जाता है कि जहां युद्ध लड़ा जाए वहां कला, संस्कृति हो. अगर ऐसा होता है तो यह बेहतर बात है.'
एक भ्रमित करती न्यूज़ रिपोर्ट ने महात्मा गांधी के पुरस्कार जीतने के मौके को क्षीण कर दिया. इसके बाद 1948 में उन्हें ओस्लो जरूर बुलाया जाता अगर नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या न की होती.
रवीश कुमार कहते हैं, 'इश्क हमें इंसान बनाता है. जिम्मेदार बनाता है और पहले से थोड़ा-थोड़ा अच्छा बनाता है. जो प्रेम में होता है वह एक बेहतर दुनिया की कल्पना जरूर करता है. जो प्रेम में नहीं है वह अपने शहर में नहीं है.'
गणतंत्र दिवस परेड में घोड़े, हाथी, मोटरसाइकिल, सेना के ट्रक से लेकर भारी-भरकम टैंक तक निकलते हैं. पर मजाल है कि राजपथ को कोई नुकसान हो. ये सब बिटुमिनस तकनीक का कमाल है.
चुनाव मंत्री – माफ कीजिएगा, प्रधानमंत्री सच्चाई से वाबस्ता करना पसंद नहीं करते. उन्हें बॉलीवुड की कल्पनाएं, भ्रम के बुलबुले और साफ-सुथरे माहौल में सज धज कर फोटो खिंचवाना पसंद है.