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Wednesday, 27 November, 2024
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समाज-संस्कृति

ऋषिकेश मुखर्जी एक नया सिनेमा लेकर आए, गोल्डन एरा के बाद फिल्मों का एक दौर रचा

ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों में कहानी की खास अहमियत होती थी. चमक-दमक से इतर वो समाज के अंतर्द्वंदों, उसके व्यवहार, दैनिक जीवन को दर्शाते थे और छोटी-छोटी कहानियों को बड़ा फलक देते थे.

शूद्रमुनि की महाभारत: जो बताती है कि पाण्डव बचपन से जानते थे कि कर्ण उनके बड़े भाई हैं

आधुनिक भारतीय भाषा में एक कवि द्वारा सम्पूर्ण महाभारत का प्रथम पुनःकथन है और शायद यह एक मात्र क्षेत्रीय महाभारत है जो व्यास महाभारत से भी लम्बी है.

‘मेरी खूबसूरती का राज़…’ बाथ-टब में लेटे हुए शाहरूख़ का वह विज्ञापन जिसने लक्स को एक ‘बोल्ड एंड ब्यूटीफुल’ ब्रांड बनाया

2005 के इस विज्ञापन ने सौंदर्य उत्पादों के विज्ञापन के लिए महिलाओं के उपयोग वाले खेल को एकदम उलट कर रख दिया था, क्योंकि इसने दर्शकों की निगाहों को महिलाओं के प्रति यौनआकर्षण के बजाय एक पुरुष पर केंद्रित कर दिया था.

एक देश बारह दुनिया, तस्वीर, जो हमारी संवेदनाओं को गहरे तक झकझोरती और समृद्ध भी करती है

एक देश बारह दुनिया, दरअसल बारह दुनियाओं की बात कहती है. इसमें भुखमरी, कुपोषण से लेकर कोठे पर काम करने वाली महिलाओं और खेल तमाशा कर जावन यापन करने वालों तक के जीवन से जोड़कर पाठक को झकझोर कर रख दिया है.

राजस्थान के आदिवासियों की सदियों पुरानी ‘मौताणा’ प्रथा अब उन्हीं के लिए नासूर कैसे बन गई है

मौताणा का मक़सद आरोपी को आर्थिक दंड और पीड़ित को सहायता देना था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह प्रथा साजिश और शोषण का ज़रिया बन गई है.

‘आधुनिक डोगरी की जननी’ कवयित्री-संगीतकार पद्मा सचदेव ने 81 साल की उम्र में मुंबई में ली अंतिम सांस

1940 में जम्मू के पुरमंडल में जन्मी पद्मा एक संस्कृत विद्वान जय देव बडू की तीन संतानों में सबसे बड़ी थी. पिता की भारत के विभाजन के दौरान मृत्यु हो गयी थी.

‘मेरी शायरी मेरी जिंदगी से जुदा नहीं’: प्रेम से लबरेज़ गीत लिखने वाले रोमांटिक शायर शकील बदायुनी

मजरूह सुल्तानपुरी, कैफ़ी आज़मी, साहिर लुधियानवी उस समय राष्ट्रवाद और फासीवाद विरोधी गीत लिख रहे थे, वहीं इसी प्रगतिशील ब्रिगेड के बीच अपनी कलम से एक अलग पहचान बनाने में बदायुनी सफल रहे.

प्रेमचंद का साहित्य और सत्यजीत रे का सिनेमा: शब्दों से उभरी सांकेतिकता का फिल्मांकन

साहित्य और सिनेमा का जो रिश्ता जुड़ा, उस पर गहराई से नज़र डाली जाए तो ये चर्चा फिल्मकार सत्यजीत रे और साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के बिना अधूरी जान पड़ती है.

‘मैं बंबई का बाबू, नाम मेरा अंजाना’- भारतीय सिनेमा में कॉमेडी को शक्लो-सूरत देने वाले जॉनी वॉकर

जॉनी वॉकर जिस अंदाज में अपने चेहरे को घुमाते, नज़रें तिरछी करते, भौंहे सिकुड़ाते, नाक से निकली आवाज के दम पर डॉयलग डिलीवरी करते- कॉमेडी की दुनिया में ये अनोखी बात थी.

आनंद बख्शी : तकदीर से ज्यादा तदबीर पर भरोसा करने वाला गीतकार

बख्शी साहब के गानों में एक दर्शन भी है. जो 'पिया का घर' फिल्म के इस गाने में बखूबी झलकता है- ये जीवन है, इस जीवन का यही है, यही है, यही है रंग-रूप...थोड़े गम हैं, थोड़ी खुशियां, यही है, यही है छांव-धूप .

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मुंबई में कार डिवाइडर से टकराई, दो छात्रों की मौत

मुंबई, 26 नवंबर (भाषा) मुंबई के विलेपार्ले इलाके में वेस्टर्न एक्सप्रेसवे राजमार्ग (डब्ल्यूईएच) पर तेज गति से गुजर रही एक कार के डिवाइडर से...

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सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.